Saturday, September 29, 2012

पिता के साथ आज भी घर लौटने की इच्छा थी।

मध्यप्रदेश संपर्क क्रांति शाम पांच बजकर २५ मिनिट पर छूटती है। दिल्ली के हजरत निजामु्दीन स्टेशन से। शनिवार को भी प्लेटफार्म नंबर सात से  छूट  ही गई। मै जाती हुई रेल को बहुत दूर तक देखता रहा। पिताजी को छोड़ने आया था। सो वे उसी मैं बैठकर सागर चले गए। पहले उनकी इच्छा ही नहीं थी। कि अपने काम में तमाम प्रपंच करू। और स्टेशन भेजने आंउ। लेकिन मन नहीं माना। सो आ ही गया।  वे जब अपने डिब्बे में, सीट पर बैठ गए। उनकी फिर इच्छा थी कि अब तो लौट जाऊं। लेकिन आदत नहीं है। सो प्लेटफार्म पर खड़ा ही  रहा। गाड़ी ने कई बार कूका बजाया। और साढ़े छह मिनिट लैट होकर चल ही दी। मन तो बहुत हुआ। कि पिता के साथ अपन भी घऱ को चल ही दे। लेकिन पिछले ३६ सालों में शायद यही बदला है। अब हर काम दिल से नहीं होता। फैसलों पर हालात भी प्रभाव डालते हैं।
हो सकता है यह किस्सा आपको पहले भी सुनाया हो। सेंट जोसफ कान्वेंट अपनी दूसरी स्कूल थी। पहली स्कूल सरस्वती शिशु मंदिर थी। जहां कुछ महीनें अपन गए थे। कहा गया था। स्कूल जाने की कम से कम आदत हो जाएगी। उन दिनों बस नहीं थी। सो कोई न कोई भेजने जाता था। अक्सर दादा जाते थे.। अगर स्कूल जाकर में रोता और वापस आने की बात कहता तो। वे कहते थे। कहते क्या चिल्लाते थे। बस्ता यहीं फैंको। किताबों में आगी लगा दो। स्लेट फोड़ दो और फिर चलो। अपन इतना साहस कभी नहीं कर पाए। और न कभी उनके साथ घर लौट पाए। लेकिन पिता से दोस्ती थी। जब कभी वे भेजने जाते। उस दिन अपन उनके साथ लौट ही आते थे। उनके साथ दोस्ताना और भावनात्मक रिश्ता शुरू से ही रहा। लगा आज भी कह दूं। कि साथ वापस ले चलों। दिल्ली में घर की याद बहुत आती है। लगा शायद पिता कह ही दे। चलो। लेकिन अब दादा की बातें खुद ही दुहरा लीं। वे शायद कहते। नौकरी छोड़ दो। घर बैच दो। सागर में क्या करोगं। सोच लो और फिर चलो।
जब हम बड़े बड़े सपने पालते हैं। उन्हें पूरा करने के लिए अपने शहर से इन महानगरों की तरफ आते हैं। उस समय बहुत सी बातें कहां पता होती हैं। हमें तो यह पता ही नहीं था। कि जब कभी आधी रात दादी याद आती है तो फिर सूबह आँखों ही आँखों में हो जाती है। दिल्ली में दोस्त नहीं बनते। सिर्फ साथ काम करने वाले साथी बनते हैं। जो न थकने पर हिम्मत देते हैं। न दुख में रोने के  लिए कांधा। हम कहां जानते थे कि हमारे आने के बाद घर  में मूंगफलियों पर शक्कर सिर्फ इसलिए नहीं चढ़ाई जाएगी क्यों कि मुझे पसंद हैं। वे तमाम तीज त्योहार घर में सूने होजाएगें। जिन में मुझे मजा आता था। पता नहीं दिल्ली आकर अपन ने सही किया या गलत। यह तो जब रिजल्ट आएगा जिंदगी का तब पता चलेगा। क्या आप भी अपना घर मेरी तरह छोड़ कर आए  हैं। क्या लगता है। अपन लोगों ने ठीक किया या गलत। लिखिएगा जरूर।

Thursday, April 19, 2012

क्या अनुभूतियों का भी अभ्यास होता है।

बहुत दिनों बाद ब्लाग लिख रहा हूं। कभी समय नहीं मिला। तो कभी मन नहीं हुआ। कभी विषय में रस नहीं आया। और सिर्फ लिखने के लिए अपन से लिखा नहीं जाता। हालांकि इन दिनों कई घटनाएं घटी। जो लिखी जा सकती थी। पर वे घटनाएँ कागज पर उतरी ही नहीं। सही या गलत नहीं जानता पर मुझे ऐसा लगा कि अनुभूतियों का भी अभ्यास होता है। जब हम लिखते रहते हैं। तो विषय भी सामने आकर अक्सर खड़े होजाते थे। और मैं उन्हें ब्लाग में छाप देता था। लेकिन क्या प्रेम करने का। अच्छे मनुष्य होने का। मददगार व्यक्ति होने का। भावनात्मक होने का। या फिर एक बेहतर व्यक्ति की तरह काम करने का भी अभ्यास होता है। क्या हमें इसकी भी प्रैक्टिस करनी पड़ती है।
मुझे समझ में नहीं आता कि क्या अभ्यास से चरित्र बन सकता है। क्या किसी चीज को बार बार करके आप बेहतर आदमी बन सकते है। क्या हम सच बोलने का अभ्सास कर सकते है। या फिर हमारे अंदर का दर्शन। हमारे संस्कार हमारे अंदर सत्य पैदा करते है। और फिर हम जो भी बोलते है वह सच होता है। बात शायद बोझिल हो रही है। लेकिन मैं यह बात समझना चाहता हूं। कि हम अभ्यास से हुनर तो विकसित कर सकते है। लेकिन क्या हम अपना चरित्र भी बना सकते है। क्या अच्छे होने की हमें कोशिश करनी चाहिए। या हमारे अंदर की प्रकृति ही ऐसी हो कि हम सिर्फ अच्छा ही कर सकें। बहुत दिनों बाद लिख रहा हूं। सो लिखने का अभ्यास खत्म हो गया है। आज छोटा ही लिख रहा हूं। लेकिन आप बताना जरूर क्या हमें अच्छे बने रहने की प्रैक्टिस करते रहना चाहिए। नहीं तो हमारी अनुभूतियां मरने लगती है। शायद इनके भी कोई सैल होते हों। जो इस्तेमाल न होने पर डैड हो जाते हों। जैसे डाक्टर कहते हैं। मेरे सिर पर बालों के सैल डेड हो गए हैं। और मैं गंजा हो गया हूं।

Monday, April 2, 2012

मेरी मां दादी बन गई और दादी परदादी।

एम्स के ऑपरेशन थिएटर के आखरी दरवाजे से पवन ने इशारा किया। जीत का चिन्ह बनाया। मुझे समझ में नहीं आया। फिर पास आकर उसने बताया कि बेटा हुआ है। पवन शिव भैया के साथी है। और अपना डिप्रैशन देखकर पवन को और विजय भैया को शिव भैया ने सुबह से ही तैनात कर दिया था। मामला थोड़ा तो गंभीर था भी बाकी अपना बुंदेलखंडी स्वभाव। सो अपन उसी दिन से परेशान थे जब से डाक्टर ने ऑपरेशन की बात कही थी। हालांकि डाक्टर ने खूब समझाया था। कि आजकल ऑपरेशन सामान्य बात है।कई पढ़े लिखे लोग तो खुद ही ऑपरेशन की पेशकश लेकर आते हैं। अपन तो कस्बाई मानसकिता के आदमी है। सो ऑपरेशन के नाम से ही डर लगता है। अनिता पूरे समय हिम्मत बांधे रही। पर जब आखरी दरवाजे पर हमें रोक दिया गया। और उसकी व्हील
चैयर अँदर चली गई। तब दोनों की आँखें मिली और अपना सब्र तोड़ ही गई।
हमनें सुना तो कई बार था कि इंतजार में दिल सीने में नहीं आँखों में धड़कता है। पहली बार कई अनुभव हुए। एम्स की तीसरी मंजिल पर इंतजार करना मुश्किल था। हम हर बार शिव भैया से सवाल पर सवाल पूछते रहे। और पवन को बार बार अंदर चलने के लिए कहते रहे। अपने साथ में महेंद्र भी थे। वे एम्स के ही कर्मचारी हैं। सो उन्हें भी खबरें पता करने के लिए खूब परेशान किया। रवि और आशीष देवलिया भी अपना काम धाम सब छोड़कर अपने साथ खड़े रहे। अनिल हमारे भांजे है। और एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में अफसर है। वे पूरे समय रहे। और जाते हुए कहने लगे हमें पता था कि सब ठीक होगा। हम मामी के लिए नहीं । आपके लिए आए थे। क्यों कि सागर के लोग हमेशा तनाव में दिमाग से काम लेना बंद कर देते है। बात अपने बारे में तो बिलकुल ठीक थी।
बात सिर्फ रिश्तों की नहीं होती। और भी बहुत कुछ बदलता है। हमारे सबसे छोटे भाई जीबू लाल ने फोन करके अलग तरह की बात कही। कह रहा था कि अब समझदारी से काम करना तुम पिता बन गए हो। बात मेरे पिता बनने की नहीं है। लेकिन लगा कि एक बच्चें के आने से सबका प्रमोशन हो गया। और एक पीड़ी आगे बड़ गई। हमने देखा कि इस दौरान अनिता के ना जाने कितने टेस्ट हुए। कई बार तो एक दिन में छह छह बार तक ब्लड लिया गया।लेकिन उसे हमनें परेशान नहीं देखा। लेकिन जब बेटे का खून पीलिया टेस्ट करने के लिए लिया गया तो वह खूब रोई। उसे बच्चे के दर्द का अहसास था। मुझे लगता है कि मां या पिता होना प्रभु की तरफ से एक नए तरह की अनुभूति का रास्ता खुलना है। दूसरे के दर्द का अहसास करना शायद मां या पिता होकर ही जाना जा सकता है। सिर्फ मुझे पिता होने की खुशी नहीं है। हम इस बात को लेकर भी खुश है। कि आप सब लोगों का भी संबंधों की दुनिया में प्रमोशन हो गया। बधाई हो।

मेरी मां दादी बन

मेरी मां दादी बन