हम अपनी पीठ खुद नहीं थपथपा रहे हैं। और न हीं अपने मुंह मियां मिठ्ठु बनना चाहते हैं। हम मीडिया के पक्ष में कसीदे भी कसना नहीं चाहते। हम ऐसा भी नहीं मानते कि मीडिया ने रुचिका के मामले में कोई बहुत बड़ी भूमिका अदा की है। हम तो सिर्फ इतना कहते हैं कि हमने सिर्फ इंसाफ के लिए संघर्ष करते उन लोगों के कांधे पर हाथ रखा है। और धीरे से कहा कि तुम्हारी लड़ाई में और भी लोग हैं। जो तुम्हारे साथ है। हमनें उन नसों में ताकत फूंकी है। जो कभी कमजोर हुई। कभी निराश। हमनें सिर्फ इतना जताया है कि कोई भी कितना ही ताकतवर क्यों न हो। अपने किए की सजा पाता है। बात सिर्फ संघर्ष करने की है। पूरी ईमानदारी से कोशिश करने की है। और लड़ने के लिए एक जज्जबा चाहिए।
समाज की बनावट ने न जाने कैसे राठौर जैसे भस्मासुर पैदा कर दिए हैं। जो अब हमी को अपना शिकार बनाने के लिए तैयार है। आज न केवल वह परिवार सलाम के काबिल है। बल्कि रुचिका की सहेली आराधना और उसका परिवार भी। जिन्होंने इतना लंबा संघर्ष किया। यह बात मानकर चलिए कि राठौर जैसे भस्मासुरों को खत्म करने के लिए आपको खुद ही विष्णु बनना पड़ेगा।
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