Sunday, April 17, 2016

मैंने कहा स्कूल में मेरा कुछ हिस्सा छूट गया है। वो वापस दिला दो।

करीब पच्चीस साल बाद सूर्य प्रताप सिंह से बातचीत हुई। अग्रेंजी में एमए साथ किया था। फिर कुंभ के मेले में भाइयों की तरह बिछड़ गए। WhatsApp ने  आज वापस मिला दिया। पूछा कहां हो। उन्होंने बताया कि सेंट्रूल स्कूल नंबर एक में पीजीटी अंग्रेजी हो गया हूं। मैंने कहा मेरी स्कूल में। उन्होंने हैरत जताई। फिर कहा हां। कहा कुछ काम हो  तो बताना। मैं मदद करूंगा। मैंने कहा कि मेरे कुछ टूटे हुए सपने बारवहीं क्लास के डेस्क पर रखे हैं। उनकी तामील करा दो। स्कूल की लाइब्रेरी में कुछ दोस्त गुम हो  गए थे। वे फिर मिले नहीं। उनसे मिला दो। स्कूल के पीछे एक केैंटीन थी। जहां कुछ रिश्ते बने थे। चाय और चाकलेट में लिपटे थे। वे अधपके रह गए है। उन्हें अंजाम तक पहुंचना था। वे भटक गए। उन्हें मंजिल तक ले आओ। फिजिक्स के लैब में एक कहानी अधूरी सुना कर आ गया था वो पूरी करनी है। समय को वापस पलटा दो। वे बोले ये मैं नहीं कर सकता।
जिंदगी के वे साल पता ही नहीं चले। कितनी स्पीड से निकल गए।  रफ्तार से निकली हुई किसी कार की धुधली सी यांद रह जाती है। बस वही है। कितना मजा। कितने सपने। कितने दोस्त।कितने किस्से। जमीन के उस हिस्से में बनते हैं। पनपते हैं। और जब उऩ्हें छोड़कर हम आगे बड़ते है। तो एक उम्मीद रहती है। कि बस अभी गए। और अभी वापस आकर सब कुछ बटोर कर ले जाएगें। अब तो पच्चीस साल से ज्यादा हो गए। कुछ दोस्त कभी कभार मिल भी जाते है। लेकिन न वो फुर्सत है। न वो तपाक से मिलते है। कुछ जो बह गया है। हमारे बीच अक्सर बना रहता है। लेकिन चलो इच्छा है कि कभी स्कूल जाकर अपना हिसाब-किताब पूरा करेंगे। पूछेगें। कि जो तुमने दिया वो मेरे साथ है। लेकिन जो तुमने देकर वापस छीन लिया था। वो कहां है। जो तुमने साथ किया था। वो मेरे साथ है। लेकिन जो तुम्हारे हवाले कर गया था। वो कहां गया।
स्कूल बताओ वो संडे के बाद बैचेन सी आंखें कहां है। जो सोमवार को दूर तक टकटकी लगाकर देखती थी। वे किताबें कहां  है। जिनके बीच में मैंने कुछ पत्र छोड़े थे। तुमसे कहा था। जबाव लेकर आना। क्या हुुआ। वे सुबहें कहांं हैं। जहांं पर जिंदगी नया जन्म लेती थी। वो ब्लेक बोर्ड कहां गया। जहां पर मेरा नाम उसके साथ मेरे एक दोस्त ने लिखा था। वो सालाना जलसा क्या हुआ। जब पर्दे के पीछे मैने उसका हाथ पहली बार पकड़ा था। वो मार्कशीट कहां गई। जहां  मेरा नाम आने पर उसकी आंखे ज्यादा बैचने होती थी। वो मंच का क्या हुआ। जहां से मैं बोलता था। और दूर से मुझे सिर्फ आंखे बजती हुई दिखती थी। बोलो स्कूल वो गेट कहां  गया। जहां से जानेे की उस रोज इच्छा ही नहीं  थी। मैं जानता था तुम धोखेबाज हो। तुमने कहा था। जाओं। जीवन में आगे चलो। जब कहोगे। तुम्हारा सब सामान वापस मिल जाएगा। स्कूल मुझे वापस चाहिए। वो वक्त। अपने पूरे दोस्त।

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