इलेक्ट्रानिक मीडिया की एक और विशेषता है। आप से फोन करके कभी भी कहा जा सकता है। यह एक नाम है। इनका घर का पता यह है। इनसे बाइट लानी है। आपको उनका घर पता करना है। उनसे बात करनी है। फिर कैमरे पर उनकी बाइट लेनी है। मैं अपनी खबर करने में जुटा था। कि अचानक दफ्तर से फोन आया। बाइट लेकर जल्दी आओ। मुझे नाम और पता लिखा दिया गया। मैंने पता देखा और चल दिया। लेकिन अजीब कालोनी थी। वहां 10 नंबर के बाद 11 नहीं आता था 15 नंबर और फिर सीधा 27 नंबर दिखा। घर का मकान नंबर किससे पूछे समझ में ही नहीं आ रहा था। दो तीन लोगों को ट्राई किया। बात बनी नहीं। पूरी कालोनी में घूम लिया। मकान मिला ही नहीं। फिर जब बाहर निकलने लगा था तो एक किराने की दूकान थी। जो कालोनी के शुरू होते ही थी। पहला मकान और उनकी पहली दुकान। मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया था। मैंने अंकल जी को नमस्कार किया। और पूछा। अंकल जी। 40 नंबर का मकान कहां पड़ेगा। वे गुस्से से आग बबूला हो गए। उन्होंने कहा अंधे हो क्या। मैने कहा नहीं। तो बाहर नहीं देखा क्या लिखा है। बाहर एक बोर्ड था। जिस पर लिखा था। इस दुकान पर पता पूछना सख्त मना है। मैने अंकल जी से माफी मांगी। फिर कहा कि अब पूछ ही लिया है। तो पता बता दीजिए। लेकिन वे फिर गुस्से में बोले जाओ। अपने बाप से पूछो। अंकल जी की यह स्टाइल देखकर मुझे मजा आ गया। और मैं कार से उतरकर उनके पास चला गया।
मैंने कहा कि अँकल जी आपके पास सबसे ठंडी कोल्ड ड्रिंक कौन सी है। उन्होंने बताया कि दो फ्रिज खराब है। सिर्फ एक ही चलता है। देखता हूं। फिर वे कोक निकालकर लाए। मैंने पूछा कि आप गिलास भी बेचते है। वे बोले हां। तुम्हे मतलब। मैंने कहा मुझे तीन खरीदने हैं। फुटकर तीन रुपए हैं। मैंने कहा हैं। उन्होंने तीन गिलास थमा दिए। मैंने कोक तीन ग्लास में डाला। एक मैं पीने लगा। एक हमारे साथी कैमरा मेन। और तीसरा मैंने कहा कि अंकल जी आप गुस्से में है। एक गिलास आप भी पी लीजिए। वे बोले मजाक करते हों। मैने माफी मांग कर कहा। मुझे अच्छा लगेगा। और गिलास रखकर मैं बाहर निकल आया। मैने एक घूंठ ही पिया था... कि कोरियर वाला आकर रुका। अंकल जी .....जोर से चिल्लाया। तिवारी की मकान कौन सा है। अंकल जी सारे ग्राहक छोड़कर उसे गरियाने लगे। वे अपनी गालियां पूरी नहीं कर पाए थे। कि एक पीजा वाला आ गया। बोला दादा जी हुनमान जी का मंदिर कहां है। दादी जी चुप रहे। तभी फिर एक और व्यक्ति आ गया। यहां पर कोई फोन की दुकान है। मैं पूरा मामला समझ गया। कि कालोनी की शुरूआत में अंकल जी की पहली दुकान है। हर भटके हुए आदमी को एक वे ही सहारा देते हैं। लिहाजा हर आदमी उनके पास रुकता है।
मैंने अंकल जी की परेशानी समझी। कुछ देर उनसे बतियाता रहा। उन्होंने अपने दुख दर्द सुनाए। किस तरह से वे किसी को गली दिखाने दुकान से बाहर निकले। और ग्राहक गल्ले में से पैसे ले गया। वे पता बताने में अक्सर अपना हिसाब भूल जाते हैं। 50 के नोट में 80 रुपए वापस कर देते हैं। बाद में बेटा बहू चिल्लाते हैं। मुझे अंकलजी की परेशानी सुनकर अपने एक पप्पू भैया याद आ गए। वे भी हमारे घर के पास किराने की दुकान चलाते हैं। उनका फोन आया कि भैया हम थाने में हैं। आ जाइए। मैं थाने पहुंचा तो पता चला कि वे दोपहरी में गर्मी से तंग आकर सोने गए थे। दुकान बंद करके। लेकिन ठीक दो बजे घंटी पर घंटी बज रही थी। वे बाहर निकले तो कोरियर वाला चिठ्ठी लेकर उनसे पता पूछने को खड़ा था। भैया ने उसे दो तीन चाटें मार दिए। और उसकी चिठ्ठियां फाड़ दी। सो पुलिस में शिकायत हो गई। हालांकि मैं भैया को थाने से छुटा लाया लेकिन मुझे इस परेशानी का पहली बार पता चला। पता बताने की। मैने दादाजी से फिर मांफी मांगी और कहा। आपने मुझसे कहा कि अपने बाप से पूछो। 40 नंबर का मकान कहां है। मैं आपकी जगह होता तो कहता अपने दादा से पूछो। 40 नंबर का मकान कहां है। गुस्से में दादा जी भूल गए थे। कि 40 नंबर का मकान उन्हीं का हैं। और मैं उन्हीं के बेटे से मिलने गया था। पता पूछने और बताने के आपके क्या अनुभव हैं। हमें बताइएगा जरूर।
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