हमने कहा तो था। पर सागर नहीं जा पाए। 11 जुलाई का वायदा था। जीबू से। बहुत पहले ही कह दिया था। इस बार तुम्हारा जन्मदिन साथ मनाएँगे। उसे कई तरह के सपने भी दिखाए थे। होटल में चलेगें। तुम्हारे दोस्तों को ले चलेगें। पार्टी करेंगे। मजा आएगा। लेकिन ये हो नहीं पाया। एक गुनहगार की तरह कहा। रिजर्वेशन कैंसिल करा रहा हूं। फिर आउंगा। औज 12 बजते ही फोन किया। हैपी बर्थडे कहा। पूछा जन्मदिन मन रहा है। बोला हां। केक लाए थे।बोला, मुंह में हैं। इसके आगे न मैं पूछ सका। न वो बताने के मूड में था। बात खत्म हो गई।
जीबू हमारे सबसे छोटे भाई हैं। इस साल वे पांचवी में पहुंच गए है। उन्हें जन्मदिन मनाने का बहुत पहले से शौक है। जन्मदिन किसी का भी हो। वे मनाते जरूर हैं। अपनी बहिन से लेकर दादी तक। सबका जन्मदिन उनके लिए त्यौहार की तरह होता है। होली। दशहरा। गणपति या फिर जैसे मंदिर बनाने के लिए लोग उत्साहित होकर बंदी लेकर घूमने लगते हैं। जीबू भी उसी तरह हफ्ते भर पहले से ही चंदा उगाहने लगते है। हर किसी के पास जाकर बताते हैं। कि अमुख आदमी का जन्मदिन है। बताना नहीं। चंदा चाहिए। लेकिन एक दिन में वे कई बार चंदा मांगते है। कई बार एक घंटा में तीन बार भी मांग लेते है। देने वाला नाराज होकर चिल्लाने लगता है। और घर को पता चल जाता है। किसी का जन्मदिन आने वाला है। और चंदा शुरू है।
अनुभव आदमी को जिंदगी कैसे सिखाता है। ये जीबू से जानिए। पहले वे मैन्यू बनाते थे। केक। चिप्स। कोल्ड ड्रिंक। और गिफ्त। फिर चंदा शुरू होता था। लेकिन कई बार चंदा कम पड़ जाता था। सो फिर दुबारा चंदा की प्रकिया शूरू करनी पड़ती थी। अब सुना है कि चंदा का तरीका बदल गया। अब पहले चंदा होता है। फिर मैन्यू बनता है। और हां एक फुग्गा जरूर आता है। जिसमें चमकनी कागज भरे होते है। और उसे वे खूद ही फोड़ते है। जैसे चंदा करने वाला भगवान की पहली पूजा खुद ही करता है। लेकिन जीबू उदास थे। कहते थे। कि उनका जन्मदिन शायद ठीक तरीके से मनाया नहीं जा रहा है। बात साफ थी। कहीं चंदे की सुगबुगाहट नहीं थी। सो उन्हें शंका थी। लेकिन बात कुछ बनती गई। और जन्मदिन मन गया।
बात सिर्फ जीबू के जन्मदिन की नहीं है। न ही चंदे की है। लेकिन हम जो अपने अंदर एक सन्नाटा देखते हैं। महसूश कर रहे है। वह खालीपन है। हमारे अंदर का। हम खाली हो रहे है। हमारे अंदर न कोई रिश्ता बचा है। न ही कोई खुशी की दरार। हम दूसरों की खुशी में खुश हो नहीं सकते। हमारे पास अपनी बची नहीं। शायद यही अकेलापन जो हमें दुखी और निराश करता जा रहा है। बचपन में आपने और हमने भी इसी तरह खुशियां इकठ्ठी की थी। जब हम मजे में थे। अब समझदार हो गए हैं। पर दुखी है। चलो जीबू की तरह एक बार किसी का जन्मदिन मनाते हैं। चंदा करते है। आपके हिस्से का चंदा में आपको बता दूंगा। भेज दीजिएगा। जन्मदिन किसी न किसी का मना ही लेगें।
बहुत खूब भैय्या, बदलते हुए रिश्ते और सिकुड़ती हुयी दुनिया ... इसके साथ ही खुशियों के सही मायने भूलता हुआ इंसान ....
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