Sunday, May 23, 2010

साहब के अच्छे बच्चे प्लेट चाटते मिले। मॉम ने कहा था बच्चे चाय नहीं पीते।

इलेक्ट्रानिक मीडिया में पत्रकार होने के चलते समय का अभाव रहता है। हम अच्छे पतियों की तरह शाम सात बजे घर नहीं आ सकते। न हीं कुर्ता पायजामा पहन कर पत्नी के साथ खाना खाने के बाद टहलने निकल सकते हैं। न शर्माजी के घर उनकी शादी की सालगिरह पर जा पाते हैं। और न हीं खरे साहब के बच्चे के जन्मदिन पर। कभी किसी की शादी में पहुंचे भी तो टेंट वाला सामान समेटता हुआ मिला। यानि अपना किसी के घर आना जाना मुश्किल ही होता है। लेकिन फिर भी कुछ दोस्त इतने गुस्सा हो जाते हैं कि उन्हें मनाना ही पड़ता है। अपने सागर के ही एक दोस्त हैं। वे केंद्रीय सरकार के एक मंत्रालय में अफसर है। और उनकी पत्नी दिल्ली की ही हैं। वे रहती तो घऱ में हीं है। लेकिन देखने वाले को वे अफसर लगती है। और मेंरे दोस्त उनके दफ्तर में क्लर्क।
गुस्सा। ताना। अनबन। ये सब कई महीनों से चल रहा था। हम रविवार के दिन उनके घर चाय के समय पहुंच ही गए। वे सरकारी अफसर हैं। सो वैसी ही उनकी चाय थी। हम लॉन मैं बैठे। वहीं चाय आई। चाय के साथ बिस्किट भी। और गप्पें शुरू हुई। चाय हमें और हमारी पत्नी को आई। साथ में उन्हें और उनकी पत्नी को भी। हम घर से सीखकर आए हैं। इज्जत में बड़े पहले। खाने पीने में बच्चे पहले। सो चाय हमने सबसे पहले उठाकर उनके दोनों बच्चों को दे दी। हमारी अफसर भाभी ने चाय के कप प्लेट लगभग उनके हाथ से छीन लिए। हमारी तरफ भी कुछ गुस्से में देखीं। मानो कह रही हों।एक तो बुंदेलखंड का आदमी। फिर पत्रकार । हर लिहाज से इंफिरियर। और फिर उन्होंने बताया कि अच्छे बच्चे चाय नहीं पीते। उन्हें मुआवजे के रुप में उन्होंने एक एक बिस्किट थमा दिया। हमें लगा कि हमारे परिवार ने हम खूब चाय पीने दी। शायद यही वजह है कि हम कलम घसीटी कर रहे हैं। अफसर नहीं बन पाए। गप्पे चलती रही। हम चलने को हुए। तो भाभी को लगा कि अभी घर तो बचा ही हुआ है। सो हम उनके फूल और बागवानी भी देखने गए। जब हम वापस आ रहे थे। तो हमने देखा कि उनके दोनों बच्चें हमारी चाय की झूठी प्लेट चाट रहे हैं। हमे लगा कि कह दें। भाभी इन्हें बुरे बच्चों की तरह चाय पीने दीजिए। नहीं तो ये अच्छे बच्चे बनकर बाद में इस तरह के काम करेंगे।
बात चाय पीने की या मेहमान की झूठी प्लेट चांटने की नहीं है। बात उस विचार की है। जो आप अपनी ताकत से दबाते हैं। हर वह इच्छा जो बिना जायज वजह के दबाई जाती है। अक्सर कुंठा बन जाती है। और विकृत रुप में बाहर निकलती है। हमनें सुना है कि एक बार फ्रायड अपने परिवार के साथ एक पार्क में घूमने गए थे। अचानक उनका बच्चा गायब हो गया। फ्रायड ने अपनी पत्नी से पूछा कि तुमने उसे कहीं जाने को मना किया था। उन्होंने बताया कि पानी के पास। उन्होंने कहां वह वहीं कहीं होगा। और वहीं मिला भी। पानी के ही पास। हम बच्चों को जिस चीज के लिए ताकत के बल पर रोकतें है। वह उनकी इच्छा की अभिव्यक्ति को कुंठित करता है। हमें उनकी इच्छा को एक संयमित और बेहतर रास्ता देना चाहिए। बजाए इस तरह दबाने के। आपके अनुभव क्या हैं हमें बताइएगा।

6 comments:

  1. बढिया संस्मरण है।

    और ये तमाम दिखावटो का ही असर है कि बच्चे न तो पूरे तौर पर हिंदुस्तानी बन पाते हैं और न तो अंगरेज।

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  2. she certainly won't let yo into her house after this!

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  3. she certainly won't let yo into her house after this!

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  4. मेरी भी बच्ची है और मेरा अनुभव भी ऐसा ही है... आप ने सही कहा की ताकत से दबाने के बजाये संयमित और सही रास्ता दिखाना चाहिए

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  5. राष्ट्रीय गौरव के सम्बन्ध में जरूर लिखें /

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  6. राष्ट्रीय गौरव के सम्बन्ध में जरूर लिखें /

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