Thursday, April 29, 2010

फांसी के दिन भी भगत सिंह ने की थी कसरत....यकीं नहीं होता

मैंने सुना है। पढ़ा नहीं है। लेकिन यकीन नहीं आता। कोई बता रहा था। जिस दिन भगतसिंह को फांसी होनी थी। उस दिन भी उन्होंने सुबह उठकर कसरत की थी। किसी व्यक्ति का अपने जीवन मूल्यों के प्रति इतना समर्पण। जीवन में ऐसा महान लोगों के साथ होता है। जब उनके मूल्य और वे अलग अलग नहीं होते। एक ही हो जाते हैं। हम महात्मा गांधी और अहिंसा को अब अलग अलग नहीं कर सकते। हमारे लिए गांधी और अहिंसा एक ही हैं।
मैं आज बाहर गया था। अभी लौटा हूं। लिखने की हिम्मत नहीं हो रही थी। लेकिन मुझे लगा कि अगर मेरा एक भी पाठक मेरा ब्लाग हर रोज खोलता है...तो ब्लाग न लिखना उसके प्रति अपराधा होगा....मैं न भगत सिंह हू और न महात्मा गाधी...लेकिन मैं अपने आप को आपके प्रति जिम्मेदार मानने लगा हूं. सोलिख रहा हूं। नियम साधना और बात है। उसे ढोना अलग बात है। मुझ से जीवन में आज तक कुछ भी नहीं सधा तो नियम सध पायगा...यही कहना ही मुश्किल हैं...फिर भी में कोशिश करता रहूंगा...

4 comments:

  1. पायलागु , हमे आपके लेख का इंतेजार हमे भी रहने लगा है | आपके लेख दिन प्रतिदिन छोटे होते जा रहे हैं, जो आपकी व्यस्तता दर्शाते हैं, " भगत सिंह " लेख पसंद आया , आपने सही कहा है, नियम साधना आसान बात नहीं है, लेकिन कोशिश कीजिए, आसान लगेगा| आपने कुछ लोगो को अपने व्यावसायिक कार्य के प्रति लगन देखी होगी , जिसमे वह भूख प्यास भी भूल जाते हैं | आपका प्रयास सफल हो हम प्राथना करते हैं.

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  2. मृ्त्यु तो एक दिन सब की आनी है, तो क्या रोज का काम छोड़ कर बैठ जाएँ?

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  3. अच्छी वैचारिक और इन्सान के कुछ अच्छा सोचने से उपजी इस बिचारोत्तेजक रचना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद / अच्छा और ईमानदारी भरा सोच ही ,आज इस देश और मानवता को बचा सकता है / आशा है आप इसी तरह ब्लॉग की सार्थकता को बढ़ाने का काम आगे भी ,अपनी अच्छी सोच के साथ करते रहेंगे / ब्लॉग हम सब के सार्थक सोच और ईमानदारी भरे प्रयास से ही एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित हो सकता है और इस देश को भ्रष्ट और लूटेरों से बचा सकता है /आशा है आप अपनी ओर से इसके लिए हर संभव प्रयास जरूर करेंगे /हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी उम्दा विचारों के लिए सम्मानित की गयी हैं /

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  4. उन्ही का एक शेर याद आया.....

    "जिंदगी अपने कंधो पर जी जाती है,

    दूसरो के कंधो पर अर्थिया जाती है.....!"



    कुंवर जी,

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