Monday, April 29, 2013

न कोर्स की किताबें पढ़ी। न काम के लोगों से संबंध बनाए।

पिछले कुछ महीनों से अपन डिप्रेशन में हैं। न वजह पता। न इलाज। शायद छोटूलाल पिछले साल इन्हीं दिनों बीमार हुए थे। वे १५ दिन तक एम्स में दाखिल रहे। और अपन तभी से बीमार है। एक अजीब से चिंता और मन में निराशा छा गई है। आत्मविश्वास भी लगातार कम हुआ है। वे गप्पे जो अपन खूब ठोकते थे। आजकल चुप से रहते हैं। इसी दौर में पढ़ना लिखना भी बंद हुआ। महीनों से ब्लाग ही नहीं लिखा था। आप जैसे लोगों ने उत्साह बढ़ाया सो फिर से लिखने की कोशिश कर रहा हूं। जिंदगी में सफल लोगों के क्रिया कलाप ही अलग तरीके के होते हैं। और अपन जैसे निक्कमों की जिंदगी अलग ही तरह से चलती है। जिंदगी में वो किया जो अच्छा लगा। जिसमें मजा आया। जो भला लगा। जिंदगी हाथ में कैलकुलेटर लेकर नहीं काट पाया। शायद अब डर लगता है।
बचपन में जिन दिनों अपनी उम्र के लोग बच्चों वाली कहानियां पढ़ते थे। आप से झूठ नहीं बोलूगां। उन दिनों पिता के साथ साथ अपन को भी शरतचंद , प्रेमचंद और निराला भाने लगे थे। बहुत कम उम्र में ही देवदास, निराला का साहित्य, आवारा मसीहा, कफन, पूस की रात, जैसी कई कहानियां और उपन्यास पढ़ लिए थे। बचपन से ही किताबें वे पढ़ी जो अच्छी लगी। यह सोचा ही नहीं कि जो पढ़ रहे हैं। वह जिंदगी में कितना और क्या काम आएगा। और  जिंदगी का यही तरीका अब तक चल रहा है। बात उन दिनों की है कि जब अपन अंग्रेजी से एम ए कर रहे थे। सुबह ड्रामा का पेपर था। और कुछ नोट्स खोज रहे थे। तभी अलमारी में अमृता प्रीतम की रसीदी टिकिट मिल गई। यह सोचकर कि कुछ पेज पढ़ कर किताब रख देगें। मूड भी अच्छा हो जाएगा। और दो दो करके सुबह पौने छह बजे तक पूरी किताब ही पढ़ ली। और नहा धोकर ड्रामा का पेपर देने चले गए। यह बात जब एक बार दिल्ली में अमृता प्रीतम को सुनाई तो उन्होंने कहा था कि मुझे नहीं पता कि रसीदी टिकिट का कोई पाठक इस तरह का भी मिलेगा। अगर तुम सच बोल रहे हो तो मेरा लिखना सफल हो गया।
इसी तरह अपन ने कभी मैनुअल भी नहीं पढ़े।  कोशिश जरूर की थी पिछले दिनों। नया फोन खरीद कर लाया तो उसकी साथ मिलने वाली ६४ पन्नों की एक गाइड भी मिली। इसे कैसे इस्तेमाल करे। यह सोचकर की इसे पढ़कर अपन भी जान-पाड़ें बनेगें। उसे बिस्तर के पास रख लिया। यह सोचकर कि जिंदगी में अब कुछ काम का भी पढ़ा जाए। लेकिन उन्हीं दिनों लाओत्से साहब मिल गए। फिर क्या था। करीब चार हजार पन्ने अपन ने पढ़े । लेकिन वे काम के ६४ पन्ने आज तक नहीं पढ़ पाए। आज जब बिस्तर की धूल साफ कर रहे थे। तो वह काम की किताब बिना पढ़े ही फैंक दी। इसी तरह जिंदगी में अपन ने संबंध तो खूब बनाए। या कहिए बन गए। लेकिन काम के लोगों से नहीं बन पाए। किसी अड्डे पर बैठकर जिन लोगों के साथ गप्प करने में मजा आया। बस उन्हीं के साथ रिश्ते बनते गए। ये कभी सोचा ही नहीं। कि कुछ काम के लोगों से भी संबंध बनाए जाए। भले कुछ रिश्तें दिल से नहीं मेहनत से बनें। सो आज जिंदगी की कसोटी पर अपन खरे नहीं उतरते। आप क्या सोचते हैं बताइएगा।

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