खबर करवानी थी। हड़ताल पर। इस बार एयर इंडिया के कर्मचारी स्ट्राई पर थे। सो हमने रिपोर्टर भेज कर खबर पर नजर गड़ा ली। आपको शायद हैरत होगी। कि कितने तरह के लोग थे। कितने लोगों की परेशानियां। किसी की परीक्षा। तो किसी की शादी। किसी की नौकरी का मामला। तो कहीं बीमारी। जितने लोगों से हम बात करते गए। परेशानियां उतने तरह की सुनते गए। किसी के रिश्तेदार का देहांत हो गया है। वो उसे आखरी बार देखना चाहता है। लेकिन वह नहीं जा पाता। एयर इंडिया के कर्मचारी हड़ताल पर हैं। ऐसे कई किस्से थे। इन लोगों को समझ में नहीं आ रहा था। कि वे अपनी किस गलती कि कीमत चुका रहे हैं। इस हड़ताल के लिए वे कहां दोषी है।
लोकतंत्र में हड़ताल आम बात है। एक आसान तरीका हैं। लोगों को ध्यान अपनी परेशानी की तरफ खींचने का। लेकिन हम अपनी बात इस तरह से कहके किसको नुक्सान पहुंचाते हैं। किसकी कीमत पर हम अपनी बात पहुंचा रहे हैं। पिछले दिनों हम पानी पर जाम लगा रहे लोगों की खबर कर रहे थे। तभी एक आटो में एक बुजुर्ग महिला हाथ जोड़कर उतरी की जाम खुलवा दीजिए। उसकी बेटी को अस्पताल जाना है। इस तरह की परेशानियां अब आम बात होती जा रही है। हमें यह समझना होगा कि गलती किसकी है। और हम सजा किस को दे रहे हैं। लोकतंत्र में हर आदमी को अपनी आवाज उठाने की इजाजत होनी चाहिए। लेकिन किसी दूसरे और कमजोर की आवाज दबाकर नहीं। क्या कहते हैं आप। विरोध का क्या यह तरीका ठीक है। या फिर हमें अपनी बात कहने को कोई और तरीका भी खोजना चाहिए।
बहुत ही जटिल स्थिति है ! कभी लगता है कि किसी भी प्रकार की हड़ताल पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए, पर प्रशासन में संवेदनशीलता भी तो नहीं है कि बिना इस तरह का तमाशा हुए वह किसी की मांग / समस्याओं को सुन ले....
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