Saturday, February 13, 2016

शायद दिख जाए। इसी आशा में आधी रात को भी उसी गली से होकर गुजरते थे।


दादी बहुत चिंता करती थी। सो अपन गिनती के बार ही नौ से बारह फिल्म देखने गए। और वे तभी सोती थी। जब पूरे सदस्य घर आ जाते थे। लेकिन इसके बाद भी कभी आधी रात को घर लौटना हुआ। बाहर गए और आधी रात को सागर लौटे। पढ़ाई के नाम पर जब पूरी रात जागने की नौटंकी करते थे।ऐसे समय में भगवान का नाम लेकर चांस ले ही लेते थे। यानि जब भी मौका मिला उस गली के चक्कर लगा ही लेते थे। उम्मीद में शायद दिख जाए। जिंदगी में मौका किस रूप में आता है। इसकी गैरंटी कोई नहीं ले सकता। यह फार्मूला जिंदगी के हर क्षेत्र में लागू होता है। लेकिन मंजिल के प्रति इतना जुनून कहां होता है। कि आप हर मौके को इस्तेमाल करना चाहते है। वो तो जिंदगी में सिर्फ उसी दौरान होता है। 
अपन ने कभी नशा नहीं किया। सो नशे की तलब नहीं जानते। न नशा करके छोड़ा। लिहाजा नशा न मिल पाने की वजह से जो तड़प होती है उससे भी कभी वास्ता नहीं पड़ा। लेकिन एक सेकेंड को हल्की सी ही सही वह शक्ल दिख जाए तो क्या मजा आता है। और न दिखे तो क्या परेशानी होती है। आप लोग भी जानते होगे। जिंदगी में कभी न कभी किसी को देखने की ऐसी तलब आप को भी हुई होगी। लेकिन समझ में  नहीं आता ये लोग घर में क्या काम करने लगते हैं। कभी एक्सीडेंट से भी बाहर नहीं दिखते। अपन ने दिन के हर पहर मे ंट्राई किया। कभी सफल नहीं हुए।



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