Thursday, May 26, 2016

मोहब्बत की दुनिया में। ये कौन नफरत घोलता है। कल लव मैरिज की थी।और आज ?

गांव  की चौपाल में बैठी महिलाएं उनसे नफरत करती थी। धीमी आवाज में उन्हें हमेशा भला-बुरा कहती हैं। उन्हें बदतमीज और बेशर्म भी अक्सर कहा जाता रहा है। लेकिन मुझे वे दोनों बहुत अच्छे लगते हैं। एक दम ठेठ प्रेमी। जो अभी कुछ महीनों पहले शादी करके आए है। जिनके उपर जेठ दोपहरी में भी सावन बरसता है। वे जहां से भी गुजरते हैं मोहब्बत की आबोहवा अपने साथ बहाकर ले जाते हैं। प्रीत की खुशबू से उनके होने का अहसास होता है। बस वे परवाह नहीं करते दकियानुसी रिवाजों की। झूठी बासी औपचारिकताओं को नहीं निभाते। सम्मान देते है। बस क्लास टीचर की तरह तुम्हारी मौजूदगी उन्हें परेशान नहीं करती। सिर्फ यही उनका गुनाह है। जो कुंठित समाज को अखरता है। वे शाम को सज संवर कर घूमने निकलते हैं। पहली बारिश में भीगते हैं। हां खाली सड़क पर हाथ पकड़कर चलते है। आइसक्रीम एक ही लेते है। साथ साथ खाते हैं। दूसरी फिर लेकर वहीं खाने लगते है। बच्चों की तरह। उनकी ये मासूमियत मुझे कान्हा जैसी लगती है। शायद इसीलिए भी वे दोनों मुझे अच्छे लगते है।
मुझे उसकी नौकरी का पता नहीं। लेकिन वो आधी-रात को कहीं से लौटती है। और उसका पति प्रेमियों की तरह घर के नीचे  हीइंतजार करता रहता है। गर्मी में कई बार ठंडे पानी की बोटल भी साथ लिए रहता है। कई बार वे लोग नीचे से आईसक्रमी खाने चले जाते है। पूरे अल्हड़पन और मासूमियत के साथ बतियाते हंसते घूमते रहते है। मुझे उनको देखकर ताजगी का अहसास होता है। चलो इस दुनिया में  कोई तो खुश है इतना कि जो बाहर भी मजा बांट सकता है। वर्ना लोग तो सिर्फ दुख ही दुख बांट  रहे है। रात को अक्सर बालकनी में उसी समय कभी चाय पीता रहता था। कभी कुछ पढ़कर घूमता रहता हूं। तो कभी किसी अाहट पर यू हीं बाहर हवा खोरी करने लगता हूं। और उसी बीच उन्हें मेें देख लेता था।
कल करीब एक बजे रात एक किताब पढ़ रहा था। कुछ आंधी सी थी। कुछ तेज हवा। मौसम मजेदार सो अपन बाहर बालकनी पर टहल रहे थे। एक कार आकर रुकी। वह लड़की भी उत्तरी। बड़ी जद्दोजहद के बाद उसने अपना बैग उतारा। ड्राइवर पूरी बेशर्मी के साथ देखता रहा। उसने मदद की कोई पेशकस तक नहीं की। मुझे लगा इस बैग को लेकर वह पांच मंजिल कैसे चढ़ाएगी। सो मैं ही उतर  गया। वह न करना चाहती थी। लेकिन काम असंभव सा था। सो कुछ संकोच के साथ हां कर दिया। मैंने सीधा पूछ ही लिया। वो कहां है। वो चुप रही। मैंने सोचा शायद गलत सवाल था। मैंने चुपचाप बैग उसके घर पर रखा। और नीचे उतर आया। इसके पहले  सिर्फ इतना ही संबंध था कि कान्हा उसे बुआ बुलाता था। उसके पति को उसी ने सिखा दिया था। फूफा। सो वह उसे फूफा कहता है।
फिर अचानक दो तीन दिन बाद मकान खाली हो रहा था। मैंने फिर पूछा क्या हुआ। वह चुप रही। फिर न जाने क्यों वो मेरे पास आकर बैठ गयी। उसने कहना शुरू किया भैया हम दोनों मद्रास में  एक साथ काम करते थे। प्यार हो गया। हम लोग अलग अलग जाती के थे। सो घर वाले माने नहीं। रोज रोज की धमकियों से तंग आकर हम लोग दिल्ली  आ गए। हम मजे में थे। सिर्फ इसका नशा हमें परेशान करता था। हम मना करते रहे। ये झूठ बोलता रहा। बात सीमा से उपर हो गई। हम अलग अलग हो गए। वो मुम्बइ चला गया। मेरी नौकरी कोलकाता में लग गई ैहै। में जा रही हूं। कान्हा को बहुत सारी चॉकलेट वो देकर जाने लगी। मैंने कहा तुम्हारे पास एक मिठास है। बहुत अंदर। कुए की तरह जो सबको मीठा पानी देते है।अपनी मिठास खोना नहीं। उसे बनाए रखना। और अपना अंहकार त्यागकर कुछ दिनों बाद फिर सोचना। शायद कोई रास्ता दिखे।
रात के एक बजे हैं। वो आइसक्रीम वाला शायद अपनी दुकान उनके इंतजार में खोले होगा। मुझे बालकनी पर टहलते हुए लगा कि जाकर उससे कह दूं। वे लोग घर छोड़कर चले गए है। अब तुम्हारे पास इतनी रात गए कोई इठलाता हुआ नहीं आएगा। न जोन कौन है जो प्रेम की इस दुनिया में नफरत घोलता है। 

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