हमारे पिता पान के बहुत शौकीन हैं। उनके जीवन में पान की दुकान के किस्सों का भंडार है। वे एक बात अक्सर सुनाते हैं। सिविल लाइंस चौराहे पर एक दादा की पान की दुकान थी। वे पान की दुकान चलाने वाले दादा कम और डाक्टर ज्यादा थे। उनके पास हर बीमाारी का इलाज होता था। पिता ने बताया कि वे एक डाक्टर मित्र के साथ हाइड्रोफोबिया पर कुछ बात कर रहे थे। बात चल रही थी। कुत्ता काटे और फिर हाइड्रोफोबिया हो जाए तो बचना मुश्किल है। दादा ने बीच में ही अपना इलाज बताया। बोले डाक्टर साहब जिस व्यक्ति को यह बीमारी हो जाती है तो क्या उसके पेट में पिल्ला हो जाते है। यानि कुत्ता के बच्चे। डाक्टर साहब को भी लगा कि बात बड़ाने से क्या फायदा। चालू भाषा में ही समझा दो। वे बोले हां। फिर दादा ने इलाज बताया बोले डाक्टर साहब जिस व्यक्ति के लिए यह बीमारी हो उसे दस्त की दवाई दे दो। जितने कुत्ता के पिल्ला पेट में होगें। वे सब निकल जाएगें। पिता ने कहा हां दादा और चाहोंं तो उन पिल्लों को बैच भी दो। दादा चुप रहे। लेकिन वे इस बात से सहमत जरूर थे।
कुछ बातें तय है। जैसे देने वाला बड़ा होता है। चाहे वह सलाह ही क्यों न हो। किसी को भी सलाह देने के कई फायदे हैं। सबसे पहले जैसे ही आप सलाह देते है वैसे ही सामने वाले से ऊपर हो जाते है। वह आपकी सलाह सुन रहा है। इसका मतलब साफ है। वह आप से कुछ ग्रहण कर रहा है। और आप मुफ्त में उसे कुछ दे रहे है। यह भाव आते ही व्यक्ति कृष्ण हो जाता है। इसे जाने बिना ही कि सामने वाला अर्जुन हुआ या नहीं। उसमें देवत्व प्रवेश करता है और गीता शुरू हो जाती है। अपन जैसे लोग जो जिंंदगी की दौड़ में पीछे रह गए उन्हें सलाह देने वाले बहुतायत में मिलते है। वे लोग जो संयोग से किसी बेहतर नौकरी में चले जाते है। उनसे मिलकर तो मजा ही आ जाता है। वे तो अलबर्ट आइंसटीन को फीजिक्स समझाने को भी तैयार रहते है।
लोग अपनी बात पूरी करके यह जरूर कहते है कि हम तो भैया मुफ्त में सलाह दे रहे है। मानना हो तो मानो न मानना हो तो मत मानो। हालाकि जिन दो जगहों पर जहां हमें अक्सर सलाह की जरूरत होती है। वहां पर मिलती नहीं। जो जरूरी होती है। उसकी कीमत होती है।चाहे डाक्टर से सलाह लेनी हो या फिर वकील से। फीस तय है। ये अलग बात है कि हर बीमारी का उपचार किसी ने किसी के पास होता ही है। जैसे उसके पास अपनी समझदारी के किस्से रटे हुए रहते है.। हिंदुस्तान में तो रास्ता चलता व्यक्ति भी डाक्टर है। वह अापको हर बीमारी का इलाज बता देगा।
कुछ बातें तय है। जैसे देने वाला बड़ा होता है। चाहे वह सलाह ही क्यों न हो। किसी को भी सलाह देने के कई फायदे हैं। सबसे पहले जैसे ही आप सलाह देते है वैसे ही सामने वाले से ऊपर हो जाते है। वह आपकी सलाह सुन रहा है। इसका मतलब साफ है। वह आप से कुछ ग्रहण कर रहा है। और आप मुफ्त में उसे कुछ दे रहे है। यह भाव आते ही व्यक्ति कृष्ण हो जाता है। इसे जाने बिना ही कि सामने वाला अर्जुन हुआ या नहीं। उसमें देवत्व प्रवेश करता है और गीता शुरू हो जाती है। अपन जैसे लोग जो जिंंदगी की दौड़ में पीछे रह गए उन्हें सलाह देने वाले बहुतायत में मिलते है। वे लोग जो संयोग से किसी बेहतर नौकरी में चले जाते है। उनसे मिलकर तो मजा ही आ जाता है। वे तो अलबर्ट आइंसटीन को फीजिक्स समझाने को भी तैयार रहते है।
लोग अपनी बात पूरी करके यह जरूर कहते है कि हम तो भैया मुफ्त में सलाह दे रहे है। मानना हो तो मानो न मानना हो तो मत मानो। हालाकि जिन दो जगहों पर जहां हमें अक्सर सलाह की जरूरत होती है। वहां पर मिलती नहीं। जो जरूरी होती है। उसकी कीमत होती है।चाहे डाक्टर से सलाह लेनी हो या फिर वकील से। फीस तय है। ये अलग बात है कि हर बीमारी का उपचार किसी ने किसी के पास होता ही है। जैसे उसके पास अपनी समझदारी के किस्से रटे हुए रहते है.। हिंदुस्तान में तो रास्ता चलता व्यक्ति भी डाक्टर है। वह अापको हर बीमारी का इलाज बता देगा।
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