Thursday, December 1, 2011

एक कप कॉफी पर । अब भी हो रहा है बहुत कुछ।

खेतान भाई साहब का फोन आया। कॉफी पियोगे। उन्हें मेरी आवाज से मेरा जवाब का अंदाजा लगा गया। उन्होंने कहा। थक गए हो तो रहने दो। पत्नि के साथ कहीं जाना है तो भी रहने दो। मेरी यू हीं इच्छा हुई सो मैंने फोन कर दिया। ठंड में रात को निकलना मुश्किल होता है। चलो फिर कभी मिलेगें। आज एड्स डे था। सो अपन सुबह से ही खबर जुटाने में लग गए थे। काम खत्म करके घर पहुंचे। थकान तो थी ही। मजेदार ठंड भी लग रही थी। आवाज इस तरह से राज जाहिर कर देती है। या वे डाक्टरी करते हैं। इसलिए समझ गए मुझे पता नहीं। खेतान भाई साहब हों या शिव भैया। इन लोगों के पास वक्त कम होता है। और अपन को इनके साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता है। सो आलस्य पर अपना लालच हावी रहा और फट से अपन तैयार हो गए। हमने पूछा कहां पिएगें। कॉफी। उन्होंने कहा। बरिस्ता में। कम ही इतनी फुर्ती आती है। लेकिन उठकर चल दिए।
आईआईटी के सामने बरिस्ता है। जाकर अपन बैठ गए। भाईसाहब किसी भी कोने में नहीं दिखे। सो चुपचाप जाकर पीछे की तरफ बैठ गए। शादी हुए इतने साल हो गए। लेकिन कोने में बैठने की आदत अभी गई नहीं है। लगा पहुंच कर बार बार फोन करना ठीक नहीं है। वे जाम में फंस गए होगें। आते ही होगें। चुपचाप बैठकर इंतजार करना ही ठीक लगा। हमारे ठीक बाजू में एक स्मार्ट लड़का और सुंदर सी लड़की बैठी थी।आपके पास करने को जब कोई काम न हो। तो चारों तरफ ध्यान जाना स्वाभाविक है। सो कई युगल पर जाकर नजर रुकी। किसी को अपन बदतमीज टाइप के आदमी न लगें। सो शराफत का दिखावा करके। चुपचाप फोन पर नेट से खेलने लगा। फिर भी आजू-बाजू की आवाज तो आती ही है। बार बार वह लड़का अपनी सहेली से एक कप कॉफी और पीने की जिद कर रहा था। वो शायद समझ रही थी। समझाने लगी। अपन तीन तीन कॉफी पी चुके है। मैं पांच मिनिट और रुक जाती हूं। कॉफी का मत कहो। लेकिन वह एक कप और पीना चाहता था। मुझे अपनी याद आई। और वे तमाम कॉफी जो मैंने पी। और पिलाई सब याद आ गई। यह बात वे दोनों जानते थे। और मैं भी। कॉफी किसी को नहीं पीनी है। सवाल कुछ देर और रोकने का है। एक कप कॉफी का मतलब होता है करीब करीब २० मिनिट। अपनी प्रेमिका को बीस मिनिट रोकने के लिए एक कॉफी की जिद करनी पड़ती है। लेकिन उन प्रेम के दिनों में बीस मीनिट ऐसे निकलते है जैसे क्या बताऊ। बस निकल जाते हैं।
भाई साहब कुछ देर में आ ही गए। हालाकि बाद में पता चला कि वे हमसे पहले ही पहुंच गए थे। अपनी लॉटरी खुली। कुछ देर में एम्स से शिव भैया भी उठा लिए गए। गाड़ी भेजकर। फिर क्या था। जैसे ईट पर ईट रखी जाती है। वैसे ही हमारी गप्पे होने लगी। और मजे की इमारत बनने लगी। लेकिन आज गप्पों के अम्बिएंस में जो ताजगी और युवा पन था। अपन वहीं अटके रहे। जिंदगी में चलते चलते हम जिन रास्तों से आगे निकल जाते् है। हमें लगता है शायद वे खत्म हो गए होगें। सिर्फ हमारे जमाने में ही गुलाब लाल रंग के खिलते थे। हमारे दिनों में ही बेहतरीन कार्ड छपते थे। सबसे अच्छी गजलें जगजीत सिंह ने और गुलाम अली ने उसी समय गाई जब अपन प्रेम में थे। आज जाने की जिद न करों। अपने ही दिनों में था। बरिस्ता में कॉफी सिर्फ उन्हीं दिनों अच्छी थी। बुक फेयर में मजा उन्हीं सालों में था। फरवरी का मौसम सिर्फ उन्हीं सालों में आता था। लेकिन आज जाकर लगा कि नहीं बरिस्ता में कॉफी अभी भी मिलती है। और कोई आज भी है। जो अपनी प्रेमिका को एक कॉफी और पिलाने के लिए जिद कर रहा है। बीस मिनिट का समय आज भी किसी के लिए युगों से ज्यादा महत्वपूर्ण है। आज भी किसी के लिए इस युग का सबसे सुंदर संगीत रचा जा रहा है। आज भी किसी के लिए गुलाब खूबसूरत है। और उतने ही लाल हैं जितने कभी अपने लिए थे। क्या लगता है आपको हमें बताइएगा जरूर।