महानगर की ये फैशन है। संडे है तो खाना बाहर खाना है। साथ में पत्नी को फिल्म भी दिखाना है। न फिल्म का अच्छा होना जरूरी है। और न खाने का स्वादिष्ट होना। यह सिर्फ छुट्टी की एक परंपरा है। जो आपकों हर संडे निभानी है। यह आपको बताना जरूरी है। कि आप अपनी फैमली के लिए भी समय देते है। क्वालिटी टाईम परिवार के साथ गुजारते हैं। क्वालिटी टाइम मुझे समझ में आज तक नहीं आया। इसका मतबल क्या होता है। क्यों कि परिवार के साथ गुजारा गया हर टाइम मुझे क्वालिटी टाइम ही लगता है। जैसे दादी को बोर होना। मूड नहीं होना समझ में नहीं आता। वे कहतीं हैं ऐसा कभी नहीं हुआ कि खाना बनाने के लिए हमारा मूड न हो।या फिर घर के कामों से हम बोर हो जाएं। ऐसा कभी भी हमारे साथ पिछले साठ सालों में नहीं हुआ। सो अपन भी संडे को पत्नी को लेकर खाना खाने बाहर गए। साथ में एक दोस्त भी थे। उन्हें भी संडे मनाना था। खाना खाकर उठे। तो मुझे हाथ साफ करने थे। लेकिन मेरे पास रुमाल नहीं था। ये बात सामान्य सी थी। जो मेंरे साथ पिछेल 30 सालों से घटित होने वाली घटना है। लेकिन दोस्त की बीबी को यह बात अजीब सी लगी कि मैं रुमाल लेकर नहीं चलता।
मुझे बचपन में अपनी क्लास याद है। हमारे साथी अपनी कमीज पर रुमाल टकवा कर आते थे।उनकी पढ़ी लिखी मम्मी सेफ्टी पिन से शर्ट पर उनका रुमाल लगा देती थी। और वे दिन भर अपना हाथ अपनी कमीज से ही साफ करते थे। या फिर पेंट से। लेकिन उस रुमाल को कभी मैंने इस्तेमाल होते या फिर गंदा होते नहीं देखा। फिर क्या वह सिर्फ फैशन थी। या उन मम्मी का अपना कॉम्पलैक्स दिखाने का एक तरीका था। हमें तैयार करती थी दादी। लेकिन उन्होंने हमें कभी भी इस तरह का रुमाल कमीज पर टांक कर नहीं दिया। रुमाल को लेकर अपनी कुछ किस्मत ही खराब रहीं। स्कूल के जमाने से ही प्रेम करना अपन ने शुरू कर दिया था। लेकिन आजतक किसी भी प्रेमिका ने अपना नाम लिखकर मुझे रुमाल नहीं दिया। हांलाकि हमारे साथी प्रेमी अक्सर बिना किसी वजह के रुमाल निकालते और खोलते रहते थे। जिस पर पान के पत्ते की तरह दिल बना रहता था। उसे भेदता तीर। और प्रेमिका के नाम का पहला अक्षर। और हम लोग समझ जाते थे। इसी हफ्ते इकरार हुआ है। क्योंकि अक्सर रुमाल पर नाम पहला उपहार होता है। जैसे प्रेमिकाएं टिफिन में सबसे पहले हलुआ बनाकर लाती है। शादी हुई तो पत्नी भी वैसी नहीं मिली। रुमाल वाली। जो रुमाल में परफ्यूम डालकर हर सुबह दफ्तर जाते वक्त दे। शायद वह फिल्में भी कम देखती हैं। और टीवी सीरियल भी लिहाजा इन कामों में पीछे ही हैं।
रुमाल के भी कई इस्तेमाल होते हैं। हाथ साफ करना तो एक है ही। कई लोग तो दिल्ली में गाड़ी चलाने से पहले पूरे तैयार होते है। रुमाल निकालकर अपना सिऱ ढक लेते हैं। रुमाल बड़ा हो तो सब्जी भी लोग ले आते है। मुझे एक बात और समझ में नहीं आई। महिलाओं को रुमाल की ज्यादा जरूरत होती है। लेकिन लेडीज रुमाल छोटे क्यों होते हैं। उपहार में देने के लिए भी एक आसान चीज तो है हीं। और मुझे अपने दोस्त की पत्नी को देखकर लगा कि सभ्य दिखने के लिए भी रुमाल का जेब में होना जरूरी है। आप इस्तेमाल करे या न करें। वो अलग बात है। क्या आप भी रुमाल रखते है। या मेरी तरह शहर के तौर तरीकों से अभी भी अनजान है। मुझे बताइएगा जरूर।
क्या दादा भी कभी अपने काम से बोर नहीं हुए? क्या उन्होंने भी रविवार को काम से छुट्टी नहीं ली? क्या वे भी पिछले साठ सत्तर सालों से हर दिन वही काम करते आ रहे हैं बिना किसी छुट्टी या बदलाव के? यह जानना चाहूँगी।
ReplyDeleteघुघूती बासूती