मैं बचपन से ही पिता के साथ खूब घूमा हूं। उनसे अपनी जमकर दोस्ती रही। उनके साथ घूमना। बाजार में खाना पीना। दोस्तों की तरह बतियाना। आम बात थी। मैं उनके साथ एक दिन चाट खानें जा रहा था। कि पिता के एक बचपन के दोस्त मिल गए। मैंने पूरी सभ्यता दिखातें हुए। उनसे नमस्ते करने की बात सोचीं। और फट से कर भी डाली। इससे पहले की उनके और पिता के बीच कोई संवाद स्थापित हो पाता। मैंने उन्हें देखा। और कह डाला। चौंचे चाचा नमस्ते। मैं सोच रहा था कि वे हल्के से मुस्करा कर मुझे नमस्ते कहेगें। मेरी पढ़ाई लिखाई। स्कूल इन तमाम चीजों के बारे में पूछेंगे। लेकिन उन्होंने हमारी नमस्ते का जवाब तो नहीं दिया। और वे पिता से लगभग लड़ने की मुद्रा में थे। वे चिल्ला रहे थे। पहले तो तुम जिंदगी भर उल्टे सीधे नाम कहते और कहलवाते रहे। अब बच्चों को भी सिखा रहे हों। मुझे अपमानित करवा रहे हों। पिता उन्हें समझाते रहे। कि मेरी नमस्ते में उनकी कोई भूमिका नहीं है। लेकिन वे मानने को तैयार ही नहीं थे। कुछ देर गुस्साएं और फिर चिल्ला कर चले गए। उनके जाने के बाद पिता ने मुझे डाटा। तुम ने चौंचे से चौंचे क्यों कहा। मैंने पूछा तो और क्या कहता।उन्होंने कुछ सोचा। कुछ याद करने की कोशिश की। फिर बताया कि उसका नाम तो सुभाषचंद्र हैं।
उपनामों की दुनिया भी अजीब हैं। एक वह नाम जो हमारे माता पिता रखते हैं। जिसे हम पूरी साज सज्जा के साथ अपनी छाती पर टांक कर घूमते हैं। राशन कार्ड से लेकर वोटर आई कार्ड पर भी वही नाम होता है। लेकिन इस तरह के नाम अक्सर हमारी जुबान पर नहीं होते। और वे नाम जो यू हीं रख दिए जाते हैं। कभी दोस्तों के जरिए तो कभी अपनों के सहारे वे अक्सर चल जाते हैं। पिछले दिनों जब हम घर गए थे। तो एक नौजवान हमारे घर आया। नमस्कार हुई। मैंने बैठने को कहा। सयुंक्त परिवार हैं। तो पूछना पड़ता है। किसको बुलाना है। हमें बेघर हुए तो सालों हो गए। लिहाजा हमसे मिलने तो अब कोई भूला भटका ही आता है। उसने अपना परिचय दिया। लेकिन मुझे याद नहीं आया। उसने फिर बताया कि वह घसीटे लाल का नाती है। और मुझे सब कुछ याद आ गया। उसके दादा अब इस दुनिया में नहीं है। उनका नाम गोवर्धन प्रसाद श्रीवास्तव था। लेकिन वे शायद बचपन में चप्पल घसीट कर चलते थे। सो वे घसीटे हो गए। और वह नाम पिछले करीब 90 सालों से चला आ रहा है। मैंने सुना है। कि उन्होंने अपने घर की नेम प्लेट पर भी ब्रैकिट में लिखवाया था। घसीटे लाल। लोग पता भी बताते है। कि घसीटे के घर के सामने।
हमारे साथ एक महेंद्र जी पढ़ते थे। बातों बातों में उनका नाम पोपट लाल रखा गया। बात में हालत यह हुई कि अगर वो क्लास में न दिखे। तो हमारे टीचर्स भी पूछ लेते थे। और पोपट नहीं आया। वे इस बात को लेकर पिछले 30 सालों से मुझ से नाराज हैं। वे अब हमसे बात नहीं करते। लेकिन सागर में उन्हें आज भी अगर कोई पोपट भाई नमस्कार कह दे। तो वे उससे कुछ नहीं कहते। मुझे जरूर गाली बकते हैं। लेकिन मैं पिछले तीस सालों से उन्हें महेंद्र जी कहता हूं। लेकिन वे मुझे गाली ही बकते है। ये अलग बात है कि लोग उन्हें महेंद्र कम और पोपट के नाम से ज्यादा पहचानतें हैं। क्या आप भी ऐसे कुछ लोगों को जानते हैं। जिनके नाम इस तरह से बिगाड़ कर रखे गए हों। और उनकी एक कहानी भी हो। अगर हो तो हमें जरूर बताइएगा।
Nick Names ki tarah hi Surnames ki bhi ek ajeebo ghareeeb duniya hai Sir! Kabhi uspe bhi apna experience share kariye. Achha lagta hai.
ReplyDeleteDear Alok,
ReplyDeleteCHUCHU naam ki kya kahani hai... vistaar se batayen ?