Saturday, April 23, 2016

प्यास लगी है। बहुत तेज। दलाली की कुदाल से कुआं खोदूं या फिर कलम से।


किस्से कहानियां। कहावते। संस्मरण। जब सुनों तो कितने अच्छे लगते है। लेकिन जब खुद ही आजमाएं जाओ। तब मुश्किल होती है। तब उनके अर्थ शब्दों से निकलकर तुम्हारे सामने जिंदगी-जिंदगी खेलते है। अपन ने कितने बार सुना है कि नाविक की परीक्षा तूफान में होती है। पुरूष का धीरज मुसीबत से परखा जाता है। भोजन का संयम। भूख लगने पर समझ में आता है। यह बात सच मालुम होती हैं। जब तुम संकट में हो। तुम्हें किसी चीज की जरूरत हो। और तुम उसकी उपलब्धता से इंकार करते है। कुछ विचारों की वजह से। यहां आकर विचार बड़े हो जाते है। और जरूरत छोटी।
पिछले कुछ दिनों से अपन आर्थिक तंगी से गुजर रहे है। ऐसे में पत्रकारों के सामने एक आसान तरीका होता है दलाली का। उन लोगों को जिन्हें तुम जानते पहचानते है। उनके दलाल हो जाओ। यह कमाऊ तरीका भी होता है। और आसान भी। समाज इस तरह की चीजों को पहले ही स्वीकार कर चुका है। आपको समझोता अपने आप से करना है। दूसरा रास्ता होता है। लिखने पढ़ने का। कठिन और लंबा। जिंदगी कई बार दोराहे पर आकर खड़ी हो जाती है। लेकिन तुम्हारे कुछ अपने होते है। उनकी भी परीक्षा होती है। शिव भैया से गप कर रहा है। उन्होंने कहा कि कई बार कुदाल से कुआं खुद तो जल्दी जाता है। लेकिन पानी पीने लायक मिले। जरूरी नहीं। कलम से कुआँ न सही कोई नहर ही बन जाए। और अगर कहीं कोई झिर मिल गई। तो तुम्हारा भाग्य हो सकता है। लेकिन तुम्हारे अपने उस झिर से प्यास बुझाकर खुश होगें। लेकिन कई बार आदमी कुआँ का पानी पीकर कहता है। पानी खारा है। और प्यास भी नहीं बुझती। रही तुम्हारी प्यास की बात तो तुम्हें प्यासा नहीं मरने देगें। इसकी जबावदारी हम लेते है।

No comments:

Post a Comment