Friday, April 29, 2016

कान्हा परेशान हैं कि वो अपने आप को नहीं देख पाते। उसे कौन बताए हम भी तो नहीं देख पाते।

मेरा तीन साल का बेटा कान्हा परेशान है। वो अपने आप को नहीं देख पाता। लेकिन उसे कौन बताए कि हम भी तो अपने आप को नहीं देख पाते। दूसरों को ही देखते हैं। जिस दिन इतनी क्षमता विकसित हो जाएगी। अपने अाप को देखने की उस दिन हम संत हो जाएगें। मैंने कहीं पढ़ा था। इस दुनिया में तीन चीजें सबसे सख्त है। हीरा। इस्पात। और अपने आप को जानना। वैसे यह बात भी है कि हम कोशिश ही कब करते है।अपने आप को जानने की। हर दम हम दूसरों से या तो अपनी तुलना करते रहते है। या फिर उन्हें बेहतर मानकर उनसे जलते रहते है। कल एक नेताजी के पास हम बैठे थे। वे अपने समय कई दिग्गज नेताओं के साथ काम कर चुके है। इनमें सीताराम केशरी भी शामिल है।  उन्होंने एक अच्छी बात कही।  राजनीति में हर वो व्यक्ति जो तारीफ अपने मुंह से करता है। यकीन मानकर चलिए उसे मूर्ख बनाया जा सकता है। और यही कमजोरी हमारे कई बड़े नेताओं में  है। उन्होंने यह भी  कहा कि इस मनोविज्ञान के व्यक्ति से लंबी बातचीत  करना आसान होता है। एक मुख्यमंत्री ने  उन्हें दस मिनिट के लिए चाय पर बुलाया था। लेकिन इस कमजोरी के चलते बैठक लंबी चली। मुख्यमंत्री जब भी चुप हो। वे उनकी शान में एक बात गिना दी। वे फिर शुरू हो जाए। और बात मुलाकातों और मुलाकातें दोस्ती में बदल गई।
कान्हा शायद बड़ा होकर समझ जाएगा कि अपने आप को देखना कठिन काम है। जो अपने अाप को देख ले। समझ ले। फिर वो कभी दुखी नहीं होता। संतुष्ट हो जाता है। क्यों की हम अपने दुख से कम दुखी है। दूसरों के सुख से ज्यादा दुखी  है। 

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