हर्ष को विदा करने आज जो भी आया...वही रोया... हमें खबर पहले से थी...कि सोमवार को दो बजे लोधी रोड पर हर्ष को विदा करना है....अंतिम सफर के लिए...दिल्ली कैबिनेट पर खबर करनी थी...और उससे संबंधित बातें दफ्तर में भी लिखवानी थी...लिहाजा हम और रवि त्रिपाठी दोनों देर से पहुंचे....हमने अपने हिस्से की लकड़ी लगा दी और दूर आकर टिक गए...पास की एक बैंच पर चुपचाप डॉ शिव चौधरी और डॉ कौशल भी बैठे थे...हम वही ठिठक गए.....न वे लोग हम से कुछ बौले न हमसे कुछ बतिया गया....हम सिर्फ लकड़ी के जमावड़े को देखते रहे और कुछ देर तक तो कोशिश भी करते रहे....पर फिर अपनी डबडबाई आंखों से आसूं बहने ही लगे....न वे रुके.....और फिर न अपन ने कोशिश की....
हर्ष का बनाया हुआ ही यह परिवार था...जो आज वहां मौजूद था...जितने डाक्टर थे उतने ही मीडिया कर्मी....वे लोग भी थे...जिनकी हर्ष ने कभी बीमारी से लड़ते वक्त मदद की तो कभी दुख से टूटते लोगों को सहारा बना...अजीब स्थिति थी...वहां मौजूद हर आदमी एक शून्य में गुम था...न कोई किसी से बतियाता....न कोई किसी को समझाता... कौन समझाए...किसे समझाए....जो खुद ही दुखी हो वो किसी और को सहारा कैसे दे...मैंने इस तरह का सन्नाटा शायद जैसी जीवन में पहली बार देखा...नहीं तो अपन भी कई लोगों के अंतिम संस्कार में शामिल हुए हैं...लोगों को शामिल होने की औपचारिकाएं निभाते देखा है....हंसी ठहाके लगाते और मजाक करते भी देखा है....लेकिन जो लोग हर्ष को विदा करने आए थे...वे तो अपने आप से बोलने को राजी न थे।....इन्हीं लोगों के साथ हमने आरक्षण का आंदोलन कवर किया...वेणू गोपाल के साथ कंधा से कंधा मिलाकर इन्हीं को लड़ते देखा और उस समय के स्वास्थ्य मंत्री और सरकार से ताल ठोकते इन डाक्टरों को कितने बार देखा...न कभी टूटे ये लोग...न कभी डरे ये लोग....लड़ते रहे.....पहली बार हमें इस बात को लेकर हैरत होती थी....कि डाक्टर भी अपना आला कमरों में तांगकर इस तरह ताल ठोकते हैं....और खुले मैदान में किसी भी लड़ाई को इस तरह से लडते हैं....आज उसी टीम को इस तरह शोक में टूटा हुआ...बिखरा हुआ...देखते हुए कैसे न आँखे डबडबाए...
टाइगर सिंह...यानि डॉ मनोज सिंह...जो हमेशा किसी भी तरह के काम में इंतजाम करते हुए नजर आते है....इधर से उधर भागते तो आज भी थे....लेकिन मानो लगता था कि ये आदमी सालों से चुप है...आज न हम लोगों के लिए उनके जुबान पर गालियां...न वह पुरानी मुस्कराहट....डॉ खेतान भी एक दम चुप...जैसे किसी ने मानो उनकी ताकत ही छीन ली हो....चाहे शंपा भाभी हो या फिर डॉ अनिल सभी तो थे....ये वही लोग तो है...जो हर्ष के करीब हमेशा देखे जाते थे...विनोद पात्रों भी था...हमें याद है उन दिनों की जब विनोद ने हमारा परिचय कराया था...ये हर्ष हैं.... हमारी तरफ से मीडिया से बात किया करेगा...आज लगा कि विनोद को रोक कर पूंछ ले कि तुम तो कहते थे कि हर दम उपलब्ध रहेगा...मीडिया से बात करने के लिए....तो फिर आज ये मौन क्यों है...हम सब इतनी तादाद में आए हैं .....फिर ये बात क्यों नहीं करता...झूठ तुमने बोला था...या हर्ष ही हमें धोखा दे गया...देखते ही देखते सालों की जिंदगी का खेल किस तरह से मिंटों में खत्म हो जाता है...हमने रवि त्रिपाठी से कहा कि एक बार फिर चलो...हम दोनों अंदर गए....हर्ष को प्रणाम किया....कुछ देर रुके .....और बाहर निकल आए...न किसी से हाथ मिलाया न किसी से कुछ कहा...किसे कहते...क्या कहते ....किसको समझाते....क्या समझाते....हम सबने हर्ष को खोया. है..कुछ ने ज्यादा... कुछ ने कम.... अखिल भारतीय आयुर्विक्षान संस्थान यू ही चलता रहेगा....कल फिर कोई न आरडीए का अध्यक्ष होगा...और हमारे चैनल कोई नया हैल्थ रिपोर्टर...लेकिन हां...एम्स के बाहर से निकलते वक्त कुछ देर को ही सही लगेगा जरूर कि कोई हमसे रुठ गया है... जो पहचाना हुआ था....टाईगर सिंह के हर चने की फांक पर लगेगा कि हमसे कुछ छूट गया है.....कहने को तो अभी भी डॉ खेतान हैं...कौशल वहीं डॉ शिव चौधरी है...वह हम और वही एम्स लेकिन हम सब आज अधूरे से हो गए हैं....लगता नहीं कि यह हिस्सा जो तुम्हारे टूट गया है...यह मन का हिस्सा कभी भर पाएगा या नहीं..डॉ काले से पूछूंगा जरूर.....हम सबमें दिमाग के बारे में तो वे ही जानते हैं...
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