पी राजेश का फोन आया था...कोलंबिया के बगोटा शहर से...पी राजेश्वर राव अपने पूराने दोस्त है...सागर से ही.... वे जब सेंट्रल बैंक में सबसे कम उम्र के कर्मचारी थे...तब से...और फिर वे एक सरकारी नुमा नौकरी छोड़कर प्राइवेट नौकरी करने दिल्ली चले आए...तो हम सबने उनको कम से कम समझदार तो नहीं ही माना था...बात साफ थी...कि बैंक में नौकरी लग गई है...अब जिंदगी का संघर्ष खत्म समझो..बहिन की शादी कर दो...और फिर अपनी करके...सागर में ही बस जाओ...बैंक से लोन लेकर एक मकान बनवा लो....बाद में एक कार भी खऱीद लेना...लेकिन उन्होंने हम सब की बात न मानकर दिल्ली आकर नौकरी कर ली...और वे नौकरियां बदलते गए...शहर और देश भी ....इन दिनों वे बड़ी कंपनी में manager buisness analysis हैं...और पूरी latin america उनका कार्यक्षेत्र हैं...
पी राजेश से हम लोग अक्सर दुनिया के बारे में हजारों उल्टे सीधे सवाल पूछते रहते है....आज भाषा को लेकर बात हो रही थी...राजेश कहने लगे कि पूरी दुनिया में मुस्कराहट ऐसी भाषा है जो दुनिया में हर कहीं समझी जाती है...किसी भी अनजान व्यक्ति को देखकर मुस्करा दो तो वह भी इसका जवाब तो दे ही देता है...जैसे दुनिया के किसी भी कौने में आलू मिल जाता है...वैसे ही मुस्कराहट का जवाब भी मिल जाता है...लेकिन हमारी जिंदगी इतनी पैचीदगियों में फंस गई है....कि हम communication का पहला पाठ ही भूल गए हैं...हमारे जहन में ये बात आती ही नहीं कि मुस्करा कर भी कोई संवाद शुरू हो सकता है...हम भाषा की दुनिया में उलझे हुए वगैर भी बातचीत कर सकते है....लेकिन हम तो पहले हर अंजाने आदमी से उसका शहर उसका प्रांत उसका देश और फिर उसकी भाषा पूछते हैं...भाषा भी कितनी अजीब चीज हैं...हम भाषा के जरिए क्या जानना चाहते है....उसका नाम...या फिर कुछ खोखले सवालों के जवाब....कुछ औपचारिकताएं...या फिर कुछ जानकारियों के कबाड़ जमा कर लेते हैं.....ठीक उसी तरह से जैसे में आज भी कई रद्दी कागज नहीं फैंकता हूं यह सोचकर किसी दिन खबर लिखते वक्त काम आएगें...
मुझे लगता है कि जितना छल हमने भाषा के जरिए किया है...उतना शायद ही किसी और माध्यम से किया हो....हजारों लोग रोज अपनी पत्नियों से कहते है कि वे ही उन्हें दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करते हैं....हजारों प्रेमी अपनी प्रेमिकाओं के लिए मरने को तैयार हो जाते हैं...हजारों संत पूरी दुनिया में लोगों को भाषा के जरिए ही ठीक करने की बात कर रहे हैं..लेकिन भाषा सिर्फ वह संप्रेषित करती है...जो तुम कहना चाहते हों....उसे नहीं करती ...जो तुम सोच रहे हैं....हमारे सोचने और कहने में काफी अँतर हैं...जिसे भाषा के स्तर पर नहीं समझा जा सकता...लेकिन पी राजेश सही कहता है कि मुस्कराहट ही एक ऐसी भाषा जिसे दुनिया का हर आदमी समझ सकता है.....और इस भाषा में अपनी बात कहने के लिए हमे क्षानी नहीं होना पड़ेगा...सिर्फ प्रेमी बनना पड़ेगा...निश्छल और एक अच्छा इंसान...पर शायद पी राजेश को पता होगा... कि ये काम कठिन है...क्षानी बनने से ज्यादा कठिन......
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