Monday, June 14, 2010

क्या हमारी शादियां मीटर होती है। दौलत और शोहरत की।

मैंने शादी का वह कार्ड कई बार देखा। देखने लायक था भी। बहुत सुंदर और बहुत मंहगा। फिर मैंने उसे रद्दी वाली टोकरी में रख दिया। लेकिन उसे टोकरी में से फिर निकाला।उसे मैं शायद अपनी अलमारी में रखना चाहता था। लेकिन पत्नी के डर कर मैं उसे नहीं रख पाया। वह शायद चिल्लाएगी। कि पहले से ही घर में तुम रद्दी का इतना सामान संभाल कर रखे हो। कहीं अखबारों की कटिंग। तो कहीं सर्वे की रिपोर्टस। कई चिट्ठियां जो तुम्हें आई। और कई चिट्ठियां ऐसी जो तुमने लिखी लेकिन डाली आज तक नहीं। कुछ सम्मान में मिले कागज। और भी कुछ इसी तरह की बेतुकी चीजों से तुम घर अपना भरे हों। जबकि पांडे भाभी का घर देखो। कितना साफ और कितना व्यवस्थित। अब शादी के कार्ड रखना मत शुरू कर देना। इन तमाम बातों को सोचकर वापस उसे टोकरी के हवाले ही कर दिया।
प्रफुल्ल जब अपनी बहिन का कार्ड देने आया था। तो मैं ही घर पर था। और कभी कभार की तरह मैंने ही दरवाजा खोला। कार्ड देखा तो सुंदरता की तारीफ कर दी। वह अंदर आया। और उसने पूरे आधें घंटे में बताया कि कार्ड किस तरह से उसने पसंद किया। नौ दिनों तक वह दिल्ली के अलग अलग बाजारों में घूमता रहा। 78 कार्ड के सेंपिल घर लाया। फिर घर में पंचायत हुई। और यह कार्ड पसंद किया गया। फिर भैया मैटर लिखने के लिए हमारे जीजाजी आए थे। झांसी से। उसने गर्व से बताया। वे गर्ल्स स्कूल में प्रिंसिपल हैं। और हिंदी के लेखक भी। उनकी कई किताबें छप कर आई हैं। उन्होंने दो दिन में कार्ड लिखा। भैया वैसे सभी लोग पूछ रहे हैं। कितने का छपा है। अब क्या बताएं। मेहनत का तो कोई मोल है नहीं। लेकिन अगर आप रुपए की बात करें। तो एक कार्ड 22 रुपए 50 पैसा का पड़ा है। उसे और अच्छा लगे सो हमने कार्ड देख कर और तारीफ करनी चाही। और स्वाभाविक रुप से पूछ बैठा कि शादी किस तारीख की है। मैंने कार्ड कई बार पलटा। लेकिन उसमें तारीख थी ही नहीं। शायद जीजाजी झांसी वाले। झांसा खा गए। और तारीख लिखना ही भूल गए थे।
वह चला गया और मैं कुछ देर तक कार्ड के बारे में सोचता रहा। कि अगर समाज बुरा न मानें तो मेरा दोस्त शायद यह विशेष नोट भी लिख देता। कि कार्ड 22 रुपए 50 पैसे का है। इसे झांसी वाले जीजाजी ने लिखा है। क्या हमारी शादियां हमारी दौलत और शोहरत की मीटर बन गई है। क्या शादियां दिखावे का एक जरियां हैं। जहां हम अपना कौशल। अपनी ताकत समाज के सामने पेश करते हैं। शादी का कार्ड एक सूचना है या फिर हमारे बैंक खाते का स्टेटमेंट। जो भी हो। लेकिन वह कार्ड शादी की तारीख की सूचना देने से तो चूक गया। लेकिन अपनी दौलत बखूबी बता गया। अपनी शादी की बात कुछ और थी। उसे निपटाना था। सो इसी तरह कार्ड भी था। सिर्फ छप गया। और लोगों तक सूचना पहुंच गई। आपकी शादी का कार्ड कितने में छपा था। और किसने लिखा था। हमें बताइएगा जरूर।

8 comments:

  1. वाकई, देख कर तो मीटर ही लगती हैं.

    ReplyDelete
  2. हमारे पिताजी शादियों में कार्ड को केवल मात्र सूचना का तंत्र भर मानते थे तो वह सख्‍त खिलाफ थे कि कोई कार्ड में लिफाफे का प्रयोग करे। हमारी शादी का कार्ड भी छपा, पांच बाय चार के सफेद कार्ड पर, तब हम कॉलेज में लेक्‍चरर थे। स्‍टाफ में कार्ड बांटने थे तो बड़ी शर्म आयी कि बिना लिफाफे के ही कैसे कार्ड बांट दे तो हमने अपने पास से सफेद सादे से लिफाफे खरीदे, तब जाकर कहीं कार्ड बांटे। लेकिन अब तो दिखावे का कहीं अन्‍त ही नहीं है।

    ReplyDelete
  3. आपका बलोग अच्छ1 लगा ....
    शादियां हमारी दौलत और शोहरत की मीटर ही...बन गई है......
    सही है......

    ReplyDelete
  4. क्या हमारी शादियां हमारी दौलत और शोहरत की मीटर बन गई है। क्या शादियां दिखावे का एक जरियां हैं।...
    यह दिखावा बढ़ता ही जा रहा है ..विचारणीय आलेख ..

    ReplyDelete
  5. ऐसा ही है.... मेरे विवाह के समय जब ससुराल पक्ष को कहा गया कि आयोजन सादगी से किया जाए तो वो बहुत चिंतित हो गए कि उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा का क्या होगा ?

    ReplyDelete
  6. ऐसा ही है.... मेरे विवाह के समय जब ससुराल पक्ष को कहा गया कि आयोजन सादगी से किया जाए तो वो बहुत चिंतित हो गए कि उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा का क्या होगा ?

    ReplyDelete
  7. aapke sujav bade hi sarthak hai.sachachai padh kar kushi hoti ki aaj kuchh log hai jo sachach ko likhane me nahi hichkichate.
    aaj kal shaddi dikhawa maatra rha gya hai.

    ReplyDelete