Friday, May 21, 2010

बाबूजी कुछ देर को आप ही आदमी बनजाओं। मेरी प्यास से जान जा रही है।

क्या हम आदमी है ? या आदमी के नाम पर कुछ और। क्या हमारे अंदर का वह तत्व जिसे हम इंसान कहते हैं। मर गया है। या रोज भागते भागते हम एड़ियों के साथ साथ हमारी आत्मा भी घिस गई है। इतने शोर गुल में वह भी हमारी तरह बहरी होती जा रही है। जो अब बाहरी आवाजें सुनती ही नहीं। अब क्या हम सिर्फ नाम और नाम के साथ ओहदे बचे हैं। हजारों प्रश्न वो आदमी एक साथ पूछ गया। और मैंरे पास कोई जवाब नहीं। आप भी सोचिएगा। और जवाब मिले। तो हमसें भी सांझा की जिएगा।
रेडीमेड कपड़ों की एक दुकान। सेठ के डीलडोल से लगता है। पक्का लाला होगा। कई लोग वयस्त हैं। किसी मेंमसाहब को साड़ी दिखाने में। या फिर किसी बाबू को पेंट दिखाने में। शादी की समय है। इससे ज्यादा कपड़े और कब बिकेगें। दुकानदार को भी चांदी कांटनी है। ज्यादा से ज्यादा। आखिरकार चांदी की खनक। इंसानियत से आजकल शायद ज्यादा होती है। बाहर धूप अंगारे बरसाती है। शायद जेठ का महीना होगा। घड़ी घड़ी गला सूखता है। महानगरों में पैसे वालों के लिए तो ठंडा पानी पैक्ड मिलता है। और गरीबों के लिए पानी खोजना पड़ता है। ऐसे ततुरी वाली दोपहरी मैं। वह अधेड़ उम्र का आदमी। ग्राहक था या अनजाना मैं नहीं जानता। वह सीधा सेठ से ही बोला बाबूजी प्यास लगी है। पानी पीना है। बाबूजी ने एक नाम को आवाज लगाई। पता चला वह दुकान के बाहर है। सेठ बोला। रुको आदमी बुलाया है। प्यास धनात्मक नहीं बड़ती। गुणात्मक बड़ती है। कुछ मिनिट बाद वह फिर बोला। बाबूजी प्यास लगी है। सेठ ने फिर कहा। ठहरो आदमी बुलाया है। आ रहा है। लेकिन प्यास तो मानों गले से होती हुई। ओठों पर आकर डेरा ही डाल लेती है। वह और विन्रम होकर बोला। बाबूजी प्यास जोर से लगी है। सेठ ने फिर कहा। कहा न आदमी नहीं है। आदमी को बुलाया है। वह कुछ देर चुप रहा। और फिर बोला। ..बाबूजी.............. कुछ देर के लिए ही आप ही आदमी बन जाइए।.............................. हमें पानी पिला दिजिए। हमारी जान जा रही है।
बात हम से नहीं वास्ता रखती है। लेकिन यह सवाल हमारे सामने हैं। क्या हम इतने आदमी भी नहीं बचे हैं कि हम किसी प्यासे के लिए पानी पिला सकें। हम किन चीजों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मैं एक अच्छा रिपोर्टर बन जाँउ। आप शायद एक अच्छा डाक्टर या फिर वकील या कारोबारी बनना चाहते हैं। यही हमारे संघर्ष हैं। क्या हम एक अच्छा इंसान बनने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। क्या किसी प्यासे आदमी को पानी पिलाने के लिए हमें भी किसी आदमी की जरूरत है। या हम खुद भी आदमी बचे हैं। अपने को टटोलिएगा। और हमें बताइएगा। इमानदारी से।

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