Saturday, July 2, 2011

गरीब की आह से पत्थर पिघलता है। सरकार क्यों नहीं।

मेरी दादी मुझ से कहती रही है। बेटा धोखे से भी किसी गरीब का दिल मत दुखा देना। गरीब की आह से पत्थर पिघल जाता है। मुझे पता है। दादी झूठ नहीं बोलती। मैंने पत्थर को कभी भी पिघलते हुए नहीं देखा। फिर भी भरोसा है। दादी की बात पर। मैं कोशिश करता हूं। किसी का दिल न दुखे।लेकिन आज जब दफ्तर से फोन आया कि मंहगाई पर लाइव करना है। लोगों के साथ। सो अपन ने कुछ लोग जमा किए। और सवाल पर सवाल पूछने लगे। उनके जबाव सुनकर हम हैरत में थे। कि मंहगाई बढ़ती जा रही है। लोग परेशान है। आह निकल रही है। पत्थर पिघलेगें या नहीं। मैं नहीं जानता लेकिन सरकार नहीं पिघलती दिखती।
मैंने सोचा था। आपसे कहा था। मुझे याद भी है कि ब्लाग पर मैं राजनीति नहीं लिखूंगा। क्यों की यह कोई राजनैतिक पटल नहीं है। मेरा और आपका रिश्ता बनाने वाला जरिया है।जहां हम आपके कंधे पर सिर रख कर रो सकेंगे। अपनी बात आप से कह सकेगें। लेकिन मंहगाई का मुद्दा। राजनैतिक नहीं है। हमारी बेवसी का है। हम कुछ नहीं कर पाते। उन प्रणव मुखर्जी का जो इतनी बेशर्मी से पेट्रोल डीजल और गैस मंहगी करते है। फिर कहते हैं। राज्य सरकारें इन्हें सस्ती करें। ये लोग आप और हम से चालाक है। चतुर हैं। लेकिन इन्हें ऐसा क्यों लगता है कि अपन दोनों मूर्ख है। अगर तुम दिल्ली में बैठकर राजनीति कर रहे हो।तो वे क्या राज्यों में बैठकर सेवा कर रहे है। सब्जियां। फल। गैस। डीजल। दूध। और अब दिल्ली में बिजली मंहगी होती जाती है। और सरकारों के पास बहाना है। मैंने एक बार शीला दीक्षित से पूछा था। जब वे पानी मंहगा कर रही थी। उन दिनों हम दिल्ली सरकार देखते थे। हमने पूछा था कि आपकी सरकार किसी लाला की दुकान है। जो घाटा और मुनाफे के लिए चुनी गई है। या फिर जनता की सेवा के लिए। और लोगों को पानी मुहैया कराना हमारी संस्कृति में पुण्य का काम है। धंधे का नहीं। वे चूपचाप मुझे घूर कर चली गई।
ढीठ कपिल सिब्बल का कुछ नहीं कर पाते हैं हम। वे मंहगाई के आंकड़े गिनाते है। क्या करें हम उस मनीष तिवारी का जो एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री की मंहगाई पर अभी भी तारीफ किए जा रहे हैं। कहते है। उनकी वजह से ही हमारी अर्थव्यवस्था बची हुई है। लेकिन अगर हम और आप सुख में नहीं हैं।तो हमारी सरकारें क्या बचा रहीं है।
इन तमाम बातों के बाद भी मुझे अपनी दादी पर भरोसा है। वे कहती है । तो गरीब की आह से पत्थर पिघलता ही होगा। और एक न दिन ये तमाम निकक्मे लोग पिघलेंगे। और इनका नाम लेवा भी कोई नहीं होगा। मुझे अपनी बेवसी के लिए रोना है। आपका कंधा चाहिए।

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