Thursday, April 14, 2016

शिव भैया हारते नहीं हैं। शायद इसीलिए उनके मरीज आसानी से नहीं मरते।

शिव भैया तब भी नहीं हारते। जब मरीजों  के  परिवार वाले। भैया के स्टाफ वाले भी थक जाते हैं। और कहीं न कहीं  यह यकीन कर लेते हैं। भगवान ने मरीज की डोर खींच ली है। मैं मेडीकल भाषा में नहीं समझा पाउगां। लेकिन मैने देखा है कि मरीज के प्राण निकल गए हैं। ऐसा लगता है। शायद। इसके बाद भी वे उसके शरीर के साथ  जद्दोजहद करते रहते हैं। पिछले दिनों मैंने देखा । एक मरीज की शायद मौत की खबर उनका जूनियर उन्हें सुनाने आया था। वे बिजली की तरह भागें। न जाने क्या क्या करते रहे। फिर उसे अापरेशन थिएटर में ले गए। फिर कुछ करते रहे। करीब एक घंटा बाद उस व्यक्ति के साथ वापस लौटे। वे बोलते कम है। लेकिन आखों से लगा कि यमराज को शायद ललकार वापस ले आए हैं।  आज उस मरीज की छुट्टी हो गई। वह स्वस्थ्य होकर  घर चला गया। लिख इसलिए रहा हूं। कि शिव भैया जो दूसरो के साथ करते हैं हम उतना भी अपने साथ नहीं  कर पाते। हम हथियार डालने में। हार मानने में माहिर हो गए हैं। हमारी किस्मत में  नहीं था। यह कहकर चुप हो जाना हमारे लिए ज्यादा आसान है। शिव भैया मानो अपने मरीज के प्राणों के लिए काल से लड़ते है। अपनी बाजूओं और पुरूषार्थ के दम पर उसके चगुंल से  जीवन खींच लाते हैं। इसके लिए शायद यकीन चाहिए। अपने ऊपर। गुस्सा चाहिए सामने वाले दुश्मन पर। और हां जुनून तो चाहिए ही। एक एम्स बनने में शायद कई शिव भैया लगते है। लेकिन एक ड़ॉ शिव चौधरी बनने में ना जाने कितने इंसान लगते होगें। पता नहीं।

No comments:

Post a Comment