Sunday, May 22, 2016

कृष्ण की तरह हैं। कौशल। सिर्फ मुुसीबत में आते हैं।

बोलो क्या काम हैं ? फोन की घंटी खत्म होते ही दूसरी तरफ से आवाज आती है। बस यू हीं याद आई तो फोन कर लिया। वह फिर बोला। काम है तो जल्दी बताओ। कहा नहीं। बस हालचाल पूछने को फोन किया था। हमें औपचारिकता में फोन मत किया करो। हमारे पास और भी काम है। रखूं फोन। मैंने कहा अरे सनो तो। वह फिर कुछ खिसयाकर बोला। अरे यार तुम्हें गप मारनी है। तो तुम्हारे पास बहुत लोग है। मुझे क्यों फोन कर रहे हो। फोन पर झल्लाहट सीधी कान तक सुनाई दे रही थी। रखता हूं। कुछ काम हो तो बताना। इस बेहद बदतमीज दोस्त का नाम कौशल कांत मिश्रा है। कौशल इस समय दिल्ली के नामचीन हड्डी के डाक्टर है। वे पहले एम्स में थे। आजकल दिल्ली के एक महंगी और अत्याधुनिक अस्पताल में अपना परचम लहरा रहे है। 
कौशल जैसे दोस्त भगवान का आशीर्वाद है। जो वो खुश होकर किसी किसी को दे देता है। इस बद-दिमाग आदमी से दोस्ती करीब एक दशक पहले हुई थी। उन दिनों अपन हैल्थ बीट के रिपोर्टर थे। और कौशल डाक्टरों के नेता। एंटी रिजर्वेशन की कमान संभाले घूमते थे। अपन को काम का जुनून था। और कौशल को अपने मिशन का। दोस्ती हो गई। वक्त के साथ संबंध गहराते गए। जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की बाइट के लिए अपन जा रहे थे। और एक्सीडेंट हुआ। चार हड्डी टूट गई। दर्द से रोते हुए फोन किया। उधर से कौशल की आवाज आई। हिम्मत रखो। मैं दस मिनिट में पहुंचता हूं। कौशल छह मिनिट में ही आ गया। फिर इलाज हुआ। आजकल अपन कान्हा के साथ फुटबाल भी खेल लेते हैं। 
कान्हा जब 50 दिन के थे। तब वे बीमार हो गए। एम्स दिखाने गए थे। बात फौरन भर्ती की हुई। फुग्गे में से हवा निकलते सुना था। देखा था। अपने शरीर से वैसे ही हवा निकल गई। कौशल पूरी रात अपने साथ थे। हिम्मत दी। वो अलग। जब कान्हा पैदा हुआ। उस रात कौशल दरी पर उसी एम्स के गलियारे में सोए थे। जहां उनकी तूती बोलती थी। आज भी कोई काम आ जाए। तो उनकी याद आती है। कौशल कृष्ण है। सिर्फ मुसीबत के समय आते है। औपचारिकता में फोन करो तो झल्लाते हैं। मेरे पास ऐसे कई जानने वाले है। जो परेशानी में छोड़कर चले गए। कौशल इकलौते है। जो परेशानी में आते है।

No comments:

Post a Comment