भैया मैंने एक खबर सुनी है....शिव भैया ने कुछ रुककर कहा सही है...और वे चुप हो गए....शिव भैया यानि डॉ शिव चौधरी...एम्स के जाने माने कार्डियक सर्जन....न मैंने खबर बताई... न उन्होंने कुछ पूछा...बात साफ थी...कि हम दोंनो हर्ष के बारे में बात कर रहे हैं....हम दोंनों कुछ देर चुप रहे है....मैंने फिर पूछा कि क्या हुआ....उन्होंने कहा कि कार्डियक अरेस्ट हुआ है....मैने पूछा कोई करिश्मा हो सकता है...वे चुप रहे .....और फिर मुझे याद नहीं कि मैंने फोन बंद किया...या उन्होंने काट दिया....
मैं ये बात जानता हूं.....कि हर्ष दुनिया का पहला आदमी नहीं हैं जो सड़क हादसे में मारा गया...और न मैं ऐसा पहला आदमी हूं...जिसका कोई दोस्त असमय ही चला गया है...फिर भी पूरी समझदारी को जैसे लकवा लग गया है...न कुछ समझ में आता है...न कुछ समझने को जी चाहता है....वैसे हम और हर्ष का संबंध खबर का था...लेकिन उसका व्यक्तित्व और हर किसी की मदद करने की चाहत ने उसे न केवल हमारा बल्कि न जाने कितने मीडिया वालों का खास दोस्त बना दिया था....बात उन दिनों की है जब एम्स के पुस्तकालय के सामने लंच में कुछ जूनियर डाक्टर्स खड़े होकर आरक्षण के खिलाफ नारेबाजी करते थे...और हम लोग इसे धीरे धीरे खबर बनाने लगे...आंदोलन बढ़ता गया है...और देखते देखते पूरे देश में एम्स और हर्ष का नाम लोग जानने लगे....हर्ष पहले प्रवक्ता के रूप में हमारे सामने आता था...फिर एम्स आरडीए के चुनाव हुए और हर्ष अध्यक्ष हो गया..आंदोलन चलता गया....आंदोलन में कई चरण आए....कई लोग साथ हुए...कई लोग टूट गए....हमने उसे कई बार कई तरह से देखा...कभी उदास...तो कभी परेशान...लेकिन हर हालत में उसमें एक उम्मीद का जागते रहना बड़ी बात थी...एम्स में उन 18 दिनों में कई रिपोर्टस एम्स में ही डेरा डाले रहते थे.... मेनें youth for equality के इस आंदोलन को काफी करीब से कबर किया...और फिर सुप्रीम कोर्ट की बात मानकर ये लोग वापस अपने कामों पर लौट गए...लेकिन वो चिंगारी आगे चलती रही...हर्ष एम्स छोड़ कर रोजी रोटी के लिए नौकरी करने आगे चला गया...हम लोगों की मुलाकातों का सिलसिला कम हो गया...लेकिन यदा कदा फोन पर बतियाते रहते थे....और आज एक खबर ने सब खत्म कर दिया....हर्ष अक्सर कहता था कि लोग हम लोगों को दलित विरोधी समझते हैं...जबकि हम उनके सही मायने में हिमायती है...हम सिर्फ उस झूठ के खिलाफ है जो आरक्षण के रूप में इन लोगों को राजनैतिक लोग सुनाते और समझाते आए हैं...हमने कभी भी अपने मरीज से उसकी जात नहीं पूछी...सिर्फ उसका इलाज किया है...क्यों की हम जानते है कि न तो तकलीफ किसी जात की होती है...और न मौत... इस समाज की दहलीज पर समानता लाने का सपना देखने वाली आंखे अब नहीं रही ....वे हमारी आँखों में सिर्फ आंसू छोड़ गई...आज मुझे लगा कि जब कोई अपना चाहने वाला मरता है तो अपना भी एक हिस्सा उसके साथ मर जाता है...मुझे लगता कि हर्ष के साथ जैसे मैं भी कुछ हिस्सा मर गया हूं... हर्ष से जब पहचान हुई थी...जब वो हमारे लिए खबर था....और आज जब वो गया...हमारे लिए रिश्ता है...खबर नहीं है.....
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