Sunday, July 3, 2011

कमजोर दिल के लोग समाचार न देखें।

अपने घर का टीवी बंद नहीं होता। जब तक घर पर रहता हूं। देखना ही पढ़ता है। कई बार घर पर नहीं हूं तब भी टीवी चलता रहता है। पत्नी को आदत हो गई है। समाचार के आवाज की। हो सकता है उसे भ्रम बना रहता हो। कि मैं घर पर हूं। इसके साथ ही हर घंटे हर चैनल को बदलकर हेडलाइंस सुनता रहता हूं। किस के हाथ क्या लग गया। कहीं खबर बड़ी न हो जाए। या फिर इस पर भी नजर रखनी पड़ती है। कि कोई खबर अपन से छूट तो नहीं गई। सो समाचार चैनलों को खंगालता रहता हूं। छुट्टी के दिन भी।
संडे था। अपनी एक छोटी बहिन बबली के घर खाना खाने गया था। वैसे अपन समाज में काफी बदनाम है। लोगों के घर न जाने के लिए। कुछ दिन में शादी को तीन साल हो जाएंगे। और अब तक दिल्ली में सिर्फ तीन लोगों के घर ही खाना खाने जा पाया हूं। सो लौटते में देर हो गई। आया और फटाफट चैनल बदलने लगा। खबरें खोजने लगा। हेंडलाइंस सुनने के लिए परेशान था। समय हुआ। और खबरें शुरू हुई। 13 साल के लड़कों को गोली मारी। उसका अपराध था कि पेड़ पर चढ़ा था फल खाने के लिए। एक अस्पताल से गर्भवती महिला को बाहर धकेला। अस्पताल के बाहर बच्चे को जन्म दिया। लखीमपुर में पुलिस वाले ने ही मारा है बच्ची को। इसके बाद पटना पुलिस ने बेरहमी से घसीटा युवक को। दिल्ली के एक इलाके में लाश मिली 12 दिन बाद। नरेला में मां ने बेटी को जहर दिया। खुद फांसी लगाई। रायबरेली में 22 साल की महिला के साथ सामूहिक बलात्कार। और अपन ने टीवी बंद कर दिया।
टीवी बंद करके मैं सोचता रहा कि इतनी हिंसा देश को कहां ले जा रही है। हमारी संवेदनशीलता को क्या हो रहा है। क्या हम ये तमाम चीजें टीवी पर न देखें न दिखाएं। शुतुरमुर्ग की तरफ अपना सिर रेत में छुपा ले। या फिर टीवी बंद करके गालियां दें। कभी मीडिया को कभी सरकार को। करें क्या। कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन यह जरूर है कि अगर इसी तरह से हमारे देश में ये हरकतें होती रही। तो तय मानिए। हमें लिखना होगा। कमजोर दिल वाले लोग समाचार न देखें।

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