Monday, May 9, 2016

दोस्तों का हुजुम। ताली पर ताली। आपस में गाली। ठहाके। कहां गए सब।

संसद की स्टोरी करके मेट्रों से घर आ रहा था। स्टेशन पर गाड़ी रुकी। तो लड़कों का हुजुम गेट पर देखकर लगा। काफी भीड़ है। लगा दिल्ली में दस बजे रात में भी इतनी भीड़ न जाने कहां  से आ जाती है। मन में कुछ झुंझलाहट सी हुई। लेकिन फिर समझ में आया। भीड़ नहीं है। दोस्तों का हुजुम है। मुश्किल से अंदर घुस पाया। अंदर ज्यादा गुंजाइश नहीं  थी। सो थोड़ा आगे जाकर खड़ा हो गया। उन लड़को की वजह से हर चढ़ने वाले को परेशानी हो रही थी। और उतरने वाले को भी। हालांकि जो लड़किया थी या परिवार वाले थे वे गेट बदलकर उतर रहे  थे। उनका शोर। कुछ अपशब्द। एक दूसरे के साथ धक्का मुक्की। कुल मिला कर डिब्बे के यात्रियों को परेशानी थी। पत्रकार की हनक जो अपन में है। लगा उतरकर सीआईएसएफ वालों को बोलू। और इन लोगों की अकल ठिकाने लगे।
सोच ही रहा था कि उनके ठहाके ने ध्यान बंटाया। करीब दस बारह दोस्त किसी पार्टी से लौट रहे थे। पूरे मजे में। बात बात पर ठहाका। बात बात पर ताली। पूरी जिंदगी उन पर बरस रही थी। कुछ उनकी मजाक अपने कानों में  भी पड़ी। मजा आ गया। वे लोग किस तरह से  अपने एक दोस्त को तैयार करके ले गए थे कि वह आज  ( नाम सुन नहीं पाया। या फिर  समझ में नहीं आया ) उससे अपने दिल की बात कह ही देगा। उसे उन लोगों  ने हजार मौके मुहैया कराए। लेकिन वो भोदूं वापस खाली हाथ लौट रहा था। अचानक उसी लड़की का फोन भी आ गया। वो शायद समझ गई थी। फिर क्या था। क्या धूम मचाई उन्होनें। ्अपने उस दोस्त को गोदी में लेकर वे लोग शायद एक स्टेशन पहले ही उतर गए। आईसक्रीम की पार्टी करने। मन ने हजार बार कहा। इन लोगों  से कहूं। कुछ देर के लिए हमें भी अपने साथ करलो। हमें भी तुम्हारे बराबर मजा करना है। लेकिन अपनी दिल की बात उस लड़के की तरह में भी नहीं  कह पाया। चुपचाप मीडिल क्लास के पप्पू के पापा की तरह अपना बैग थामे मालवीय नगर मेट्रों स्टेशन पर उतर कर घर आ गया। 

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