Friday, April 22, 2016

लोग उन्हें सनकी। पागल कहते रहे। लेकिन वे जिंदगी भर अपने मरे हुए दोस्त के साथ घूमते रहे।

बात मजाक से शुरू हुई। लेकिन मुझे यह सालों पुराना किस्सा याद आ गया। मेरे दादा यह किस्सा सुनाते थे। वे बताते थे। शुरूआती दिनों में उनके साथ एक तिवारी जी मास्टर थे। कम बतियाते थे। बेहद दिमागदार। अनुशासित। छात्रों में बेहद लोकप्रिय। लेकिन वे किसी से तपाक से नहीं मिलते थे। वे धीरे धीरेे घुलते थे। जैसे पानी में शक्कर घुलती है। और फिर एक दिन अचानक उनके व्यक्तित्व की पूरी मिठास तुम महशूश कर सकते थे। उन्हें कुछ लोग पागल। कुल लोग सनकी। और कुछ लोग हाफ माइंड भी कहते थे। उकने जीवन का एक किस्सा है। जो मेरे दादा को बहुत प्रिय था। और उन्होंने सुनाया तो मुझे भी प्रीतीकर लगने लगा।
तिवारी जी आठवी क्लास में थे। जब उनकी मित्रता एक दोस्त से हुई। मैं नाम नही जानता। शायद दादा भी भूल गए थे। दोनों मित्रों में प्रेम भी था। दोनों लोग सुबह उठकर घूमने भी जाते थे। दोस्ती ऐसी हुई। दोनों की नौकरी भी मास्टरी की लगी। वो भी एक ही स्कूल में। और उनका सुबह का घूमना बा दस्तूर जारी रहा। हादसा कैसे हुआ पता नहीं। लेकिन एक रेत से भरे ट्रक ने उन्हें कुचल दिया। और मौके पर ही उनकी ठौर मौत हो गई। लेकिन इस हादसे का तिवारी जी पर अजीब असर हुआ। वे दूसरे दिन अपने दोस्त के घर पहुच गए। जैसे उसे लिवाने जाते थे। फिर वापस उसे छोड़ने भी गए। जब भी तिवारी जाते थे। उनके दोस्त तैयार होने में हमेशा कुछ समय लगाते थे। तो उन्हें कुछ देर रुकने की आदत थी। सो बे हमेसा कुछ देर रुकते भी थे। शुरूआत में लोगोंं ने कहा कि शायद यह दोस्ती का दिखावा है। कुछ महीनों बाद लोगों ने कहा कि सनक है। फिर किसी ने कहा पागलपन है। फिर कहा गया कि हादसे से उनके जीवन पर गलत असर हुआ है। बात तो जब अजीब हो गई। जब उनके दोस्त के परिवार वालों ने उनके चलते घर ही बदल दिया। लेकिन दादा बताते थे। तिवारी जी जब तक जीवित रहे। अपने उस दोस्त के घर जाते थे। और उसके साथ जीवन भर घूमते रहे।
मुझे अब लगता है क्या था यह। सनक। पागलपन। या फिर प्रेम। क्या किसी नियम के प्रति इतना समर्पण मुमकिन है। जो भी हो। लेकिन आज की दुनिया में ऐसा किसी का करना। नार्मल नहीं है। लिहाजा वे जो भी थे। नार्मल नहीं थे।

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