हमारे त्यौहार बदलते जा रहे हैं। सो उनको मनाने का ढंग भी। और पंचाग भी। अब हमारे त्यौहार दादी के पंचाग से नहीं मनते। बाजार के कैलेंडर तय करते हैं। हमारे लिए अब वैलेंटाइन डे। मदर्स डे। फादर्स डे। फ्रैंडशिप डे। ज्यादा बड़े त्योहार हैं। बजाय अक्षय तृतिया जैसे कसबाई त्यौहारों के। हमारे बुंदेलखंड में परंपरा है। कि इस दिन घर में नया मटका आता है। और हम अक्षय तृतीया से मटके का पानी पीना शुरू कर देते हैं। लेकिन हमारी परंपराएं किसी पुरानी कापी में लिखी इबारत की तरह हल्की होती जा रही है। हालांकि एक दिन ऐसा आएगा। जल्दी ही। जब किसी फ्रिज बनाने वाली कंपनी को यह त्योहार समझ मे आएगा। और बाजार इसकों अपने रंग में रंग लेगा।
हमने बचपन से देखा इस त्यौहार के कुछ दिन पहले से ही पहचान के कुम्हार घर आते थे। जैसे बड़े शहरों में फैमली डाक्टर होते हैं। वैसे कस्बों में फैमली कुम्हार भी होते हैं। लिहाजा हमारी फैमली का कुम्हार अक्षय तृतिया की आहट होते ही। नया मटका घर दे जाता था। और पानी पीने के लिए हमें इसका इंतजार रहता था।और फिर दादी इसकी पूजा करती। साफ पानी से धोती। और पानी भरकर रख देती। पहले दिन का पानी देवता पीते। दूसरे दिन हम सब। लेकिन पहले दिन का पानी इतना सौंदा होता था। मिट्टी की इतनी खुशबू कि देवताओं से जलन होती। और मैं अक्सर पहले दिन का पानी चोरी करके पी ही लेता था। जब बड़ा हुआ तो विज्ञान की क्लास में पता लगा कि पहले दिन मिट्टी के घड़े का पानी पीने से पत्थरी हो सकती है। तब जाकर ये परंपरा समझ में आई। लेकिन दिल्ली में आज अक्षय तृतीया थी। सो खबरों का तनाव था। दस हजार से ज्याद शादियां। टेंट की परेशानी। जगह की परेशानी। पंडित की परेशानी और ट्रैफ्रिक जाम की बात तो थी ही। लिहाजा इन तमाम परेशानियों को कैसे कवर कराएं। कौन सा रिपोर्टर कहां भेजे। हम इसी में फंसे रहे। और भूल ही गए। कि नया मटका भी इसका अंग हैं। लेकिन दिल्ली में अब वे परपंराए कहां। सो न घर में नया मटका है।और न दिल्ली में दादी।
बिल्कुल सही कहा!
ReplyDeleteऔर पता है आलोक । बुंदेली परंपरा के मुताबिक इस दिन न सिर्फ घडे की पूजा होती है, बल्कि कच्चे आम, सत्तू, गुड और भटा यानि बैंगन की भी पूजा होती है। मतलब साफ है, मटका यानि गर्मी की शुरूआत, सत्तू, बैंगन और आम यानि नयी फसलों का सेवन शुरू करने का मौका। मैं खुशकिस्मत हूं कि मां साथ हैं और उनका पंचांग अक्खा तीज, वट सावित्री, बरा बरसात, बासौरो और तमाम देसी त्यौहारों को नहीं भूलता। एक छोटी सी मटकी लाकर हमने अक्षय त़तीया की रस्म अदायगी भी की भले ही पानी हम फ्रिज का ही पीते हैं।
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