Sunday, May 2, 2010

मौत का खौफ नहीं है। वेवजह मरने से चिढ़ होती है।

सुमन बुआ का फोन आया। कहां हो। दिल्ली में आतंकवादी घुस गए है। तुम घर कब पहुंचोगे। वे कभी भी दिल्ली में ब्लास्ट कर सकते हैं। तुम अभी कहां हो। टीवी वाले दिखा रहे हैं। तुम्हें कितनी देर लगेगी घर पहुंचने में। और फिर घर से फोन का सिलसिला शुरू हो गया। सभी के सवाल एक जैसे थे। और मेरे जवाब भी। क्या करें। हमारी नौकरी ऐसी है। जब दंगा फसाद हो। कोई बवाल मचें। तो लोग घरों को भागते हैं। हम दफ्तर जल्दी जल्दी पहुंचते हैं। आम आदमी खतरे वाली जगहों से निकलकर भागता है। सुरक्षित ठिकाने की तरफ। और हम सुरक्षित दफ्तरों और घरों से बाहर निकलते हैं कैमरा के साथ। खतरों वाली जगहों पर खबरों के लिए।
डर तो सभी को लगता है। मरने से। मुझे भी लगता ही होगा। लेकिन यकीन मानिए। मौत का खौफ नहीं है। एक अलग तरह की चिढ़ है। वे वजह मरने से। जिस तरह से हर आदमी की जिंदगी की एक वजह होती है। उसी तरह से मरने की भी एक वजह होनी चाहिए। मैंने सुना है कि भगतसिंह का वजन फांसी की सजा के बाद कुछ बढ़ गया था। यानि उन्हें मरने से डर नहीं लग रहा था। उनके पास वजह है। मरने की भी। लिहाजा मरने के लिए एक वजह तो हो। बाजार में कुछ खऱीदते समय। अपने बच्चे को स्कूल भेजते समय। पत्नी को दफ्तर ले जाते हुए। दादी को अस्पताल ले जाते समय। या फिर खुद दो जून की रोटी के इंतजाम में लगे हुए। यूं ही मरना अजीब सा लगता है। कि कोई पगलाया हुआ आदमी आए। और यूं ही गोली मारकर चला जाए। तुम्हें मारकर उसे जन्नत मिल जाए।
हालांकि ये कहना गलत होगा कि इस तरह की चेतावनी का कुछ भी असर नहीं होता। लेकिन दिल्ली वालों ने इस डर से निजात पा ली है। मैंने लगभग हर बाजार में जाकर देखा। लोग बेखोफ खरीददारी करते नजर आए। लोग सरोजिनी नगर बाजार में तो बाकायदा पाउडर और बिंदी जैसी चीजें भी खरीदने आए। जिसे शायद टाला जा सकता था। लेकिन आम दिल्ली वालों ने इस चुनौती को अंदेखा किया। लेकिन क्या हमारी सरकारें इतनी निकम्मी होती जा रही है। कि अमेरिका अपने नागरिकों को पहले चेतावनी देती है। फिर हमारी सरकार हरकत में आती हैं। क्या हमारे नागरिकों की जिंदगियां दूसरे देशों के नागरिकों की जिंदगियों से कम कीमती है। या फिर हमारी सरकारों को अपने कामकाज और अपनी तिकड़म से फुर्सत ही नहीं है। कि वो आम आदमी की जिंदगी पर भी ध्यान दे सके। हमारे नेता सुरक्षित हैं। अपनी सुरक्षा को वाई से जैड और जेड से जेड प्लस कराने में व्यस्त हैं। मुझे लगता है कि जिस दिन हम अपने नागरिकों कि जिंदगियों की कीमत करना शुरू कर देंगे। उस दिन आतंकवाद अपने आप खत्म हो जाएगा। जिस दिन हमें इस बात का अहसास होगा कि आतंकवाद का शिकार भले एक आदमी होता हो। लेकिन मरता पूरा परिवार है। हर रोज। दुआ करिए कि मुझे मौत भी आए तो किसी ब्लास्ट में नहीं। हां आप तक किसी खबर का सच पहुचाते हुए। वहीं मेरा मोक्ष होगा।

3 comments:

  1. विचारपरक आलेख.


    जिस दिन हम अपने नागरिकों कि जिंदगियों की कीमत करना शुरू कर देंगे। उस दिन आतंकवाद अपने आप खत्म हो जाएगा।

    -सच कहा आपने.

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  2. Good Thinking...Sarthakta puran marna hi marna varna to kutte bhi marte hain...

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  3. भगवान करे आप लंबी उम्र जियें। मौत तो जब आनी ही तभी आयेगी। जितनी जिंदगी आपके पास है उसे साकार करने में आप कामयाब हों। मुझे याद है, एक बार मैनें पूछा था, आपका सबसे बडा मकसद क्‍या है, तो आपने कहा था, जिस दिन मेरी खबर से सरकार गिर जायेगी उस दिन मैं खुद को कामयाब मानूंगा। ईश्‍वर करे वो दिन जल्‍दी आये।
    आशीष देवलिया

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