Friday, April 23, 2010

राजनैतिक पाठक नहीं...अपने कुटुंबी चाहिए....

मैं पेशे से पत्रकार हूं...इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टर हूं...लिहाजा हर आदमी को लगता है कि मैं ब्लाग भी राजनीति पर ही लिखूंगा...लेकिन यह मैंने राजनैतिक पाठक जुटाने के लिए लिखना शुरू नहीं किया है...मैं अपना कुटुंब बनाना चाहता था ..मैं ऐसे लोगों का समाज पनपाना चाहता हूं... जो मेरा हो...जो मेरी परेशानियों को सुन सके...अपनी कह सकें...हम अपनी बातें एक दूसरे को बता सकें...अपनी भावनाएं एक दूसरे को जता सकें...अपने दुख अपने सुख...अपने मजे....अपनी मौज...अपने दोस्त...अपनी शैतानियां....एक दूसरे के साथ साझा कर सकें....हमारी अपनी जिंदगी भी तो हैं...फिर हम हर चीज में राजनीति और राजनैताओं को क्यों घसीटना चाहते हैं...हम हर दम अपनी जिंदगी का हिस्सा उन्हें क्यों बनाना चाहते हैं..और उनकी जिंदगी का हिस्सा क्यों बनना चाहते हैं....हमारे पास भी महिला मित्र हैं....और आपके पास भी होगीं...फिर हमें शशि थरूर की महिला मित्र में इतनी दिलचस्पी क्यों हों...शायद हमारी यही कमजोरी हमें दिन ब दिन छोटा बनाती जाती है...और वे अपनी ऐठ में और ज्यादा अकड़ते जाते हैं.... इतना ही नहीं हमारी इन्हीं कमजोरियों का फायदा बाजार भी उठाता है....और हमारी भावनाओं को भी बाजार में लाकर उन्हें धंधे की वस्तु बना देता है...खरीद फरोख्त करता है...मुनाफा वसूली करता है....हमें अपने दोस्तों की शादी में मजा आएगा...अपने चाहने वालों की शादी का हम हिस्सा होगें.....हमें इस बात से क्या मतलब हैं कि राहुल महाजन किससे और कब शादी करेगा...लेकिन धंधेबाजों का खेल देखिए...हमें इस तरह से इस्तेमाल करते हैं कि हम उनके साथ साथ चलते हैं....उनके साथ साथ हंसते और रोते भी हैं..हमने कई घरों में जाकर देखा है....लोगों को राहुल महाजन की शादी का ऐसे इंतजार था जैसे उनके परिवार में ही शादी हो रही हो...
हमनें अपनी बिरादरी में भी देखा है....हमारे साथियों की इतनी ज्यादा इच्छा होती है कि उनके घरू कार्यक्रमों में भी नेताओं की मौजूदगी रहे...हमारे साथी कई रिपोर्टर चाहते है कि उनकी शादी में मंत्री या फिर मुख्यमंत्री जरूर आएँ...यह न्योता स्वाभाविक तो नहीं ही होता है...और इसे अंजाम देने के लिए हमें अपनी गरिमा से कई इंच नीचे गिरना होता है...हम किसी को बुलाए और वो आ जाए....यह स्वाभाविक है...लेकिन अगर हमें किसी नेता को बुलाने के लिए गिडगिड़ाने जैसा स्वर इस्तेमाल करना पड़े तो शर्म सी लगती है...आप बाकायदा उसके लिए होम वर्क करते हैं...उनके सूचना अधिकारियों से गिड़गिड़ाते हैं...उनके पीए के सामने लगभग विनय करते हैं...बात सिर्फ इतनी सी नहीं है कि आपके बुलाने पर वे आते हैं या नहीं ...बात है आप किस कीमत पर उन्हें अपने कार्यक्रम का हिस्सा बना रहे हैं....और अगर वे आकर आपके कार्यक्रम का हिस्सा बन भी जाते हैं... तो क्या आप कल उन्हीं लोगों के खिलाफ जनता की तरफ से खड़े हो सकेंगे...हम छोटे छोटे सौदों में हम अपना क्या बेचकर क्या खरीदते हैं....हमें इसका हिसाब भी करना होगा...मैं पूरी कोशिश करूगां... कि यह ब्लाग हमार ही रहें...यानि आपका और मेरा...हम अपनी कहें...और आपकी सुने...बाकी सब चीजों के लिए तो इतनी जगह है ही..जहां सब कुछ चल रहा है...लिखा जा रहा हैं....आईपीएल के भ्रष्टाचार पर दूसरी जगहों पर कागज काले हों हम अपना ब्लाग काला क्यों करें...इसे आपके अपनेपन से उजला ही रहने दे......

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