Tuesday, April 13, 2010

शुरूआत कर रहा हूं...

लिखना भी अनुशासन का काम है...और वो अपन में कभी रहा नहीं...लिहाजा कभी लिखा नहीं...सिर्फ सोचता ही रहा....यही वजह रही कि जिंदगी में लोगों को पत्र भी नहीं लिख पाया...दादी को भी दिल्ली से कम चिठ्ठियां ही लिखी...और उनमें से भी कम ही पोस्ट की...ज्यादातर चिठ्ठियां तो लिख कर रखता ही गया....और उन्हें बाद में फोन पर ही सुनाकर काम चलाया...लेकिन अपने एक भाई है...गौरव उन्होंने सालों पहले हमारा यह ब्लाग बनाया...और लिखने को कहा...लेकिन सिर्फ सोचता ही रहा...कभी लिख नहीं पाया....आज न जानें क्यों इच्छा हुई और लिखने बैठ गया....सवाल यह भी है..मेरा लिखा आप क्यों पढ़ेगें...खासकर जब अपने पास कहने को बहुत सार्थक न हो...और कुछ ऐसा भी न हो जो इतिहास बनने जा रहा हो...लेकिन शायद हम अपने लिए लिखते हैं....लिखना भी एक तरह का निक्कमापन है....हम शायद लिखकर एक बहाना अपने लिए बुन लेते हैं...कि हमनें अपने हिस्से का काम कर लिया...और इस बहाने की चादर में हम अपने को सुरक्षित कर सो लेते हैं...और नैतिक भी बने रहते हैं....शायद हम सोचते हैं कि हम इतना ही कर सकते थे....भूखे आदमी को देखकर एक कविता लिख दी या फिर एक लेख ....और हम भूख के खिलाफ पूरे संघर्ष से बच जाते हैं...सोचते हैं हम जो कर सकते थे...वो हमने कर दिया...तो शायद लिखना भी एक तरह का आलस्य है....मैं कोशिश करूगां कि लिखता रहूं...और उम्मीद करता हूं कि शायद कभी कुछ ऐसा भी लिख पाउं जो आपके काम का हो...तो शायद मेरा लिखना सार्थक हो....मैं बहुत दावे नहीं कर सकता है...हां इतना यकीन दिलाता हूं...कि कुछ भी झूठ फरेब या प्रपंच नहीं लिखूंगा...वहीं लिखूंगा जो देखूगां.....मैं कहता आंखन देखी.....आशीर्वाद दीजिएगा...

1 comment:

  1. i read u'r fantastic blog
    well meri taraf se mein yahi kahungi ki- ab ek naya chakkar laga ke to dekho fir se naye phool aur nayee umangein dikheng.....
    bua...

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