Saturday, April 24, 2010

गर्मी की छुट्टियां और उसका नानी के घर आना

गर्मी की छुट्टियां। सभी को अच्छी लगती है...लेकिन मेरे लिए किसी वरदान से कम न थी...इन गर्मियों की छुट्टी में वो अपनी नानी के घर आती थी...उसके आते ही मेरी गर्मी की छुट्टियां शुरू होती ...और उसके जाते ही खत्म....वैसे आमतौर पर बच्चों की गर्मी की छुट्टियां रिजल्ट आते ही शुरू हो जाती है...लेकिन मेरी परीक्षा खत्म हो जाती....रिजल्ट आ जाता...मैं अच्छे नंबरों से पास भी हो जाता....लेकिन मेरी छुट्टियां कब शुरू होगीं.. पता नहीं होता था...क्यों की वो रिजल्ट की तरह 30 अप्रैल को नहीं आती थी...लेकिन मई शुरू होते ही....मानो मुझे उसकी आहट सुनाई देने लगती थी.... और उसका इंतजार मेरी दिनचर्या का हिस्सा होता था....दिन भर न जाने क्या क्या बहाने सोचता था...कि किसी न किसी तरह उसकी नानी के घर हो आंऊ....और तसल्ली कर लूं....उसकी नानी धार्मिक थी...यानि पूजा पाठ करती थी...मंदिर जाती थी....सो अपन को एक बहाना था....नानी को सुबह सुबह फूल दे आता...राम राम कर आता ..और इस बहाने पूरा घर खंगाल आता....मां से पूछ पूछ कर नानी को कभी अचार...कभी पापड़ और न जाने क्या क्या दिन भर उनको पहुंचाता रहता...कोई पता पूछने आए...तो घर तक ही पहुंचा आउ...या फिर शाम को उनसे रामायण या फिर महाभारत की कहानियां सुनने जाता था...लेकिन वो कहांनियां आधे मिनिट बाद ही उबाऊ हो जाती थी..जैसे ही पता चलता कि एक दिन और खत्म हुआ..वो नहीं आई....फिर किसी दिन अचानक आम पर बौर की तरह वह चली आती ....हर साल वह कुछ बदल सी जाती...शायद उसकी उम्र बड़ती जाती....वह फ्राक से सलवार सूट पर आ गई..और फिर वह अपने दुपट्टे पर विशेष ध्यान देने लगी...वह उन जेठ की दोपहरी में सावन की तरह आकर मेरे आंगन में बरसती थी... ..और मेरी छुट्टियां शुरू हो जाती.....नए नए खेल...नई नई बातें..नई नई कहानियां ....जिंदगी ही जैसे चमेली की तरह महक उठती..
टूटने.....फूटने या गुमने के डर से ....में पूरे दस महीने किसी के साथ भी कंचे नहीं खेलता था.....उसे दिखाने के लिए साल भर में सील लगे डाक टिकिट जमा करता था तो कभी पुराने सिक्के....तो कभी माचिस की खाली डिब्बियां...या फिर चमकनी कागज...प्लास्टिक के रंगीन टुकडे....कुछ अजीब सी चीजें...जिन्हें वो अपने खेल में इस्तेमाल कर सकें...मैं साल भर जमा करता.. मैं पतंग उड़ाने के लिए हर समय सद्दी को माजां बनाता रहता था....हमारे शहर में मिलने वाला एक विशेष तरह का मिरचुन उसे पसंद था...उसके लिए पैसे जमा करना...उसे लाना और उसे खिलाना अपने लिए चारों धाम करने जेसा था...उसके घर में नल नहीं था...सो वो हमारे घर से पानी भरने आती थी....मैं इन दो महीनों में अपनी मां की मदद करता पानी भरने में...मेरी मां या तो इतनी सीधी थी....को वो मेरी इस मदद की मंशा कभी समझ ही नहीं पाई....या फिर इतनी समझदार कि उसने कभी जाहिर ही नहीं होने दिया...कि वो समझती है....शुरूआती दिनों में ही एक रोज उसके घर की दोपहर में ही बिजली चली गई....और में उसकी नानी को अपने घर ले आया....मेरे घर के बड़े से कूलर के सामने उसकी नानी मेरी दादी के साथ आराम करती रहीं...उसकी मां मेरी मां के साथ और हम सिर्फ बातें करते रहे....जाते वक्त उसने कह दिया कि कितना अच्छा होता कि अगर हमारे घर की लाईट रोज जाती....हम छोटे थे...लेकिन इतनी समझ न जाने कहां से आ गई थी...कि हर रोज उसके घर की लाइट दोपहर को चली जाती .....और में उसकी नानी को अपने घर ले आता....नानी से कहता कि दादी ने बुलाया हैं....और दादी से कहता कि नानी को गर्मी लगती है...और दोनों लोगों ने कभी भी एक दूसरे से इस बारे में जिक्र नहीं किया दोपहर हमारी अच्छी कटने लगी....जैसे ही हमारे बुजुर्ग जागते उसके कुछ देर बाद ही उसकी लाईट आजाती और वह चाय के साथ ही विदा हो जाती है...हमारी छत एक थी....वो अपने भाई बहिनों में सबसे बड़ी और में अपने परिवार में...शाम होते ही हम अपनी छत पर पानी डालते और बिस्तर बिछा लेते फिर कहांनियां सुनाते...हमारे भाई बहिन कभी दो तो कभी चार कहांनियां तक जागते रहते....आखरी व्यकित के सोते ही हमारी कहानियों के पात्र बदल जाते.....और फिर हम कई बार सुबह तक बतियाते ही रहते....
वे दस महीने जो उसके इंतजार मे कटते....और वे दो महीने जो उसके साथ गुजरते....जिंदगी के इस चक्र में हमें कभी समझ में ही नहीं आया....न पता चल पाया....कि हम दोपहर में गुड्डी गुड्डी...राजा मंत्री चोर सिपाही और सांप सीड़ी खेलते खेलत....कब घर बसाने लगे...कब जिंदगी..जिंदगी खेलने लगे...रात में सोते समय कहानिंया बदलते बदलते हम कब चिठ्ठियां बदलने लगे....हमारी जिंदगी गर्मियों की छुट्टियों में ही बढ़ने...संभलने....गुनगाने और नांचने लगी....लेकिन फिर एक गर्मी की छुट्टी वो नहीं आई...उसके पिता का पत्र आया मेरे पिता के लिए...वो भी हल्दी लगा....हुआ....मेरी आँखों ने सिर्फ हल्दी लगी ही चिठ्ठी देखी...बाकी कुछ भी छलक आए आसुंओं ने देखने नहीं दिया....गर्मी की छुट्टी शुरू होने से पहले ही उसकी नानी और नाना.....शायद तैयारियों के लिए उसके शहर ही चले गए....वो नानी का घर जिससे मुझे पूरी गर्मी की छुट्टियां कभी मंदिर की आर्तियां तो कभी आजानें सुनाई देती थी....खंडर रहा ......एक सन्नाटा पूरे घर पर पसरा रहा.....और उसके बाद मेरी जिंदगी में न कभी वो आई और न गर्मी की छुट्टियां....

8 comments:

  1. chitio me to har kisi ko nani ki yaad aati hai........

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  2. ओह! बस अब यादें संजोये रहिये उन सुखद अहसासों के साथ..और तो क्या कहें.

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  3. आलोक जी , सच कहा आपने , सबके पास होती हैं ऐसी यादें । सुंदर यादें , किसी अनमोल धरोहर की तरह होती हैं और सबसे बडी बात तो ये कि इन्हें सहेजना नहीं पडता , अपने आप सहेजी जाती हैं ।

    एक सलाह है , पोस्ट को अलग अलग पैराग्राफ़ में लिखें और यदि थोडा और आवश्यक बनाना है तो तस्वीर भी डाल सकते हैं ।

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  4. Dear Alokji,

    Shayad aapka blog wo bhi padh le.

    Dil se likh rahe hain. likhte rahiye.

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  5. Dear Alok ,
    Aaj fursat me aapke saare blogs pad liye ...bahut achchha laga ... AIIMS me aapka aana aur hum logo se milna bahut achchha lagta hai...Likhte rahen...

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  6. Bhut achi lgi dil ko chhu liya yar

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  7. आलोक भाई ...पुनर आगमन या पुनर् लेखन के लिए बधाई...
    यही कह सकता हूँ.." मिलती है जिंदगी में मुह्हबत कभी कभी "

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