Thursday, May 27, 2010

शादी का कार्ड अब क्यों मजा नहीं देता। क्या आपको भी तनाव देता है ?

मेरा ब्लाग पढ़कर। आपको लग सकता है। कितना खराब आदमी है। कितना असमाजिक है। लिखता तो अच्छी बातें हैं। लेकिन हकीकत कुछ और है। लेकिन मेरी कोशिश है। मेरा ब्लाग मेरा आईना बने। जैसा मैं सोचता हूं। वही मैं लिखूं। आपकी प्रतिक्रियाओं से अपना बारें में अंदाजा लगाऊगां। आपके आईने में अपने को देखना चाहता हूं। इसलिए जैसा मैं सोचता हूं। वैसा लिख देता हूं। बिना सही गलत तय किए।
सागर से मित्र का फोन आया था। फिर उसके पिता का पत्र आया। अब बहिन की शादी का कार्ड आया है। पहले किसी दूर दराज के पहचान के व्यक्ति की शादी की सूचना। मजा देती थी। एक नए उत्साह का संचार हो जाता था। शादी की बात आते ही। लगता था दोस्तों के साथ लंबी महफिले। खूब मजा। नाच गाना। अच्छे कपड़े। खूब मस्ती। बहुत सारे लोगों से मुलाकातें। लंबी गप्पे। हंसी मजाक का तो क्या कहना।
छोटे शहरों में शादियां ठेकों से नहीं होती। दोस्तों और अपनो की दम पर होती है। सो काम भी सब मिलकर ही करते हैं। कार्ड बांटने से लेकर विदाई तक कई काम होते हैं। शादियों के कार्ड बांटना भी एक गजब का काम है। उसे बांटने की भी विज्ञान है। अपने एक दोस्त तो एक दिन में कई सौं कार्ड बांटने का हुनर रखते थे। और अपन शुरू से ही इस काम में बदनाम रहे। जिसे कार्ड देने गए वहीं बैठ गए। चाय पीने को बैठे और गप्पे शुरू। शादी अपनी देरी से हुई। सो जिसका कार्ड भी देने जाते। बात यहीं से शुरू होती। अपनी शादी का कार्ड लेकर कब आओगे। कुछ मित्र कार्ड तालाब या कुएं के हवाले करने के लिए भी बदनाम थे। अगर किसी मोहल्ले का कोई खास आदमी नही आया। तो अंदाजा लग जाता था। कि कार्ड उस इलाके में पहुंचे ही नहीं। लेकिन क्या फायदा। शादी तो हो चुकी। अब सिर्फ शिकवे शिकाएतें ही बचते थे।
शादी के लिए अच्छे कपड़े का चुनाव करना। शाम से ही तैयार होना। इंतजाम में जुटे रहना। हर शादी में कितना ही होमवर्क कर लिजिए। कुछ न कुछ कमी रह ही जाती है। सो दोस्त के नाते उसे कम से कम परेशानी में निपटाना। रात रात भर जागना। खूब मेहनत और खूब मजा। लेकिन अब शादी का निमंत्रण। तनाव देता है। बात छुट्टी से शुरू होती है। फिर टिकिट। तैयारी। माफिक तोहफा। यानि लगता है जैसे हम अपना कोई कर्तव्य निभाने जा रहे हों। वक्त बदला है। या हम बदल रहे है। समझ में नहीं आता। क्या आपको शादियों में जाना अभी भी मजा देता है। या मेरी तरह तनाव। सच सच बताइएगा।

4 comments:

  1. आजकल का शादी का कार्ड एक पाव का होता है. उसमें ढेरों चमकी और डोरियाँ चिपकी होती हैं. कोई-कोई कार्ड को पुंगी में भी भेजता है.
    90 % कार्ड अंग्रेजी में होते हैं और सभीमें गलत अंग्रेजी लिखी होती है.
    जो हिंदी में होते हैं उनमें गलत हिंदी लिखी होती है.

    सबसे ज्यादा अखरता है यह लिखा देखना - :मेली मौछी की छादी में जलूल जलूल आना.

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  2. मजे मजे में बात कह गए। लेकिन शादी के कार्ड पर इंसान के मूड में इस बदलाव के कारणों पर भी लिखा जाना चाहिए। तब वह बहुत गंभीर और मारक बन जाएगा।

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  3. i dont think so. Change is the rule of nature and it is inevitable, you have to make your frequency tallied with them otherwise you will become "persona non granta"

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  4. somehow i agree wid ur point however, shadi mein jane maza to aata hai bas bosses chhuti de dein kya aap bhi apne reporters to chhuti dete hain jab vo apse kisi ki shadi menin jane ki chhuti mangte hain sach sach bataeyega..?

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