Wednesday, May 12, 2010

क्या आपको याद आती हैं हाथ में पंखा लिए दादी-नानी। मैंने आज इनवर्टर ले लिया।

मुझे यकीन है। आपको याद होगा। कैसे कुछ सालों पहले तक जब हम अपने घरों में थे। कैसे हमारी दादी। कभी नानी। हाथ में पंखे लेकर डुलाया करती थी। कैसे वह ततुरी वाली गर्मी उस पंखे की हवा में काफुर हो जाती थी। छत पर सोते हम और बहुत देर तक नहीं आती थी नींद। गर्म हवा भी आधी रात तक चला करती थी। और ऐसे में ही हमारी दादी के बुढ़े हो चले हाथ लगातार चलते रहते थे। पंखा हिलाते रहते थे। उस समय यह भी था। दादी के सबसे नजदीक सोने के लिए भी तिकड़म भिढ़ानी पड़ती थी। वजह साफ थी जो दादी के पास सोएगा। वही सबसे ज्यादा पंखे की हवा का मजा उठा पाएगा। हांलाकि दादी इस बात का ध्यान रखती थी। कि हवा सबको बराबर मिले। उस हवा में कहानी बोनस होती थी। और दादी बीच बीच में ठोकती भी रहती थी। कि नींद जल्दी आ जाए। लेकिन हम तो अब दिल्ली में हैं।और मशीनों के सहारे जिंदगी काटते हैं। हर काम के लिए एक नई मशीन चाहिए हमें। कभी कभी लगता है कि शायद हम खुद भी तो एक मशीन ही बन गए हैं।
शीला दीक्षित और उनकी सरकार सुप्रीम कोर्ट में भले हलफनामा दाखिल करके कह दे कि दो साल तक हमारे पास बिजली पर्याप्त हैं। बिजली कटेगी नहीं। लेकिन कई मामले तकनीकि होते हैं। आसानी से समझ में नहीं आते। कभी frequency कम हो जाती है। तो कभी लोकल फॉल्ट आ जाता है। यानी बिजली तो कटती ही रहती है। ये बात भी सच है कि हमारी धंधेबाज बिजली कंपनियों को मुनाफा भी तो कमाना है। सो कुछ न कुछ तरीके तो वे खोज ही लेगें। लेकिन ये बात हमें समझते समझते दो महीने लग गए। बिजली कटती रहती और रात को न नींद पूरी होती। न दिन में ठीक से काम। लिहाजा हम इनवर्टर खरीद कर रहीसों की लिस्ट में शामिल हो गए। आप हैं उस लिस्ट में की नहीं।
मशीनें दाम से चलती है। और आदमी भावनाओं से। आपको याद होगा कि कैसे हमारी गर्मी शुरू होती थी। मजे के साथ। लेकिन उस गर्मी में हमारे पास न फ्रिज था। न एसी। न इनवर्टर। फिर भी ठंडे मटके का पानी न जाने केसे ऐसी प्यास बुझाता था कि अंदर का मन तृप्त ही हो जाए। गोबर से लिपे घर। और खपरैल की छतें आग उगलती गर्मी में भी कुछ ठंडक का इंतजाम करती रहती थी। फ्रिज नहीं थे। लेकिन आम और दूसरे फल दादा पानी की हौजों में डालकर ठंडे करते थे। घर के मटकों में कुल्फी जमती थी। और देर रात छत पर दादी कहानी सुनाती थी और पंखे डुलाती थी। लेकिन अब हर चीज के लिए हमारे पास मशीन हैं। लेकिन फिर भी हमारी जिंदगी में इतनी तपिश क्यो हैं। शायद हमसे वे लोग छूटगए जो हमारी जिदंगियों की तपिश खत्म करके हमें बेला की फूल की तरह एक तरावट भरी जिंदगी देते थे। शायद अब भी छत पर दादी पंखे के साथ सो रही होगी। लेकिन हम एसी में करवट बदलते हैं। आपको भी याद आती होगी अपनी दादी और नानी के साथ गर्मी की छत हमें लिखिएगा जरूर।

2 comments:

  1. हम इनवर्टर खरीद कर रहीसों की लिस्ट में शामिल हो गए।'
    मुबारक हो रहीसी

    याद आते हैं वो दिन .. बहुत याद आते हैं
    बहुत सुन्दर आलेख

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  2. hamare yaha baas ka bena hota hai,aaj bhi gaon me.lekin ab wo variety nahi rahi ,na hi rahe use banane ka hoonar rakhnewale.

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