अपने एक मित्र की शादी थी। जाना जरूरी था। और भोजन भी करना ही था। थोड़ी ना ना करने के बाद अपन भी प्लेट हाथ में लेकर लाइन में लग ही गए। शादियों में खाना भले स्वादिष्ट लगे। लेकिन उसे हासिल करना भी आसान नहीं होता। पहले लाइन में लगना। फिर प्लेट का इंतजार करना। फिर प्लेट लेकर खाने की लाइन में लगना। पूरे समय चौकन्ने रहना। कि आगे वाला शाही पनीर निकालते वक्त अपनी चम्मच तुम्हारी कमीज पर न लगा दे। जो अपनी आदत में शुमार नहीं है। या फिर उन आंटी की प्लेट जिसमें 13 तरह की चीजें रखी हैं। आपको छूती हुई न चली जाएं। फिर अगली बार चांवल के लिए लाइन में लगना। इस तरह से कई बार लाइनों में लगना परेशान सा करता है। लेकिन फिर भी हमनें खाना पूरे संघर्ष के साथ खाया। हमारे यहां पर एक लुटेरों की एक विशेष प्रकार की जाति होती हैं। वे लूटते भी हैं। और मारते भी है। पिटाई करने के पीछे उनका अपना एक तर्क होता है। वे बिना मेहनत के कमाई नहीं करना चाहते। सो इस तरह के भोज में लगता है कि अपन ने भी मेहनत करके खाना खाया है। मुफ्त में नहीं।
खाना खाने के बाद हमारे एक मित्र ने रसगुल्ले खाने की बात कही। हमनें साफ इंकार किया। पहले ही खाना ज्यादा खा चुका हूं। अब और कुछ भी नहीं खा सकता। उन्होंने कहा कि खाना तो वे भी खा चुके हैं। लेकिन रसगुल्ले अभी भी खा सकते है। बात शुरू हुई कितने। उन्होंने कहा शर्त लगाओं। शर्त लगाने वाले हर जगह मिल ही जाते है। किसी ने कहा कि सौ खाकर दिखाओ। और फिर क्या था। वे खाने के लिए जुट गए। पुरे सौ रसगुल्ले खाए। और शर्त जीत गए। इस तरह की शर्ते लगाना और जीतना हमसे कहीं पीछे छूट गया है। आपको याद है कि पिछली शर्त आपने कब और किससे लगाई थी। याद आते हैं कालेज के दिन। जब कितनी तरह की शर्ते होती थी। ज्यादा नंबर लाने की शर्त। पहले कालेज आने की शर्त। किसी लड़की से बात करने की शर्त। किसी को प्रेम का प्रस्ताव देने की शर्त। चलती क्लास रूम में जोर जोर से गाना गाने की शर्त।
जिंदगी भी अजीब चीज है। कितने रंग दिखाती है। किस किस तरह से अपना लोहा मनवाती है। कभी कभी हम शर्त तो जीत जाते है। लेकिन जिंदगी हार जाते है। क्या आपने भी कभी किसी दोस्त से शर्त जीती। या फिर शर्त हारी। हमें बताइएगा। जरूर।
फुल साईज 75 फुल्की खाई है
ReplyDeleteफुल्की बोले तो गोल गप्पे, पानी पूरी आदि आदि :)
अब ये न पूछ लीजियेगा कि शर्त किसने जीती :)
वो गुजरा जमाना याद आया!! :)
ReplyDeleteहमने तो हमेशा शर्त न लगाने की शर्त लगाई और फायदे में रहे
ReplyDeleteशर्तें भी लगाई हैं, और खाया भी है। पर अब पेट का ख्याल करना पड़ता है, जरा जल्दी थक जाता है।
ReplyDeleteआजकल तो प्लेट में थोड़ा चावल भी ज्यादा ले लीजिए,तो आजू-बाजू के लोग देखने लगते हैं मगर गांवों की दो-तीन शादियों में ऐसे लोगों से मेरा सामना हुआ है।
ReplyDeleteमेरे चचेरे भाई से मैंने एक शर्त लगाई थी। हुआ यूं कि मडैया में सोते सोते उपर नजर गई तो एक छोटी सी पोटली दिखी। पूछने पर पता चला कि उसमें आधा किलो शक्कर है जो अभी अभी दुकान से लाकर यूं ही टांग दी गई।
ReplyDeleteचचेरे भाई से शर्त लगी दस रूपये की। उसने जब उस आधा किलो शक्कर को सेंगदाने सा चबाना शुरू किया तो सब रोकने लगे कि नुकसान होगा ये होगा वो होगा लेकिन पट्ठे ने आधा किलो शक्कर खतम कर दिया।
खतम होते ही सबसे पहले वह पिशाब करने दौडा और आके खाट पर कुछ देर पडे रहने के बाद फिर बोला - निकाल दस रूपये :)
वह शर्त कभी नहीं भूल पाऊंगा।
वो गुजरा जमाना याद आया!
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