Monday, June 7, 2010

घरों पर नाम थे। नामों के साथ ओहदे थे।

पिछले दिनों मुझे एक अफसर की बाइट लेनी थी। बाइट यानि प्रतिक्रिया। छुट्टी का दिन था। सो कुछ गुजारिश करके उनके घर ही चला गया। घर पहली बार गया था। सो पता खोजना पड़ा। इस चक्कर में कई घऱों के आगे लगी नेम प्लेट्स भी पढ़ता गया। मैंने इतनी मजेदार नेम प्लेट तो कभी पढ़ी ही नहीं थी। घर के दरवाजे एक दम पुते हुए थे। और साफ भी थे। काले दरवाजें पर सफेद रंग से लिखा था। राजेंद्र प्रसाद खरे। मोहल्ले के प्रतिष्ठित व्यक्ति। उसके नीचे लिखा था। रिटायर्ड सरकारी अफसर।
मुझे इस नेम प्लेट को देखकर कई यादें ताजा हो गई। मुझे याद है। सालों पहले मेरे मोहल्ले में एक सज्जन वकालत करते थे। उनके नाम के आगे लिखा। नाम था...........। वकालत की डिग्री। और फिर लिखा था। .....सिर्फ उलझे हुए मामलों के लिए ही मिले।........और वे अक्सर खाली बैठे रहते थे। हम लोगों को एक सुविधा थी। उनके पास एक दफ्तर था। बैठने को कुछ कुर्सियां। पंखा भी था। हमें और क्या चाहिए था। सो हम लोगों को जब भी फुर्सत मिलती थी। हम अपना डेरा जमा लेते थे। वकील साहब को फायदा था। जो चाय और पान हम लोग अपने लिए मंगाते। वे उसके हिस्सेदार होते थे।सो उनका भी काम चलता रहता था।और अपना भी। उन्हीं वकील साहब के एक बड़े भाई भी थे। वे अपनी नेम प्लेट पर पूरी डिग्रियां डिवीजन सहित लिखे थे। उनका नाम........ग्यारहवीं फर्स्ट क्लास.......बीए सेकेंड क्लास। एमए......सेकेंड क्लास....पीएचडी चल रही है।
हमारे घर के पास एक जैन परिवार रहता है। परिवार संयुक्त रहा होगा। अब अलग अलग मंजिल पर अलग परिवार रहते हैं। ग्राउंड फ्लोर पर सबके नेम प्लेट थे।और हर नेम प्लेट के आगे घंटी लगी थी। और लिखा था। घंटी ध्यान से बजाए। आप जिस परिवार से मिलने आए हैं। कृपया उसी परिवार की घंटी बजाए। उसी परिवार की एक नेम प्लेट के आगे लिखा था। हम लोग दोपहर में आराम करते हैं। कृपया घंटी न बजाए। दिल्ली में मेंरे एक दोस्त हैं। उनके घर के आगे अक्सर लिखा रहता है। कृपया दूध लेने के लिए घंटी का इस्तेमाल न करें। दूध फट गया है। कभी लिखा रहता है। दूध बिक चुका है। कालेज के दिनों में हम लोग अक्सर रात रात भर पढते थे। नींद आए तो घूमने निकल जाते थे। घूमते घूमते एक दिन एक घर पर नजर पड़ी तो लिखा था। कुत्तों से सावधान। मेरे एक मित्र कहीं से रंग उधार लाए। और नीचे लिखकर आए।क्या इस घर में सिर्फ पुरूष रहते हैं। बाद में वह सूचना हटा दी गई। और चावला जी ने अपने पिता का नाम लिखकर टांग दिया।
पर दिल्ली जैसे शहरों में जहां पर आदमी की पहचान ही नहीं है। उसे नेम प्लेट से कौन पहचानेगा। हम तो इस भीड़ में यू ही खोते जा रहे हैं। अपनी पहचान।अपना नाम। अपनी नेम प्लेट। क्या आपको याद है कोई मजेदार नेम प्लेट तो हमे लिखिएगा जरूर।

10 comments:

  1. दिल्ली जैसे शहरों में जहां पर आदमी की पहचान ही नहीं है। उसे नेम प्लेट से कौन पहचानेगा।

    -बिल्कुल सही कहा!

    एक से एक मजेदार नेमप्लेट.

    एक नेम प्लेट याद आई:

    एम. तिवारी जी (बड़े वाले)

    :)

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  2. Kya kahne. Lagta hai bahut shodh kiya hai. Badhai.

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  3. ग्यारहवीं फर्स्ट क्लास.......बीए सेकेंड क्लास। एमए......सेकेंड क्लास....पीएचडी चल रही है।nice

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  4. सही लिखा आप ने ...

    आखिर नाम मे कुछ तो रखा है ...!!!

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  5. अपनी नौकरी के दो वर्ष मैंने उड़ीसा में गुजारे हैं. अजीब लगा जब नेम-प्लेट पर लोगों को अपने नाम के आगे श्री/श्रीमती लगाते देखा.

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  6. नेम प्लेट तो ध्यान नहीं आ रही पर इंदौर की एक कुल्फी की दुकान का नाम याद आ रहा है, "उज्जैन की प्रसिद्ध आगरे की कुल्फी" पड़ कर ये समझ नहीं आया की उसे इंदौर की माने उज्जैन की या आगरे की.

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  7. आखिर नाम मे कुछ तो रखा है ...!!!

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  8. आखिर नाम मे कुछ तो रखा है ...!!!

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  9. behad achhi research ki hai aap ne lagta hai ... hansi hansi me badi serious bat kah gaye aap to...


    yaheen pe aakar basheer saab ke isi sher kja doosra misra sahi fit hota hai ..

    bahut talaash kiya koi aadmi na mila

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