Wednesday, May 19, 2010

बाबूजी हमारी जिंदगी की कीमत क्या सिर्फ पांच रूपए हैं। मैं चुप रहा। जवाब आप दीजिए।

आज एक अलग तरह के आदमी से मुलाकात हुई। वो अपनी कहानी सुनाता रहा। और मैं पिघलता गया। पहले मैं सतर्क हुआ। फिर मैं एक टक होकर उसे सुनता रहा। वह कभी मुस्कराता। कभी हैरत में मुझे देखकर चुप हो जाता। और अपनी बात कहता रहा। और मैं सुनते सुनते बाद में सिर्फ एक मांस का लौथरा बचा।
मुलाकात हुई। सामान्य परिचय से पता चला कि वह हमारे मध्यप्रदेश का है। फिर क्या था। अपन शुरू हो गए। क्या काम करते हो। घर में कौन कौन है। दिल्ली कैसे आना हुआ। मैं क्या मदद कर सकता हूं। उसने सीधे कहा कि बाबूजी। मौत का खेल खेलता हूं। वो भी पांच रूपए में। आप लोगों को वो भी मंहगा लगता है। मैंने कहा समझा नहीं। उसने बताया बाबूजी प्रदर्शनियां लगती है। उनमें हम मौत का कुंआ बनाते हैं। प्रदर्शनी में एक अस्थायी कुआं बनाया जाता है। उसके पास एक सीड़ी बनाई जाती है। जो करीब सौ फुट की होती है। उस पर मैं चड़ता हूं। अपने विशेष प्रकार के कपड़ों पर आग लगा लेता हूं। नीचे पानी में पेट्रौल डालकर आग लगाई जाती है। और फिर मैं उपर से कूंदता हू। हर रोज अपनी जिंदगी दांव पर लगाता हूं। इसका टिकिट होता हैं। पांच रूपए। वो भी लोगों को मंहगा लगता है।
मैंने बात सुनी। पहली प्रतिक्रिया जताई। कोई अच्छा काम क्यों नहीं कर लेते। वह बोला इस काम में गंदगी क्या है। मैंने कहा मेरा मतलब है सुरक्षित काम। वह बोला आप सुरक्षित हैं क्या। मैंने कहा कि हर रोज तो नहीं मरता। उसने कहा कि मरता तो मैं भी रोज नही हूं। मैं खीज गया। तो फिर तुम्हे दिक्कत क्या है। वो बोला कि लोगों को मरकर दिखाता हूं। और कई बार मारा भी जाता हूं। लेकिन इस खेल की कीमत लोगों को पांच रुपए भी मंहगी लगती है। और लड़की नांचे। तो लोग पांच हजार भी लुटा देते हैं।
बात तो उसने कई बताई। लेकिन कई बातें मुझे पिघला कर चली गई। वह बोला हम कोई भी काम कल पर नहीं छोड़ते। जो खाना है। जो लाना है। जो देना है। जो आजमाना है। हम सभी कुछ आज ही कर लेते हैं। बच्चें को अगर खिलौना दिलाना है। तो हम कल पर नहीं छोड़ते। हमारे परिवार में इस समय तीन विधवाएं हैं। मां । चाची। और छोटी चाची। तीनों लोग कुएं पर मरे। अब मैं घर का खर्च चलाता हूं। लेकिन अब परिवार की तरफ से कुछ निश्चिंत हूं। मेरा छोटा भाई भी कूंदने लगा है। हम दो भाई हैं। लगता हैं किसी रोज मुझे कुछ हो गया। तो अब परेशानी नहीं होगी। छोटा भाई परिवार संभाल लेगा। मैंने पूछा तुम लोगों से शादी करता कौन हैं। उसाका जवाब किसी हैरत से कम नहीं था। बोला मैनें भी प्रेम विवाह किया है। और मैंरे छोटे भाई ने भी। लेकिन वो जाते जाते कह गया कि बाबूजी मेरे पिता मैरे सामने ही कुआं पर गिरकर मरे थे। मैं वो भूल गया। लेकिन जाते हुए एक लोग लुगाई ने कहा था कि आज के पैसे वसूल हो गए। वो हमें याद है। बाबूजी हमारी जिंदगी की कीमत क्या सिर्फ पांच रुपए हैं। मैं चुप था। जवाब आप दीजिए।

6 comments:

  1. सही मायने में भावनाओं के अहसास के स्पंदन से निकली प्रस्तुती /

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  2. ओह , बहुत ही मार्मिक लगी ।

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  3. बहुत प्रभावशाली रचना।बधाई

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  4. एक कटु सत्य को दर्शाती, बेहद मार्मिक रचना. ये सब देख सुन कर अफ़सोस होता है और मन ये सोचने को मजबूर हो जाता है कि आखिर हम लोग किस तरह के समाज में रहते है.

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  5. ओह , बहुत ही मार्मिक

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