Thursday, April 28, 2016

कान्हा स्कूल जाते वक्त रोता है। और अनिता लौट कर

कान्हा स्कूल मजे से जाता था। कभी कभार मना करता था। लेकिन अब नर्सरी में कुछ दिनों से दुखी है। शायद उसका समय अब करीब करीब तीन गुना हो गया है। वो भी एक वजह है। लेकिन बहुत पूछने पर उसने बताया कि उसे स्कूल जाने से डर लगता है। वजह उसने बताई कि मैडम बच्चों को जोर से डांटती है। मैंने पूछा तुम्हें डांटती है। कहा नहीं। बोला हम तो शैतानी करते नहीं। जो बच्चे शैतानी करते है। उन्हें डांटती है। मैने पूछा तो तुम क्यों डरते  हों। मजेदार जबाब दिया। कहा कभी हमें डांट दिया तो। मैंने मन में सोचा। डर का  यही सिंद्धांत है। जो हम शुरू से  ही सीख जाते है। मैंने कहीं पड़ा था कि जिंदगी में हम उन चीजों  के लिए भी कई बार चिंतित हुए.जो कभी हुई ही नहीं।. ..लेकिन क्या कर सकते है। यही मानव स्वभाव है।
हमारे बुंदलेखंड में  एक लोक कथा है। मुझे अच्छी लगती है.। आपको  भी सुना देता हूं। एक व्यक्ति गर्मी में घर के  बाहर सो रहा  था। अचानक जोर जोर से रोने लगा। लोगों ने पूछा क्या हुआ। बोला अभी तो कुछ नहीं हुआ। फिर क्यों  चिल्ला रहे हो। लोगों ने दूसरा सवाल पूछा। उसने बताया कि उसकी छाती पर से एक चींटी निकल गई है. लोगों ने कहा तो रोने की क्या बात है। उसने  कहा कि कल चूहा निकलेगा। फिर बिल्ली निकलेगी। कुत्ता निकलेगा। एक दिन देखते देखते हाथी निकलेगा। और मैं फिर मर जाउंगा। आज जानवरों ने रास्ता देख लिया है.। इस लिए मैं रो  रहा हूं।
बहुत मुश्लिक होता है। रोते हुए बच्चे को  स्कूल भेजना । कितनी बातें। कितना समझाना। कितनी कहानियां गढ़ना। लेकिन अंत में जब वह स्कूल के  गेट पर चिपट कर रोता है। और कहता हैं मैं शैतानी भी नहीं करूंगां। मुझे वापस घर ले चलो.।.  हांड़ मुंह को आते है। शायद इसीलिए यह काम न कभी मेरे पिता कर पाए। और न मैं। मुझे दादा भेजते थे। कान्हा को  उसकी मां।  लेकिन कान्हा स्कूल जाते वक्त रोता है। और अनिता उसे भेजकर वापस आती है। जब रोती है। 

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