Sunday, June 6, 2010
हर बार थका। हारा। और पीछे छूटता गया। लेकिन लगता है इस बार आप लोग मेंरे साथ है।
मैंने जिंदगी में कई बार कई कोशिशें की। लेकिन शायद अपनी किस्मत कुछ अलग है। या फिर फितरत कुछ और ही है। कई बार हारा। कई बार टूटा। और जिंदगी में बहुत कुछ छूटता गया। बहुत कुछ टूटता गया। जिंदगी की कई डोरे थामता गया। और आसमान की तरफ यह सोचकर तकता रहा कि इस डोर के सहारे ही कोई फरिस्ता जिंदगी में आएगा। लेकिन कोई आया नहीं। हर बार अपने हाथ से डोर ही छूटती गई। और टूटी हुई डोर समेटकर जिंदगी में आगे चलते गए। अब इस बार जब ब्लाग की डोर हाथ से छूटने लगी। तो मैंने कोई बहाना या सफाई नहीं सोची। सीधा कह दिया। भाई अपने बस का नहीं है। लेकिन आप लोगों की प्रतिक्रियाओं ने मुझे नया हौंसला दिया है। लगता है कि इस ब्लाग की डोर थामने में आप सब लोग मेरे साथ है। मैं फिर से कोशिश करता हूं। कि लिखता रहूं। आशीर्वाद देते रहिएगा।
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सुबह जब कंप्यूटर चालू करता हूँ तो आपका ब्लॉग पढने से दिन की शुरुआत होती है. पिछले सप्ताह कुछ रिक्तता लगी जब ताज़ा ब्लॉग दोपहर में आने लगा. लिखते रहिये.... ये आपकी ही नहीं हमारी भी दिनचर्या का अंग बन चुका है.
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