Sunday, May 22, 2016

अभी तक तो हम खुद गोद में हैं। कान्हा को कैसे उतार दे।

कान्हा मंडे और संडे के बीच का अंतर सीख गए हैं। वे मंडे को ही सुबह सुबह आ जाते हैं। रिहर्सल करने के लिए। पापा आज मंडे है। फिर पूरा हफ्ता गिनते है। सेटरडे कहते कहते पूरी आंख चमक जाती है। और आखरी में कूंदकर कहते हैं। फिर आएगा संडे। और लंबी लिस्ट सुनाते हैं। पहले रेबिट को कैरिट खिलाएगें। डियर को ब्रैड। पीकॉक को दानेें। डक को आटे की गोलियां। फिर चलेगें। शनि मंदिर। रास्ते में जगन्नाथ मंदिर भी मिलेगा। और आखरी में खाएगें आइस्क्रीम। मॉल में। उनके इस कार्यक्रम में कोई फेरबदल करना पाप लगता है। लिहाजा वो जो कहते है। सो अपन करते चलते है। आज उन्हें गोद में लेकर घूम रहे थे। डियर पार्क में। एक दोस्त मिल गए। कहने लगे बेटे को तुमने सिर पर बैठा रखा है। मैंने कहा सही कहा तुमने। कहने लगे इसे कम से कम गोद से तो उतार दो। मैंने कहा मैं खुद ही अपने मां-बाप। दादी। बुआ। सबकी गोद में  बैठा हूं। इसे कैसे उतार दूं।

उनके जाने के बाद मुझे लगा कि अपनी परवरिश का असर अापके बच्चों  पर पड़ता है। जिस तरह से आपको पाला गया है। उसी तरह अाप अपने बच्चों  को पालते हैं। जैसे बचपन में  मुझे चाट बहुत पसंद दी। चाट खाकर बीमार होना भी स्वाभाविक सी बात थी। लेकिन मेरे पिता ने मुझे कभी भी चाट के लिए ललकने नहीं दिया। न अपन ने कभी चटे की तरह चाट के ठेला को देखा। न किसी को चाट खाते देखकर मन ललचाया। खूब चाट खाई छक के। और आज ये हालत है कि सालों से मैंने गोल गप्पे नहीं खाए। कल ही केबिनेट मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने बुलाया था।  पार्टी में। लेकिन मैंने वहां भी गोल-गप्पे या आलू टिक्की नहीं खाई। सो उसी तरह से जाने अनजाने में कान्हा के साथ भी मैं वहीं व्यवहार करता हूं। उसे आइस्क्रीम बहुत पसंद है। और आइसक्रीम खाने के  बाद खांसी आना तय है। लेकिन आइसक्रीम देखकर उसकी आंखें चमकती है। और फिर वह कमजोर कड़ी पर चोट करता है। मेरी  तरफ देखता है। मैं हर बार उसकी मदद करता हूं। फिर वह खांसता है। तो चुपचाप मेरे हाथ से दवाई भी पी लेता है।

आज के आधुनिक  तौर तरीके मेरे मां-बाप शायद सागर में नहीं जानते थे। लेकिन जो भी कुछ थोड़ा बहुत जानते थे। उन्होंने मुझ पर नहीं थोपा। सो अपना विकास प्राकृतिक हुआ। अगर जीवन में बहुत कुछ नहीं कर पाए। या सफलता के झंडे नहीं गाड़ पाए। इसके लिए अपनी परवरिश नहीं शायद कुंडली दोषी है। इसी तरह मुझे  लगता है कि मेरा बेटा भी जैसा भी हो प्राकृतिक हो। उसे किसी प्रकार की कोई कुंठा न हो। मुझे सिर्फ इतना ही करना है। ताकि में कह सकूं। जैसे मेंरे परिवार ने मुझे पाला था। वैसा मैंने कान्हा को पाल दिया। हां दादी चिंता बहुत करती थी। सो् अपन  कान्हा की चिंता करते हैं.। वह अभी से  हंसता है। कहता है पापा आप डरते बहुत हो। मैं भी कभी दादी से .यही कहता था  कि आप डरती बहुत हो।  क्यों कि उन्होंने कभी अपन को देर रात फिल्म देखने नहीं जाने दिया। न कभी ऐसी जगह पिकनिक जाने  दिया जहां  नदी या गहरा पानी हो। देर होेने पर दरवाजे पर खड़ी रहती थी। पिता ने कहा था कि कोई भी नशा करो पहली बार मेरे साथ करना। सो अपन कभी हिम्मत ही नही  कर पाए। पिता ने अपन से दोस्ती की सो अपन कान्हा के  दोस्त  हो गए। और हां अभी भी दादी फोन करके कहती रहती है। कि गर्मी है। बाहर निकलो तो खूब सारा पानी पी लेना। कुछ दिन पहले  तक ठंड को लेकिर चिंतित रहती थी। वह मुझे अभी तक गोद में बैठाए हैं। मैं कान्हाको अपनी गोद से कैसे उतार दूं। 

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