शिव भैया अपने एक दोस्त को बाहर तक भेजने आए थे। वह अपने पन में हमसे मिला। हाथ मिलाया। मुस्कराया। हालचाल पूछे। और चला गया। मैं कैसे कह देता कि तुम्हें पहचाना नहीं। अपने पन का एक मान होता है। उसे रखना ही चाहिए। जब वह चला गया। तो मैंने भैया से पूछा। कि चेहरा पहचान लिया था। नाम याद नहीं आया। उन्होंने बताया। उसका नाम अभय कुमार है। वह इंडियन इस्टिट्यूट आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में अस्सिटेंट प्रोफेसर है। लेकिन अभय इतने सरल। इतने सज्जन और इतने सीधे साधे हैं। कि उनके बारे में समझ पाना थोड़ा मुश्किल हुआ। लेकिन शिव भैया ने तपाक से कहा। और में पूरी बात समझ गया। वे बोले। आदमी धोखा हमेशा हजार के नोट से खाता है। पचास पैसे के सिक्के से नहीं। नोट वही नकली निकलता है। और कई बार तो उस समय जब उसकी जरूरत सबसे ज्यादा होती है। पचास पैसा का सिक्का ठोस होता है। और न कभी धोखा देता है। न नकली होता है। यह बात सुनकर मैं अपनी जिंदगी के कई पन्ने पलटने लगा। और मुझे याद आता गया। पुराना अनुभव। जिंदगी में कितनी बार हमने धोखा हजार के नोट से खाया है। वैसे आपने भी खाया ही होगा। हमारी फितरत है कि हम हमेशा सिर्फ बाहरी आवरण पर भरोसा करते हैं। हमने स्कूल में फिर कालेज में, शहर में और अब रोज मर्रा की जिंदगी मे देखा है। आम आदमी ऐसे लोगों के आसपास मडराता रहता है। जिसे वह अमीर या ताकतवर मानता है। आदमी को हमेशा लगता है कि अमीर आदमी से दोस्ती रखो। वक्त पर काम आयगा। मुझे याद है कालोनी में एक सज्जन ने कार खरीदी। उसके बाद उनके मिजाज ही बदल गए। लोग उनसे इसलिए सलाम करते कि कभी न कभी उनकी कार लोगों के काम आएगी। और उन्होंने लोगों से सलाम तो दूर बात करना और उन्हें देखना भी कम कर दिया। उन्हें डर था कि कभी न कभी कोई न कोई कार मांगने जरूर आएगा। कुछ लोगों ने उन्हें आजमाया भी। तो कभी बैटरी डाउन थी। तो कभी इंजन मे काम था। वह कार कभी किसी के काम आते मैंने तो नहीं देखी।
अक्सर मैं देखता हूं। लोग नेताओँ। विधायकों और मंत्रियों के आसपास लगातार रहना चाहते हैं। सबको लगता है कि संबंध बने रहे तो अच्छा है । वक्त रहते काम आएगें। और शायद यही वजह है कि संबध बनाने के चक्कर मैं हम अपना स्वाभिमान कब खो देते हैं। पता नहीं चलता। और चापलूसी की सीमा में हम कब पहुंच जाते है। याद नहीं रहता। लेकिन अगर हम यह बात याद रखें। तो शायद जिंदगी बदलेगी। हजार के नोट पर यकीन मत करों। जो ठोस है वही साथी है। चाहे वह पचास पैसे का सिक्का हो। या अभय हो।
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