Wednesday, July 13, 2011

क्या हम भी इसी तरह मर जाएगें। किसी रोज। बेवजह

मैं बातूनी आदमी हूं। खूब बोलता हूं। लिहाजा बोलने में कभी भी दिक्कत नहीं होती। न झिझक। न शर्म। और बोलने में डर भी नहीं लगता। लेकिन आज कुछ देर तक मैं चुप बैठा रहा। बोल ही नहीं पाउँ। मेरे आसपास बैठे लोगों को लगता रहा। कि मैं नाटक कर रहा हूं। मेरी सिर्फ आंखे भर आती थी। मैं आंसू पीता। पोंछता। फिर कुछ सोंचने लगता। फिर चुप हो जाता ।और इस तरह मैं बहुत देऱ तक चुपचाप बैठा रहा। शायद खौफ में था। फिर कई सारे लोग एक साथ चिल्लाएं। चिंदबरम निकल रहा है। और हम अपना माइक लेकर पीछे पीछे भागे। पर गाड़ी 19 सफदरजंग से निकल कर चली गई। और मैं वापस होश में आया।
अपन कांग्रेस दफ्तर में थे। जब अपने boss का फोन आया। मुम्बई में ब्लास्ट हो गए हैं। तुम गृह मंत्री के घर चले जाओँ। और जो जरूरी था। उन्होंने मुझे फोन पर समझाया। मैं सरपट भागता हुआ। उनके घर के बाहर जम गया। हम जानते थे। वे कुछ बोलेगें नहीं। पहले जाकर अपने अफसरों से हालात समझेंगे। फिर कुछ कहेंगे। सतर्कता के साथ। जिन लोगों को हम नहीं जानते उनके लिए आंसू बहुत मुश्किल से निकलते हैं। लेकिन यह दुख शायद उनके लिए नहीं था। यह डर भी शायद उनके लिए नहीं था। आप से झूठ बोलने की कोई वजह नहीं है। ये डर ये दुख। अपने लिए था। मैं शायद यही सोच रहा था कि क्या हम भी इसी तरह किसी भी रोज मार दिए जाएंगे। बेवजह । क्या हमारी जिंदगी की कोई कीमत नहीं। कोई महत्व नहीं। हम सिर्फ आज शाम तक इसलिए जिंदा हैं क्यों की किसी ने हमें मारने की जरूरत नहीं समझी।
आखिर क्या दोष है। उन लोगों का जो अपनी जिदंगी के रोज मर्रा के संघर्ष करने में व्यस्त है। और इन्हीं संघर्षों के दौरान मार दिए जाते हैं। कुछ सिरफिरे लोग आते है। हमें रेत के घरों की तरह ढहा देते है। और हमारे पास रह जाते हैं। सिर्फ कुछ बयान। जांच के भरोसे। प्रधानमंत्री की संयम की अपील। मुख्यमंत्री की मुआवजे की घोषणा। और अस्पतालों में मरीज। जो मुआवजें को भटकेगें। सालों। विपक्ष के आरोप। और हम जैसे पत्रकारों की कुछ खबरें।
हो सकता है। मैं कुछ डरा हुआ हूं। इसलिए इस तरह की बातें लिख रहा हूं आप को क्या लगता है। कि क्या हल है इस तरह के हादसों को टालने का। हम इस लिए जीएँ कि हम कुछ सार्थक। कुछ रचनात्मक करना चाहते। इस लिए नहीं कि हम अभी तक आतंकवादियों की आँखों में खटके नहीं है।

1 comment:

  1. तैयार रहिये अपने लिए भी और किसी दिन मेरी अंतिम यात्रा के लिए भी, इसी देश में जहाँ आतंकवाद राजनीति का विषय हो, मूल मुद्दा हिन्दू और इस्लामिक आतंकवाद के बीच चंद वोटों के लिए भटका दिया जाए. सुकून यह जानकर मिला कि आपको दर्द हुआ, मैं तो यह समाचार देख कर खाना खाने बैठ गया.
    - अनिल सोनी

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