सुबह उठता हूं। कंप्यूटर चालू करता हूं। नेट के जरिए सारे ई पेपर देखता हूं। अपनी बीट की तमाम खबरें खंगालता हूं। और फिर फोन पर मीटिंग शुरू होती है। इसके बाद खबर करने की तैयारी। और घर से निकलता हूं। इस बीच तमाम google-alerts खोल खोल कर पढ़ता रहता हूं। कहीं कोई खबर बन तो नहीं रही हैं। कहीं कोई खबर अपन से छूट तो नहीं रही है। लिहाजा कई बेव साइट्स खोलता रहता हूं। इस बीच अपने साथी रिपोटर्स को फोन के जरिए टटोलता रहता हूं। जब भी मौका मिलता है कहीं भी टीवी देखने का फायदा उठा ही लेता हूं। फोन पर हर एसएमएस। हर मेल। ध्यान से देखता रहता हूं। खबर बनाई। और फिर घर लौट आए। नहाता बाद में हूं। पहले तमाम चैनल्स देखता हूं। फिर रात में मेल चेक करता हूं। और हां अब ब्लाग लिख रहा हूं। इस बीच फेस बुक पर भी कुछ न कुछ करता रहता हूं। अब इस बीच कहां समय हैं। किसी के लिए। वो पत्नी हो या मां। दादी हो या कोई दोस्त।
टेक्नालॉजी ने हमें धोखा दिया है। कहा तो ये गया था। कि इससे हमारी जिंदगी आसान होगी। जिंदगी सुविधाजनक होगी। लेकिन हुआ उल्टा। हम खाली होने की वजाए। इसमें उलझते चले गए। दफ्तर अब घर पर भी आता है। lap-top की शक्ल में। कंप्यूटर बंद ही नहीं होता। फोन बाथरूम में लेकर भी जाना पड़ता है। एसी के चलते दरवाजें बंद करके सोते है। अब सोते सोते किसी से बातचीत नहीं होती। हां कोई फोन बाहर से आजाए। तो बात अलग है। अब पत्नी के उठाने से पहले ही फोन का अलार्म बज जाता है। कई बार अपना तो कई बार उसका। अपना पहले बजे तो कोई बात नहीं। उसका पहले बजे तो गुस्सा आता है।
आप को खूब याद होगा। जब किसी का जन्मदिन होता था। तो हम कभी चिट्ठी लिखते थे। तो कभी ग्रीटिंग कार्ड भेजते थे। फिर फोन भी कर लेते थे।अब एसएमएस कर देते हैं। वो शुभकामनाएँ रेडीमेड फोन में लिखी आती है। उन्हें सिर्फ हम भेज देते है। अब हम अपनों से मिलने नहीं जाते। हां फेसबुक पर चैट कर लेते है। अब तो अपनों की याद भी किसी कंपनी की मुलाजिम हो गई है। जो सिर्फ संडे की संडे आती है। क्या इस नई दुनिया के चलन ने हमसे सब कुछ छीन लिया है। रिश्ते। सुख। अपनापन। मजा। और थमा दिया है। एक नई टेक्नालॉजी का झुनझुना। जो हम अब छोड़ भी नहीं सकते। और रखते हैं। तो जिंदगी का मजा जाता है। अब आप ही बताइए। इसने हमें अपनों से दूर किया है। या करीब लाई है। अपनी बात हम बताइएगा जरूर।
हम अपनों और अपने व्यापार के बीच संतुलन नहीं बना पाते तो इसका दोष टेक्नालोजी को क्यों दें ? किसने आपको रोका है कि एक पोस्टकार्ड मत लिखिए ? हाँ, अपनी इन बदलती आदतों के साथ बदल बहुत कुछ गया है, चिट्ठी का बेसब्री से इंतजार होता था फोन का नहीं....
ReplyDelete- अनिल सोनी
thanks anil jee
ReplyDeleteआधुनिक मनुष्य आज भी टेक्नोलोजी से उतना हैरान है जितना की आज से पचास साल पहले. अपने अजन्मे सपने का यह रूप देख हम डर जाते है --- यह आशीष है या श्राप? कसूर इसमें टेकनोलोजी का है या हमारा यह बहस अब पुरानी हो चली है. आज हम भूल गए है की बिना फ़ोन के जीवन में कितनी व्याकुलता थी. पत्राचार के दिनों की मीठी मीठी यादे हमारी उन कष्ट भरे दिनों की याद धुंधलाती है और हमें इस युग की व्याकुलता से परिचित कराती है. अगर तब कम की समस्या थी तो अब ज्यादा की है. तब धंधा कम था अब सब धंधा है. तब धन की कमी थी और शांति को लोग गाली देते थे. अब शांति की कमी है और पैसे को सब गाली देते है. आज एक रिपोर्टर घर में चैनल सर्फ़ करता है, मोबाइल पर खबर परख लेता है और चाहे तो घर से ही अपना काम भी कर लेता है मगर फिर भी उसे शिकायत है. तब रिपोर्टर बसों में धक्के खा खा के यहाँ से वहां घुमते, कागजों पे नंबर लिखते और पी सी ओ से फ़ोन करके आगे की जानकारी लेते. तब वेह बोर नहीं हो रहे थे , तब वेह थकान, पैसो की कमी, दफ्तर की गाली, रिपोर्टिंग की असल जद्दो जेहत आदि समस्याओ से उलझ रहे थे. कमी थी वक़त की और वक़्त मिलते ही हम बोर होने लगे.
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