Tuesday, April 26, 2016

दोस्त ने सलाह दी है। सोशल मीडिया कमजरो दिखने की जगह नहीं है। न ही हर वक्त रोने की।

गालियां देना शुरू किया। उन्होंने फोन उठाते ही। हैलो नहीं कहा। वे गालियां नहीं लिख रहा हूं। बेवजह आपके मुंह का स्वाद खराब होग। कहने लगे पागल हो गए हो क्या। आजकल फैसबुक पर क्या लिखते रहते हो। हर समय रोते क्यों रहते हो। सोशल मीडिया को समझो। यहां पर कमजोर मत दिखो। अगर हो तो भी नहीं। यह प्लेटफार्म दुख या परेशानी सांझा करने के लिए नहीं हैं। इसका इस्तेमाल तुम भले ड्राइंग रूम में बैठकर कर सकते हो। लेकिन यह तुम्हारा ड्राइंगरूम नहीं है। देखा नहीं तुमने। लोग कितने सज संवर के। अपना फोटो अपडेट करते है। यहां पर अपना हर एचीवमेंट शेयर करते है। यहां कुछ अच्छा लिखो। यहां पर जितने हो उससे बड़े दिखों।
मैंने उनका फोन रखा। और मुझे अपनी स्कूल की कालू मैडम याद आ गई। कालू मैडम ने पहली बार दर्द से परिचय कराया था। बहुत छोटा था। शैतान भी नहीं था। लेकिन कालू मैडम पूरी क्लास को एक साथ मारती थी। थोड़ा भी कोई हल्ला करे। वे पूरी क्लास को खड़ा करके एक साथ मारती थी। उम्र में कम थे। तो कई बार हम लोग रोेने भी लगते थे। उनकी विशेषता थी। जो रोया उसे वे एक स्केल और मार देती थी। चिल्लाकर कहती थी। बिलकुल चुप। रोना मत। हमारा समाज भी कालू मैडम होता जा रहा है। मारता भी है। और रोने भी नहीं देता।
मैं उस समाज को अपना कैसे कहूं।जहां पर रोने के कायदे हो। और हंसने के लिए नियम। यानि अगर अाप अपना दुख सुख भी अपने मुताबिक नहीं अभिव्यक्त कर सकते तो फिर समाज आपका कैसे हुआ। और हर वो चीज जो अपने हिसाब से अभिव्यक्त नहीं की जा सकती। वो कुंठा बन जाती है। कुंठित समाज हो या व्यक्ति तरक्की नहीं कर पाता। मैं ऐसा मानता हूं।

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