Thursday, May 20, 2010

उसने मुझे बीमारी में दस हजार का खाना खिलाया। समाज उसे वैश्या कहता है। और आप ?

हमारी जान पहचाना थी। जब धीरे धीरे दोस्ती हुई। तो उसने पुराने राजा रानियों की तरह दो बातें कहीं। कभी मुझे संत की तरह प्रवचन मत देना। और कभी पत्रकार की तरह मेरा अतीत न पूछना। न मैं रामायण का दशरथ था। और न महाभारत का भरत। फिर भी मैंने कभी भी अपनी मर्यादा नहीं लांघी। अपना कद ऊंचा करके उसे कभी छोटा नहीं किया। और कभी उसको शर्मिंदा करने की कोशिश भी नहीं की।
मैं करीब 13 साल पहले जनसत्ता में रिपोर्टर बनकर आया था। आप जानते ही हैं। पत्रकारिता में सूत्र होने चाहिए। यानि आपकी जान पहचान हो तभी आप जल्दी सफल हो सकते हैं। लेकिन हम तो दिल्ली में एक ही व्यक्ति को पहचानते थे। हमारी एक दीदी कलेक्टर बनने की तैयारी कर रही थी। सो वे अपने मकान मालिक के अलावा किसी को न जानती थी। जब हमने खबरें खोजना शुरू किया। तो हमारे एक बडे भाई ने हमें सलाह दी। कि सैक्स की खबरे लोग ज्यादा पढ़ते हैं। और रिपोर्टर का नाम भी लोगों की जुबान पर आ जाता है। इसके अलावा दलालों पर खबर करों। इस तरह की खबरें भी लोकप्रिय होती है। जैसे किसी नेता का झूठा राशनकार्ड बनवा दो। किसी का गलत मृत्यू प्रमाण पत्र। किसी अंधे या अपाहिज व्यक्ति का ड्राइविंग लाइसेंस। सो इस तरह की खबरों में अपन जुट गए।
हमने हाई प्रोफाइल कालगर्ल्स पर खबरें खोजना शुरू किया। और हमारी सुनैना से दोस्ती हो गई। वह फर्राटे से अंग्रेजी बोलती थी। स्टिक से चाईनीज खाना खाती थी। बला की सुंदर। लंबी वाली गोल्ड फ्लेक पीती थी। और ओल्ड मंक रम पीती थी। मध्यप्रदेश के सागर जैसे शहर से आए किसी भी व्यक्ति के लिए यह सब किसी हिंदी फिल्म के पात्र से कम न था।
खबरें बदलने लगी। हमें बीट मिल गई। और कुछ लोगों से जान पहचान भी हो गई। फिर भी कभी कभार हम फोन पर बात कर लेते थे। उसने कहा नहीं लेकिन मुझे लगता बातचीत से और भावनाओं से लगता था कि वह मध्यप्रदेश की है। या फिर उसी तरह के किसी प्रांत की। एक बार आधी रात को फोन आया। हालचाल पूछने के लिए। मैंने हालचाल तो ठीक बताए। लेकिन उसे आवाज ठीक नहीं लगी। मैने कहा हां। कुछ बुखार हैं। मैं घर जाने के लिए आईटीओ पर खड़ा हूं। आटो नहीं मिलता। न बस ही दिखती हैं। उसने कहा तुम बीमार हो । वहीं रुको। मैं तुम्हें घर छोड़ देती हूं। मुझे ये बात साधारण ही लगी। जैसे कोई दोस्त मदद करता हो। वह कुछ ही देर में अपनी कार लेकर मुझे आईटीओ लेने पहुंच गई। उसके साथ एक व्यक्ति और था। वह जो उसका रात भर के लिए ग्राहक था। ये बात उसको बेहद गुस्सा दिला रही थी। कि वह मुझे अब घर तक छोड़ने जाएगी। लेकिन शायद उनके बीच जो भी समझौता हुआ हो। वह मान गया। मैं कार में बैठा। और घर की तरफ बड़ा। अचानक उसने पूछा। तुमने खाना खाया। मैंने कहा नहीं। मैं ढावे पर जाकर खा लूंगा। वह बोली अभी खुला होगा। जवाब हम दोनों जानते थे। मैंने कहा घर में बिस्किट भी होगें। वह बोली दवा खानी हैं। खाना अच्छे से खालों और हौजखास के पास एक व्यक्ति पराठें बनाता है। शायद अभी भी बनाता होगा। मैंने बहुत दिन से देखा नहीं। कार उसने वहीं रोक दी। इस पर ग्राहक भैया तो आग बबूला हो गए। उन्होंने उसे गालियां बंकना ही शुरू कर दिया। मेरे बारे में पूछने लगे। ये तुम्हारा भाई है। पिता है। चाचा हैं। मामा है कौन है। सुनैना ने कहा कि दोस्त है। उसने कहा कि दोस्त है तो इसी के साथ जा। वह बोली ठीक है। उसने उसे अपने पर्स से निकाल कर दस हजार रुपए वापस कर दिए। और वह चला गया।
मैं चुप था। क्या कहूं। मुझे खाना नहीं खाना है। तुम उसके साथ चली जाओं। उसकी बदतमीजी में देखता रहा। उसे पीटता। मुझे कुछ समझ में नहीं आया। वह भी कार से उतर आई। बोली मैंने भी सुबह से कुछ नही खाया है। आलोक मैं जानती हूं। भूखे रहो तो रात मे नींद नहीं आती। और बीमारी में तो उल्टी भी आती है। पेट भी गैरों की तरह व्यवहार करता है। हमनें खाना खाया। और एक क्रोसिन भी। वह मुझे घर उतार कर वापस चली गई। तबियत के बारे में कुछ दिन तक फोन करती रही। लेकिन मैं आज भी सोचता हूं। कि तेरह साल पहले दस हजार की कीमत आज के 25 हजार के करीब तो होगी। क्या मैं अपने किसी भी दोस्त के लिए 25 हजार रुपए का खाना खिला सकता हूं। इमानदारी से कहता हूं। नहीं। वो जो शरीर बैचती है। वह वैश्या है। हम जो इमान बैचते हैं। रिश्ते। संबंध। भावनाओं को इस चमकीले बाजार में बेचते हैं। हम कौन है। आप बताइये न ? ?

13 comments:

  1. बहुत मार्मिक मगर यह अफसाना ज्यादा लगता है

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  2. जब हम सही हैं तो हमें समाज की परवाह नहीं करनी चाहिए पर अगर गलत हैं तो जरूर चिन्तन कर सुधार करना चाहिए.किसके लिए क्या ठीक है इसका फैसला सिर्फ वो सिर्फ खुद कर सकता है।

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  3. यही दुनिया है उसने अपना जिस्म बेचा पर आत्मा नहीं

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  4. अगर यह सच घटना है तो उन दस हजार का मूल्य करोड़ों रुपये में भी नहीं आंका जा सकता।
    और यकीन कीजिये, घटना के सच होने पर कोई शंका नहीं है। कुछ भी हो सकता है, इस दुनिया में।

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  5. जिस्म खरीदा जाता है इस लिए बेचा भी जाता है। जिस्म बेचने वाला कम से कम आत्मा तो नहीं बेचता।

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  6. भैया ये कहानी है या हकीकत, लेकिन जो भी है बेहतरीन है!

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  7. यह सच्ची दोस्ती कहलाती है जहाँ विपरीत लिंगी आकर्षण से ज्यादा कुछ ओर था, आपने उसके दिल पर एक ऐसी छाप छोड़ी थी, जिसे मिटा पाना उसके लिये बहुत मुश्किल था।

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  8. स्थिति शर्मनाक हो चुकी है ,और सरकार कोई ठोस कार्यवाही करना नहीं चाहती है ,जिससे इंसानियत खतरे में है और हैवानियत ठहाका लगा रहा है / आलोक जी आपके इस प्रस्तुती के समर्थन में हम इतना और जोड़ देते हैं की इंसानियत आज इन वेश्याओं में ज्यादा जिन्दा है / हमारा समाज तो आप मरते रहेंगे तो और मुर्दा होने का नाटक कर मुर्दा हो जायेगा ,शर्म आती है ऐसे मुर्दा समाज पर / आलोक जी आज हमें आपसे सहयोग की अपेक्षा है और हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें ------ http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html

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  9. जाकी रही भावना जैसी।

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  10. कहानी तो मार्मिक है। लेकिन अगर यह सत्य है तो इस रिश्ते का भविष्य क्या हो सकता है ।
    क्या आप कहीं उसके साथ खड़े होकर गर्व से कह सकते हैं कि यह मेरी दोस्त है ?

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  11. मैं सिर्फ कह नहीं सकता। कह रहा हूं। और यकीन मानिए इस ब्लाग को मेरे पिता...मेरी मां. और मेरी पत्नी सभी पढ़ते हैं। मैं सबके सामने कह सकता हूं। कि वह मेरी ऐसी दोस्त हैं जिसपर मुझे गर्व है। और बात जब इंसानियत की होती है। तो मैं उससे कोसो पीछे हूं।

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  12. आज ईन्सानियत कोमा मे जा चूँकि है । काई कोमा कि स्थिति से बाहर आते है कुछ एसि है यह कहानि या हकिकत ? खैर मार्मिक है ।

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