Thursday, June 10, 2010

वे फोन काटते नहीं। खीज में चिल्लाते भी नहीं। कहते हैं हमें अपनो का चेहरा याद आता है।

डॉ शिव चौधरी। आपने यह नाम मेरे ब्लाग में कई बार पढ़ा होगा। और आगे भी पढ़ते रहेंगे। मैं जिन लोगों से सबसे ज्यादा प्रभावित हूं। उनमें डॉ शिव चौधरी भी एक हैं। वे एम्स के उम्दा कार्डियक सर्जन है। और वह धमनी जो हमारा खून दिल से दिमाग में ले जाती है। वे उसके विशेषज्ञ है। यह उनका हुनर है कि अगर किसी के दिल से उसका खून दिमाग की तरफ न जाता हो तो वे उस धमनी को चुस्त दुरुस्त कर देते हैं। शायद उसे आयोटा कहते हैं। वे इस काम के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। और शायद यही एक वजह है कि उनके विचार भी दिल से ही दिमाग की तरफ जाते हैं। वे सोचने का काम भी दिल से ही करते है। वे व्यस्त इतने रहते हैं। कि अगर आप कुछ ज्यादा देर उनके पास बैठना चाहें तो आपको खुद ही अपराधबोध होने लगेगा। हम जिंदा है और साथ में नौकरी करते हैं। लेकिन वे शायद सर्जरी करते है। और साथ में जीवित भी है। यानि उनका अपने मरीजों के लिए हर मिनिट समर्पित रहता है। लेकिन मुझे हैरत हुई जब मैने देखा कि विभिन्न स्कीमों के लिए आया हर फोन वे लगभग पूरा सुन लेते है। न चिल्लाते हैं। न खीजते हैं। और हमारी तरह यह कहकर फोन काटतें भी नहीं कि मीटिंग में हूं। मुझे हैरत हुई। मैंने पूछ ही लिया। वे बोले परेशान में भी कई बार हो जाता हूं। लेकिन फोन कांटने से पहले मुझे अपनों के चेहरे याद आते हैं। न जानें कौन टार्गेंट लेकर फोन बजाता होगा। स्कीम समझाने की जुगत में होगा। हो सकता है कि कल हमारे परिवार को भी कोई बच्चा किसी स्कीम के लिए फोन करता घूमें।
हमारी रोज मर्रा की जिंदगी में हमें इतने फोन सुनने पड़ते हैं। कि फोन सुनने से एक अलग तरह की एलर्जी सी हो गई है। ऐसे समय में बिना काम का एक भी फोन सुनना हमारें धैर्य की परीक्षा होती है। और खासकर ऐसे फोन जो हमारी मजाक बनाते हों। जैसे सर क्या आप होंडा सिटी कार का ट्रायल लेना चाहेंगे। ऐसे समय में जब हम बड़ी मुश्किल से अपना दो पहिया वाहन चला पातें हों। जवाब दिया नहीं। वह फिर पूंछती हैं। सर अभी आपके पास कौन सी कार है। कहा कोई भी नहीं। तो कौन सी लेना चाहेंगे।क्या जबाव देता । और मैंने फोन काट दिया। कुछ देर बार फिर फोन आता है। सर हमनें सेविंग प्लान लांच किया। इतना अच्छा प्लान पहली बार आया है। आपकों 50 हजार रुपए साल देना होगा। मैंने कहा.. नहीं चाहिए। वह बोली सर जिंदगी का क्या भरोसा। ले लीजिए। मैं उसे कैसे समझाता कि दिल्ली की 14 साल की नौकरी में अपने पास 50 हजार रुपए जमा नहीं हो पाए। तो हर साल 50 हजार कैसे देंगे। मैंने फिर फोन काट दिया। मीटिंग में था। सही की। फिर फोन आया। फाइव स्टार होटल की सदस्यता के लिए। मैं खीज गया। मैंने कहा कि आप लोंगों को नंबर कौन देता है। आपको पता नहीं मैं जरूरी मीटिंग में हूं। और में दस मिनिट तक चिल्लाता ही रहा। बाद में पता चला कि उसने न जाने कब फोन काट दिया था।
यह गुस्सा मेरा उसके ऊपर था। या अपने आप के ऊपर। घर हर रोज 11 बजे के बाद पहुंचता हूं। संडे को आलस्य और थकान घऱ से निकलने नहीं देता। कभी कभार होटल से खाना मंगाता हूं। या फिर किसी सस्ते होटल में जाकर खाना खा लेता हूं। ऐसी हालत में कोई बार बार यह समझाएं की आप 9 हजार 900 रुपए में पंच तारा होटल की सदस्या ले लीजिए। इससे आपको कई फायदे होंगे। बात तो वह लड़की सही कह रही थी। लेकिन शायद आदमी गलत था। हमें अभी भी समझ में नहीं आया। मेरा यह गुस्सा उस लड़की पर था। या अपने आप पर । क्या आपके पास भी इस तरह के फोन आते हैं।तो आप क्या करते हैं। सुनते हैं। शिव भैया की तरह। या काट देते हैं। खीजकर मेरी तरह। बताइएगा जरूर।

6 comments:

  1. बहुत ही उम्दा प्रस्तुती ,आपके शिव भैया इन्सान नहीं भगवान हैं और रही फोन करने वालों पे चिल्लाने की बात तो पहले मैं भी खीझ जाता था ऐसे फोन से लेकिन जब से सामाजिक आंदोलनों में आया हूँ तो पाया की ये फोन करने वाले तो बेचारे अपनी जिन्दगी को बचाने के लिए दो जून की रोटी के लिए किसी लोभी और लालची का हुक्म बजा रहें हैं ,इनका क्या दोष है दोष तो इस देश के व्यवस्था और सरकार की है जो लोगों को दो जून की रोटी मुहैया नहीं करा पा रही है और ये गाँधी नेहरु परिवार ऐश का जीवन व्यतीत कर रहा है इन आम जनता के पैसों से ,यही है हमारे देश का असल विकाश |अंत में शिव चौधरी जैसे लोगों को मेरा सलाम .....

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  2. सुंदर पोस्ट

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  3. आईये पढें ... अमृत वाणी।

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  4. My Dear,

    Dr. S.K.Chaudhary (CTVS)is a Polite and unique Doctor and a qualified doctor always know the side effects of angryness (GUSSA)...So If you do'nt want to listen any unwanted call then just cut that call without any arguement or angryness...always think that they are just doing their duty...

    GOOD BLOG...KEEP IT UP

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  5. इतना अच्छा लिखा . टिप् बेमानी है ।
    बार बार पढूँगा ।

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  6. Bahut hi maarmik hai Sir! Dil bhar aaya padhkar! Shayad sach hi hai ki hum chillate bhi apne hi uper hain ki itne din Dilli mein naukri karne ke baad itne paise bhi nahin juta paaye ki ek 5 star hotel ki membership le sakein.

    Par ek baat zaroor kahunga, ki shayad aap bhi un logon mein se hain jinhone paise to bahut nahin kamaaye par wo izzat aur wo morale zaroor kamaya hai ki aise excellent blog likh sakein. Aise dost kamaaye hain jo aise blogs ki izzat kar sakein, unki tareef kar sakein. Kabhi milna chahunga Sir aapse... Keep righting...

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