Saturday, May 15, 2010

आप शायद इसे पागलपन कहेंगे। मैं इसे अपनापन कहता हूं।

आपको शायद यह घटना झूठ लगेगी। या फिर पागलपन। लेकिन घटना भी सच है। और मैं इसे अपनापन मानता हूं। एक तरह की प्रेम की हद भी आप कह सकते हैं। मुझे बेघर हुए। करीब 13 साल होने को हैं। लेकिन घर के लोग बताते हैं। खाने पीने के सामानों में आज भी दादी अपना हिस्सा लगाती है। अलग तरह का पागलपन इसलिए आप कह सकते हैं कि मैं दिल्ली में हूं। और फिर खाने पीने की चीजों में हिस्सा क्यों। लेकिन परिवार और साधना इसी तरह के दस्तूरों से मजबूत होती चलती है। वह शायद परिवार के बाकी लोंगों को यह अहसास नहीं होने देना चाहती। कि मैं परिवार का हिस्सा नहीं हूं। मै बाहर हो गया हूं।
हमने बचपन से देखा है। आप लोगों ने भी देखा ही होगा। किस तरह से परिवार में कोई भी सामान आता है। तो हर आदमी का उसमें हिस्सा होता है। परिवारों में लूट या जंगलराज नहीं चलता। जो नहीं है। हिस्सा उसका भी होता है। चाहे मिठाई हो या फिर समोसा। दादी ने रसगुल्ले बनाए हों। या पिता जलेबी लाए हों। परिवार में हर चीज बंटती है। सिर्फ कुंती ने द्रौपदी भाइयों में नहीं बांटी थी। हम आज भी कस्बों में जलेबी तक बांटकर ही खाते हैं। मैने देखा है कि दादी किस तरह से हर आदमी का बराबर का हिस्सा लगाती थी। और आखरी हिस्सा जो हर बार कम बंचता था। वो उसका होता था। या कई बार बंटते बंटते वह हिस्सा ही खत्म हो जाता था। लिहाजा ये सबक हमने बचपन में ही सीख लिया था कि जब बांटने की जिम्मेदारी हो तो लेने में पीछे रह जाना। यही दस्तूर हैं। जिम्मेदारी का। बड़े होने का।
मुझे याद आता है। अपने वो दिन जब अपने हिस्से में मौज ही मौज थी। रंगीन कंचे। कई पतंगे। टिकली फोड़ने वाला तमन्चा। माचिस की खाली डिब्बियां। गुल्लक। दादी और बुआ के पास कहानियों का बैंक। पिता के पास खिलौनो की लिस्ट। लेकिन अपने हिस्से में किसने ये नौकरियां लिख दी। ये तनाव। दूसरे को मारकर आगे बढ़ने की लगातार कोशिश। ऐसी दौड़ जिसमें भागने के लिए इंसानियत दफन करना पड़े। जिंदगी का ये हिस्सा मजा नहीं देता। सिर्फ तनाव देता है। और पीछे पीछे आती है बीमारियां। बहिन ने फोन पर बताया है। पिताजी पसेरी भर आम लाए हैं। उन आमों में भी दादी ने अपना हिस्सा अलग बचा कर रखा है। लगता है जिंदगी में कभी हार कर। कभी थक कर। घर वापस जाने की इच्छा हो। तो पूरी इज्जत और विश्वास के साथ वापस लौट सकूंगा। सोचकर कि दादी ने मेरे हिस्से का आम बचाकर रखा है।

4 comments:

  1. zarur rakhe honge..daadi ne aam main bhi 6 mahine me 1 baar haajiri laga raha hun...varna kya pata mujhe bhi bhool jaayein...bahut achcha laga aapko padhkar

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  2. अरे जनाब हो आओ एक बार अपने घर।

    नॉस्टॉल्जिया जरूरी है जीवन की खुशहाली के लिए।

    बढ़िया पोस्ट।

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  3. बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ...आज भी इतना अपनापन रखते हैं लोग....घर जा कर सबसे मिल ही आइये...

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  4. इसे पागलपन नहीं प्यार कहते हैं.. जुड़ाव कहते हैं.. अपनापन कहते हैं.. :)

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