Sunday, April 21, 2013

बात कहने का तरीका, यह भी एक कला है।

शिव भैया महीनों से कह रहे हैं। ब्लाग लिखो। पता नहीं क्या हुआ। लिखने से मन ही उचट गया है। सो जबरदस्ती लिखा नहीं। पिछले दिनों इस बात पर अपनों के बीच गहन चर्चा रही। कि लिखते रहो। आज जब शिव भैया के पास अपन बैठे थे। तभी खैतान भाई साहब ने कहा कि आलोक के पिछले दो दिनों के ब्लाग बहुत अच्छे है। तुमने शायद शिव भैया को नहीं भेजे। अब आज लिखकर तीशिनों भेज देना। अपन जैसे बेशर्म भी शर्मिंदा होते है। मोटी खाल से भी शायद कुछ अंदर जाता है। खैतान भाईसाहब त्वचा के ही डाक्टर है। सो शायद वे मोटी खाल के लोगों से भी निपटना जानते हैं। वे जो दो अच्छे ब्लाग हैं उन्हें भविष्य में कभी लिखूंगा लेकिन आज लिखने बैठ गया।
हमें बचपन से ही सिखाया गया कि बात तो महत्वपूर्ण होती ही है। लेकिन यह भी महत्वपूर्ण होता है कि बात कैसे कही गई। लेकिन जिंदगी की आपाधापी में हम बहुत कुछ भूल गए। शायद यह बात भी। हम सुनते आए है। कि एक पंडित ने राजा की उम्र बताई और कहा कि तु्म्हारे सामने तुम्हारे बेटे भी मर जाएगें। राजा ने नाराज होकर उसकी गर्दन कटवा दी। एक दूसरे पंडित ने बात को अलग तरीके से कहा कि राजा तुम्हारी किस्मत बहुत अच्छी है। तुम अपने बेटे तो ठीक ही है। उनके बेटे भी देखोगे राजा ने उसे इनाम दिया। तो यह बात निश्चित है कि हम बात किस तरह से कहते है। यह उस बात की सफलता पर निर्भर करता है।
संवाद में एक बात और भी महत्वपूर्ण होती है। मौका। अपनी बात को सही तरीके से तो कहना आना ही चाहिए लेकिन उसे सही मौके पर भी कहा जाए। यह बात भी जरूरी है। बिना मौके पर कही गई अच्छी बात भी यू हीं निकल जाती है। यह बात अपन जैसे गप्पी लोगों के लिए कारगर साबित होगी है। क्योंकि अपन इतनी गप्पे ठोकते रहते हैं। कि इस बात का अंदाजा कम ही होता है कि कौन सी बात कब कहनी है। अपने मन में आई और कह दी। उसका आंकलन समाज करता रहेगा। यह अलग बात है कि उन बातों का महत्व कभी समझा जाता है। कभी नहीं। बहुत दिनों बाद लिख रहा हूं। सो अभ्यास खत्म हो गया है। लिहाजा छोटा ही लिख रहा हूं। मैं लिखने का अभ्यास करता हूं। और आप लोग पढ़ने का अभ्यास करिए.


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