Monday, May 10, 2010

क्या आपको याद है अपनी परिक्षाएं। कितनी अच्छी नींद आती थी उस रात।

बहुत दिन हो गए होगें। पर फिर भी क्या आपको परिक्षाओं वाली रातें यादे हैं। याद है कितनी अच्छी नींद आती थी उस रात। जब सुबह पेपर हो। छतों पर कितनी ठंडी हवा चलती थी। हवा में भी एक अजीब सी खुशबू।और चाल में भी गजब की खनक। लगता था कि बस आज सो जाते हैं। चाहे फिर पूरी जिंदगी जागते रहेंगे। बिस्तर पर रखी चादर की ठंडक। बहुत दूर से आती न जाने कहां से बेला की खुशबू। और दूर कहीं छत पर बात करते लोग। ठहाका मारते कोई दंपति। और हाथ से किताब गिरने को तैयार।
मैंने विवेक भैया से कहा। कि आज कि रात में तो सो जाउंगा। चाहे भले सुबह फेल हो जाउं। ज्यादा से ज्यादा सप्लीमेंट्री आएगी। परीक्षा देकर पास होजाउंगा। अगले महीने। लेकिन इतनी अच्छी नींद मुझे कभी नहीं आई। और न ही इतनी नशीली रात मैंने कभी देखी। विवेक भैया यानि विवेक पांडे। हम दोनों एक साथ रात को पढ़ते थे। उनका घर तालाब किनारे था। तीसरी मंजिल के ऊपर छत। उस पर हम दोनों के बिस्तर। रात भी क्या गजब श्रृंगार किए थी। बेला का गजरा लगाए। हवा के साथ न जाने कैसी चाल चलती थी। हम एमए अंग्रेजी से कर रहे थे। सुबह कविता का पेपर था। मन में आया कि अगर ऐसी रात सो न सकें तो जीवन भर न कविता समझ पाएगें। और न इतनी मोहक रात महशूस कर सकेंगे। और इतना कहकर आधी रात को चाय पी.... और अपन सो गए।
बाद में मनोविज्ञान पढ़ा। और जिंदगी की कई बातें समझ में आई। जिस चीज से जितना भागों वह उतने ही वेग से पीछा करती है। परिक्षा की उन रातों में कितना मजा आता था। गप्प मारने में। कितना मजा आता था। सोने में। कितनी सुंदर सुबह होती थी। जब दादी पढ़ने को उठाती थी। लगता था आज सो ले तो शायद मोक्ष ही मिल जाए। और देखते देखते परीक्षाएं खत्म हो जाती। और वे सुनहरे दिन बोरियत में बदल जाते। न फिर उन रातों में नींद आती। और न वे सुबह इतनी अच्छी लगती। तपती दोपहरी काटने में भी परेशानी होने लगती। रिजल्ट की चिंता वो अलग।
लेकिन आपको शायद चिंता हो रही होगी कि उस रात में सो गया था। लेकिन रिजल्ट का क्या हुआ। यकीन मानिए। मुझे सबसे अच्छे नंबर कविता में ही मिले। और मैं अंग्रेजी से एमए हो गया। लेकिन उसके बाद उतनी सुंदर रात मैने कभी नहीं देखी। न उतनी अच्छी नींद कभी आई।

5 comments:

  1. आपने सच कहा। पुरानी यादें ताजा हो गई.

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  2. काश फिर परीक्षा आए , और आपका छोटा भाई को
    नीद आ जाए , याद नहीं कब मैं सच मैं सोया था|
    ---Rajendra Richhariya

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  3. आलोक भाई,
    वाकई में मजा आ गया.. और हमारे कालेज के दिन याद आ गये.
    वन नाईट फ़ाईट मार के सेमेस्टर निकाल लेते थे प्रभू..

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  4. कह तो सही रहे हैं..वैसी नींद फिर कहाँ..

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